एकादशी तिथि शेषशायी श्री लक्ष्मीनारायण को समर्पित है। इस दिन श्रीहरी की विधि-विधान से आराधना करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और सुख-संपत्ति की प्रप्ति के साथ धन-धान्य की वृद्धि होती है। साल में आने वाली एकादशी तिथियों का अलग-अलग महत्व है। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण एकादशी परिवर्तिनी एकादशी है। मान्यता है देवशयनी एकादशी पर श्रीहरी के शयन करने के बाद परिवर्तिनी एकादशी पर वह करवट लेते हैं।
परिवर्तिनी एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में बलि नामक एक दानव था। दानव योनी में जन्म लेने के बाद भी वह भक्त, दानी, परोपकरी और गौ और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। साथ ही वह यज्ञ अनुष्ठान किया करता था और तप में लीन रहता था। राजा बलि के देवकर्मों की वजह से देवता उसको तुरंत आशीर्वाद दे देते थे। धीरे-धीरे तप की वजह से उसकी शक्ति इतनी बढ़ गई की वह स्वर्गाधिपति बनकर इंद्र की जगह लेने की कोशिश करने लगा।
बलि की शक्ति में इजाफा होते देख और उसके खतरनाक इरादों से घबराकर इंद्र और स्वर्ग के दूसरे देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे प्रार्थना करने लगे। इंद्र सहित सभी देवताओं ने श्रीहरी से इस समस्या का समाधान निकालने का अनुरोध किया। देवताओं की परेशानी और समस्या के विकराल होने की वजह से भगवान लक्ष्मीनारायण ने वामन रूप धारण कर पृथ्वी लोक पर जाने का निर्णय किया।
श्रीहरी ने लिया वामन अवतार
श्रीहरी वामन अवतार में राजा बलि के समक्ष पहुंचे और उनसे कहा कि हे राजन, तुम मुझे तीन पग भूमि दे दो, इससे तुम्हें तीन लोक दान का फल प्राप्त होगा। राजा बलि बड़े दानी थे और मांगने पर मना नहीं करते थे। श्रीहरी एक छोटे बालक के रूप में थे, इसलिए उन्होंने सोंचा की एक छोटा सा बालक कितनी भूमि नापेगा? इसलिए राजा बलि ने तुरंत हां कर दी और कहा कि आप तीन पग जमीन ले सकते हैं।
राजा के हां करते ही भगवान विष्णु वामन से विराट बन गए। उन्होंने आकार बढ़ाना प्रारंभ किया और इतना बढ़ा लिया कि पृथ्वी छोटी पड़ गई। राजा बलि छोटे से बालक के विराट रूप को देखकर राजा बलि आश्चर्य में पड़ गए, लेकिन वह श्रीहरी को नहीं पहचान सके। भगवान विष्णु ने पहले पग में संपूर्ण धरती और दूसरे पग में आकाश को नाप लिया। अब वामन देव ने राजा से पूछा की अब तीसरा पग कहां पर रखूं । तब राजा बलि ने सोंचा कि यदि वामन ने तीसरा पग पाताल में रख दिया तो रहने लायक जगह भी नहीं बचेगी। इसलिए उन्होंने अपना सिर आगे बढ़ा दिया। वामन ने अपना पैर उनके सर पर रख दिया।
राजा बलि ने मांगा श्रीहरी से वरदान
इस तरह से स्वर्ग एवं पृथ्वी लोक के साथ-साथ राजा बलि पर भी वामन देव का अधिकार हो गया। वचन के अनुसार बलि वापस पाताल लोक चला गया था, और सभी देवों को उसकीे भय से मुक्ति मिल गई। राजा बलि पाताल लोक में जाकर फिर से तपस्या में लीन हो गया। इस बार भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उससे वर मांगने को कहा। राजा बलि ने वामन देव को पाताल लोक में पहरेदार बनाने की विनती की। यह समय भाद्रपद माह का शुक्ल पक्ष था। इसलिए इस दिन वामन एकादशी मनाई जाती है। इस दिन ब्रह्मा एवं महेश की पूजा करने का भी महत्व है।
इस साल परिवर्तिनी एकादशी 9 सितंबर सोमवार को है। एकादशी तिथि के मुहुर्त इस प्रकार है।
एकादशी तिथि प्रारंभ – 9 सितंबर रात 10 बजकर 41 मिनट
एकादशी तिथि समाप्त – 10 सितंबर 12 बजकर 30 मिनट
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