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चंद्रयान-2 ने अपनी तंदुरुस्ती का भेजा संदेश, सात को करेगा चांद का दीदार


भारत का चंद्रयान-2 कदम दर कदम चांद की ओर बढ़ रहा है। यान ने धरती पर अपनी बेहतर सेहत और शानदार यात्रा के बारे में संदेश भेजा है। यान के संदेश में कहा गया है कि वह सात सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने रविवार को इस संबंध में आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया। इसरो ने लिखा, 'हेलो! मैं चंद्रयान-2 हूं, विशेष अपडेट के साथ। मैं आप सबको बताना चाहूंगा कि अब तक का मेरा सफर शानदार रहा है और मैं चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सात सितंबर को उतरूंगा। मैं कहां हूं और क्या कर रहा हूं, यह जानने के लिए मेरे साथ जुड़े रहें।'


22 जुलाई को प्रक्षेपित किया गया चंद्रयान-2 अब तक अपनी कक्षा में छह बदलाव के दौर से गुजर चुका है। छठा बदलाव 14 अगस्त को किया गया था। इस बदलाव के जरिये यान को लुनार ट्रांसफर ट्रेजेक्टरी (एलटीटी) पर पहुंचा दिया गया था। इसके लिए यान के लिक्विड इंजन को 1203 सेकेंड के लिए चलाया गया था। एलटीटी वह मार्ग है, जिस पर बढ़ते हुए यान चांद की कक्षा में प्रवेश करेगा


इस प्रक्रिया को ट्रांस लुनार इंसर्शन (टीएलआइ) कहा जाता है। एलटीटी पर बढ़ते हुए 20 अगस्त को जब यान चांद के मुहाने पर पहुंचेगा, तब एक बार फिर लिक्विड इंजन चलाकर इसे चांद की कक्षा में प्रवेश कराया जाएगा। इसके बाद यान को चांद की निकटतम कक्षा तक पहुंचाने के लिए कक्षा में चार बदलाव और किए जाएंगे। निकटतम कक्षा चांद की सतह से करीब 100 किलोमीटर पर होगी।


चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसरो के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-मार्क 3 की मदद से प्रक्षेपित किया गया था। चंद्रयान-2 के तीन हिस्से हैं- ऑर्बिटर, लैंडर 'विक्रम' और रोवर 'प्रज्ञान'। ऑर्बिटर करीब सालभर चांद की परिक्रमा करते हुए प्रयोगों को अंजाम देगा। वहीं लैंडर और रोवर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेंगेलैंडिंग के साथ ही भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बन जाएगा। अब तक अमेरिका, रूस और चीन अपना यान चांद पर उतार चुके हैं। चंद्रयान-2 के लैंडर-रोवर चांद के जिस हिस्से पर उतरेंगे, वहां अब तक कोई यान नहीं पहुंचा है। 2008 में भारत ने आर्बिटर मिशन चंद्रयान-1 भेजा था। यान ने करीब 10 महीने चांद की परिक्रमा करते हुए प्रयोगों को अंजाम दिया था। चांद पर पानी की खोज का श्रेय भारत के इसी अभियान को जाता है।


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