कलाकृतियां अपने आप में मनोभावों को प्रदर्शित करने का जरिए होती हैं, लेकिन इनका महत्व तब और बढ़ जाता है, जब यह कृतियां किसी की 'यादें' हों। यादों को कृतियों और कविता के जरिए व्यक्ति करती हैं शहर की सिरेमिक आर्टिस्ट निर्मला शर्मा। सिरेमिक से बने खूबसूरत छोटे-बड़े पॉट्स न सिर्फ किसी घर की खूबसूरती बढ़ाने का काम करते है, बल्कि एक शहीद के शौर्य की व्याख्या भी करते हैं। अपने इकलौते बेटे की स्मृतियों को पॉट्स पर शब्दों में पिरोकर सजाती हैं।
शहीद कैप्टन देवाशीष शर्मा 10 दिसंबर, 1994 को ऑपरेशन रक्षक के दौरान आतंकवादियों की गोलीबारी के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए थे। शहीद कैप्टन की मां निर्मला शर्मा वर्ष 2007 से हर वर्ष अपने बेटे की याद में प्रदर्शनी का आयोजन करती हैं, जिसमें वे अपने हाथों से बनाए चीनी-मिट्टी के बर्तनों की बिक्री कर प्राप्त राशि सशस्त्र सेना झंडा निधि में जमा करवाती हैं
कविताओं में झलकता है बचपन
उनकी कृतियों में कविताएं 'और जब मैं तुम्हे हंसाने की हास्यास्पद कोशिश करता हूं...," मैं उस बचपन को चूम लेना चाहता हूं, जो आज भी तुम्हारी आंखों में बसा है...। ये कल नहीं होगा..., और तब तुम्हें याद भी नहीं रहेगा यह बचपन..., जो तुमसे भी अधिक मैंने जिया है.... और वह जो कमल की नाल पर, खिला हुआ है फूल, कीचड़ से उत्पन्न मेरा साथी है..., जन्म मिला ढाई अक्षर का, धर्म मिला ढाई अक्षर का, कर्म किया ढाई अक्षर का, मर्म मिला ढाई अक्षर का, प्रेम किया ढाई अक्षर का..., इस तरह की कविताएं वे सिरेमिक के पॉट्स पर उकेरती हैं, जिनमें बेटे और परिवार के साथ बिताया हुआ समय, कुछ खास यादें, बचपन आदि का जिक्र होता है
प्रचार से दूर रहकर करती हैं वे काम
सिरेमिक आर्टिस्ट और शहीद बेटे की मां निर्मला शर्मा अपने काम को बिना प्रचार-प्रसार के अंजाम देती है। कला में नवाचार करने वाली श्रीमती शर्मा इन दिनों बड़ौदा प्रवास पर है। उनसे कारगिल दिवस के मौके पर बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया
शहीद बेटे की स्मृति में मार्ग का नाम
किसी शहीद के शहादत को याद को अक्षुण्य रखने के लिए शाहपुरा स्थित मनीषा मार्केट में उनके शहीद बेटे के नाम पर सड़क का नाम शहीद कैप्टन देवाशीष मार्ग रखा गया है, जो कि शहर ही नहीं प्रदेश के लिए भी गौरव की बात है
0 टिप्पणियाँ