भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष को आने वाली एकादशी तिथि का शास्त्रों बहुत महत्व है। इस एकादशी को अनेक नामों से जाना जाता है। इन्ही नामों में से एक नाम डोल ग्यारस है। डोल ग्यारस भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है और इस दिन श्रीकृष्ण और माता यशोदा की आराधना का बड़ा महत्व है। इस दिन भगवान कृष्ण की उपासना करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
कंस के कारागर में हुआ था श्रीकृष्ण का जन्म
श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागृह में मथुरा में हुआ था। उनकी माता का नाम देवकी और पिता का नाम वासुदेव था। मामा कंस ने दोनों को कैद कर रखा था और उसी दौरान उनका जन्म हुआ था। उनके जन्म के समय मूसलाधार बारिश हो रही थी और यमुना उफान पर थी, लेकिन कृष्ण को कंस से बचाना जरूरी था इसलिए वासुदेव बरसते पानी में कृष्ण को लेकर गोकूल की ओर निकल पड़े।
आधी रात को वासुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा और नंद बाबा के घर पर छोड़ आए। श्रीकृष्ण का पालन-पोषण माता यशोदा ने किया और उनके उनके जन्म के 11वें दिन उनका जलवा पूजन किया गया। यह तिथि आज भी डोल ग्यारस के नाम से प्रसिद्ध है। यह भी मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने श्रीकृष्ण के वस्त्रों को धोया था इसलिए इस एकादशी को जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है
बालकृष्ण का हुआ था जलवा पूजन
इस दिन शास्त्रोक्त विधि-विधान के साथ श्रीकृष्ण का जलवा पूजन किया गया था। माता यशोदा ने बालकृष्ण को नए वस्त्र पहनाकर सूरज देवता के दर्शन करवाए थे और उनका नामकरण संस्कार किया था। इस दिन माता यशोदा की गोद भरी जाती है। इस उपलक्ष्य में आज भी कई जगहों पर डोल ग्यारस का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। श्रीकृष्ण को डोल में बिठाकर उनकी झांकी निकाली जाती है। श्रद्धालु डोल में सवार श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं और उनको उपहार देते हैं
डोल ग्यारस का महत्व
डोल ग्यारस के दिन व्रत करने से भक्त के सुख-सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है और सभी दु:खों का नाश होता है। इस दिन भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है जिसके कारण व्रतों का पुण्य मनुष्य को मिलता है। जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं
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