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धार्मिक मान्यताओं में सर्वपितृ अमावस्या का बहुत महत्व है। इस दिन ज्ञात और अज्ञात पितरों के निमित्त तर्पण व पूजन किया जाता है


भारतीय परंपरा में आश्विन मास वर्ष के सभी 12 मासों में खास माना जाता है। इसी मास में देवी आराधना का उत्सव नवरात्र होता है, लेकिन उससे पहले पितरों की कृतज्ञता का पर्व श्राद्ध-पक्ष मनाया जाता है इस पर्व का समापन आश्विन मास की अमावस्या को होता है। इसे सर्वपितृ-मोक्ष अमावस्या कहा जाता है। पितृ अमावस्या होने के कारण इसे पितृ-विसर्जनी अमावस्या या महालया भी कहा जाता है।


क्या है सर्वपितृ अमावस्या


पितृपक्ष का आरंभ भाद्रपद पूर्णिमा से हो जाता है। आश्विन माह का पहला पखवाड़ा जो कि माह का कृष्ण-पक्ष भी होता है पितृपक्ष के रूप में जाना जाता है। इन दिनों में हिंदू धर्मावलंबी दिवंगत पूर्वजों का स्मरण करते हैं। उन्हें याद करते हैं, उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।


 


उनकी आत्मा की शांति के लिए स्नान, दान, तर्पण आदि किया जाता है। पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के कारण ही इन दिनों को श्राद्ध भी कहा जाता है। हालांकि विद्वान ब्राह्मणों ने कहा है कि जिस तिथि को दिवंगत आत्मा संसार से गमन करके गई थी आश्विन मास के कृष्ण-पक्ष की उसी तिथि को पितृ शांति के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है। फिर भी यदि किसी वजह से हम अपने पितर का उस दिन श्राद्ध नहीं कर पाए तो आप अमावस्या को भी उनका श्राद्ध कर सकते हैं। इसी तरह इस दिन उन सारे पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं, जिनकी तिथि ज्ञात नहीं है और उन सबका भी जो हमें याद नहीं है सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध किया जा सकता है।


दूसरा वर्तमान में जीवन भागदौड़ भरा है। हर कोई व्यस्त है। फिर विभिन्ना परिजनों की तिथियां अलग-अलग होने से हर रोज समय निकाल कर श्राद्ध करना बड़ा ही कठिन है। इसलिए भी विद्वान ज्योतिषाचार्यों ने कुछ ऐसे भी उपाय निकाले हैं जिनसे आप अपने पूर्वजों को याद भी कर सकें और जो आपके समय के महत्व को भी समझे। अपने पितरों का अलग-अलग श्राद्ध करने की बजाय सभी पितरों के लिए एक ही दिन श्राद्ध करने का विधान बताया गया। इसके लिए कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अर्थात अमावस्या का महत्व बताया गया है। समस्त पितरों का इस अमावस्या को श्राद्ध किए जाने के विधान के कारण ही इसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।


 


सर्वपितृ अमावस्या का महत्व


चूंकि इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है इसलिए यह तिथि 16 दिन में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। वहीं इस अमावस्या को श्राद्ध करने के पीछे मान्यता है कि इस दिन पितरों के नाम की धूप देने से मानसिक व शारीरिक संतुष्टि या कहें शांति प्राप्त होती ही है। साथ ही घर में भी सुख-समृद्धि आती है। सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। हालांकि प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को पिंडदान किया जा सकता है लेकिन आश्विन अमावस्या विशेष रूप से शुभ फलदायी मानी जाती है। मान्यता यह भी है कि इस अमावस्या को पितृ अपने प्रियजनों के द्वार पर श्राद्धादि की इच्छा लेकर आते हैं। यदि उन्हें पिंडदान न मिले तो श्राप देकर चले जाते हैं जिसके फलस्वरूप घरेलू कलह बढ़ जाता है व सुख-समृद्धि में कमी आने लगती है और कार्य भी बिगड़ने लगते हैं। इसलिए श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिये।


 


इस दिन क्या करें और क्या न करें!


