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शिक्षकों को चुनाव से मिलेगी मुक्ति, नहीं बनेंगे बीएलओ और सुपरवाइजर


हमारे देश में चुनाव और शिक्षक का वर्षों पुराना गहरा नाता है। इस नातेदारी को निभाने के चक्कर में सरकारी स्कूलों में बच्चे महीनों तक अपने 'माट्साब' का मुंह तक नहीं देख पाते, पढ़ाना तो दूर की बात। अब यह मजबूरी की नातेदारी खत्म होने जा रही है और इसकी शुरुआत हो रही है इंदौर जिले से। इंदौर जिला प्रशासन ने 'शिक्षक मुक्त निर्वाचन' की तैयारी की है। इस नवाचार से इंदौर जिले के एक हजार से अधिक शिक्षकों को विधानसभा, लोकसभा चुनाव के लिए सालभर बीएलओ और सुपरवाइजर बने रहने की ड्यूटी से मुक्ति मिलेगी।


इस प्रयोग की शुरुआत इसी महीने से शुरू होने जा रही है और धीरे-धीरे सभी शासकीय शिक्षक बीएलओ और सुपरवाइजर की अतिरिक्त नौकरी से मुक्त हो जाएंगे। चुनाव से मुक्ति मिलने के बाद यही शिक्षक अपने-अपने स्कूलों में पढ़ाने पर ध्यान दे सकेंगे। तब शिक्षकों के पास भी यह बहाना नहीं होगा कि बीएलओ की ड्यूटी के कारण उन्हें स्कूल में पढ़ाने का समय नहीं मिल पा रहा है। निर्वाचन प्रभारी और अपर कलेक्टर कैलाश वानखेड़े ने इस नवाचार का संकल्प लिया है। इससे पहले उन्होंने निर्वाचन में लगने वाले खर्च और मानव संसाधन का गहरा आकलन किया। वे बताते हैं कि सितंबर में सभी बीएलओ घर-घर सर्वे करेंगे


इसके बाद ऐसे शिक्षक जो बीएलओ की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, उन्हें मुक्त कर दिया जाएगा। फिलहाल इस काम की शुरुआत नगरीय क्षेत्र से करेंगे। हटाए गए शिक्षक बीएलओ की जगह अन्य विभागों के कर्मचारियों को बीएलओ और सुपरवाइजर बनाया जाएगा। कर्मचारियों की बड़ी पूर्ति आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं से करेंगे। हमारे पास नगरीय क्षेत्र में लगभग 800 और ग्रामीण क्षेत्र में 750 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं। इसके अलावा 45 ऐसे विभाग चिन्हित किए हैं, जिनके कर्मचारियों को हम बीएलओ के रूप में ड्यूटी पर लगा सकते हैं


कम मतदाता वाले 700 मतदान केंद्र होंगे बंद, एक चुनाव में बचेंगे 10 करोड़


निर्वाचन में मानव संसाधन के बेहतर प्रबंधन के लिहाज से मतदान केंद्रों पर मतदाताओं की संख्या का भी सर्वे किया गया। इसमें पाया गया कि जिले में करीब 700 मतदान केंद्र ऐसे हैं, जिनमें 500-600 मतदाता ही हैं। इन केंद्रों को बंद करने की भी तैयारी की जा रही है। माना जाता है कि एक चुनाव में पूरी चुनावी प्रक्रिया के दौरान एक मतदान केंद्र पर लगभग एक लाख रुपए खर्च होते हैं। इसके अलावा सालभर में एक बीएलओ को छह हजार और सुपरवाइजर को दो हजार रुपए मानदेय दिया जाता है। इस तरह गैरजरूरी मतदान केंद्र बंद होने और यहां के बीएलओ व सुपरवाइजर हटाए जाने से इंदौर जिले में एक ही चुनाव में सरकार के करीब 10 करोड़ रुपए बचेंगे।


सुविधाओं के हिसाब से किया जाएगा विलयनिर्वाचन आयोग के मापदंडों का पालन करते हुए कम मतदाताओं वाले बूथ के मतदाताओं को आसपास के मतदान केंद्रों में उनकी सुविधा के हिसाब से विलय किया जाएगा। पहले चरण में नगरीय क्षेत्र के मतदान केंद्र बंद करेंगे। इसके बाद ग्रामीण क्षेत्र के मतदान केंद्रों को लेंगे, लेकिन इससे पहले मतदान केंद्र की भौगोलिक स्थिति, मतदाताओं से केंद्र की दूरी, नदी, नाला या पहुंच मार्ग आदि स्थितियों को देखा जाएगा। इन सब बिंदुओं को ध्यान में रखकर व्यावहारिक निर्णय लिया जाएगा


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