सोनिया गांधी के कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष बनने से मध्यप्रदेश कांग्रेस में हाशिए पर पहुंचे नेताओं के एक बार फिर शक्ति केंद्र बनने की संभावना है। माना जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं की दिल्ली में पूछपरख फिर बढ़ सकती है तो प्रदेश के युवा नेताओं को इस फैसले के बाद झटका भी लग सकता है। वहीं, मुख्यमंत्री कमलनाथ की कुर्सी स्थायी होने तथा उन्हें अपने हिसाब से फैसले लेने की शक्ति मिलने की संभावनाएं जताई जा रही हैं।
मार्च 1998 से दिसंबर 2017 तक कांग्रेस अध्यक्ष रहने के बाद सोनिया गांधी ने तत्कालीन महासचिव और अपने बेटे राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपी थी। इसके बाद मध्यप्रदेश में संगठन का नेतृत्व बदलने के लिए जमकर कवायद चली और राष्ट्रीय युवा नेतृत्व आने से प्रदेश में युवाओं को मौका देने की रणनीति पर काम हुआ। मगर प्रदेश की कमान कमलनाथ को सौंपी गई, जिसके लिए प्रदेश के युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कतार में थे। संगठन की जिम्मेदारी कमलनाथ को देने के फैसले में तब सोनिया गांधी की सहमति थी
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने गांधी परिवार के संजय गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी के साथ काम किया था। जबकि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद उनके मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया के संबंध उनसे गहरे हुए। इसका असर अप्रत्यक्ष रूप से मप्र कांग्रेस की राजनीति पर भी दिखाई दिया। सोनिया गांधी के फिर अध्यक्ष बनने से एक बार फिर यह बदलाव दिखाई देने की संभावना है। इससे सिंधिया जैसे युवा नेताओं की जगह बुजुर्ग नेताओं के फिर शक्ति केंद्र बनने की संभावना है।
वैसे अभी भी मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस की राजनीति में शक्ति केंद्र हैं, अब सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने से उनकी दिल्ली में पूछपरख बढ़ने के आसार हैं। इसी तरह मुख्यमंत्री कमलनाथ भी और मजबूत होंगे
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