1.सर्वपितृ अमावस्या को स्नान आदि करने के बाद गायत्री-मंत्र का जाप करते हुए सूर्य देव को जल चढ़ाएं।


 


2. बिना संकल्प के श्राद्ध पूरा नहीं माना जाता, हाथ में अक्षत, चंदन, फूल और तिल लेकर पितरों का तर्पण करें।


3. श्राद्ध के लिए बने भोजन में से गाय, कव्वे, कुत्ते, देव तथा चीटियों के लिए भोजन का अंश निकालें उसके पश्चात अपने पितरों से अपने सुख समृद्धि की कामना करें।


 


4. ब्राह्मण और गरीब को भोजन करवाएं और उन्हें दान भी दे ऐसा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।


5. सर्वपितृ अमावस्या के दिन जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म कर रहा है उसे गुस्से से बचना चाहिए।


 


6. पितृ-पक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को आखिरी दिन पान खाने से बचना चाहिए।


7. जो व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध करता है उसे ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।


 


8. सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को तेल और साबुन का प्रयोग नहीं करना चाहिए।


9. अपने घर आए अतिथि या फिर भिक्षा मांगने वाले को भोजन या पानी दिए बगैर ना जाने दें क्योंकि आपके पितर किसी भी रूप में श्राद्ध मांगने आ सकते हैं इसीलिए किसी का भी अनादर ना करें।


 


10. सर्वपितृ अमावस्या के दिन चना, मसूर, सरसों का साग, सत्तू, जीरा, मूली, काला नमक, लौकी, खीरा एवं बासी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।


पितृ अमावस्या को श्राद्ध करने की विधि


सर्वपितृ अमावस्या को प्रात: स्नानादि के पश्चात गायत्री मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए। इसके पश्चात घर में श्राद्ध के लिए बनाये गए भोजन से पंचबलि अर्थात गाय, कुत्ते, कौए, देव एवं चींटियों के लिए भोजन का अंश निकालकर उन्हें देना चाहिए। इसके पश्चात श्रद्धापूर्वक पितरों से मंगल की कामना करनी चाहिए। ब्राह्मण या किसी गरीब जरूरतमंद को भोजन करवाना चाहिए व सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा भी देनी चाहिए। संध्या के समय अपनी क्षमता अनुसार दो, पांच अथवा सोलह दीप भी प्रज्ज्वलित करने चाहिए।


मातृ-नवमी


आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी तिथि को मातृ-नवमी कहा जाता है। इस तिथि का श्राद्ध पक्ष में बहुत महत्व माना जाता है। नवमी तिथि का श्राद्ध मूल रूप से माता के निमित्त किया जाता है। यह तिथि माता और परिवार की विवाहित महिलाओं के श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है।


इस दिन पुत्रवधू, स्वर्गवासी सास व माता के सम्मान में धार्मिक कृत्य करती हैं। इस श्राद्ध को सौभाग्यवती श्राद्ध भी कहा जाता है। कुछ स्थानों पर इसे डोकरा नवमी भी कहा जाता है। मान्यता है कि नवमी का श्राद्ध करने पर परिवार में धन, संपत्ति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। नवमी श्राद्ध में पांच ब्राह्मणों और एक ब्राह्मणी को भोजन कराने का विधान है।


घर की दक्षिण दिशा में हरा वस्त्र बिछाएं। पितृगण के निमित्त तिल के तेल का दीपक जलाएं। जल में मिश्री और तिल मिलाकर तर्पण करें। पितरों के समक्ष तुलसी पत्र समर्पित करें। ब्राह्मणों को लौकी की खीर, पालक, मूंगदाल, पूरी, हरे फल, लौंग-इलायची तथा मिश्री अर्पित करें। श्राद्ध करने वाले को कुश के आसन पर बैठकर भगवद्गीता के नौवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। वस्त्र, धन का दान करना चाहिए।


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