राजधानी के नजदीक स्थित रातापानी अभयारण्य को टाइगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव 10 माह में अब चौथी बार तैयार होगा। इसके लिए बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद वाइल्ड लाइफ मुख्यालय को फिर से प्रस्ताव बनाने को कहा जा रहा है। हालांकि रातापानी को टाइगर रिजर्व बनाने में अफसरों की रुचि भी नहीं है। यही कारण है कि विभागीय मंत्री उमंग सिंघार के लगातार कहने के बावजूद अफसर औबेदुल्लागंज को वाइल्ड डिवीजन बनाने का प्रस्ताव दे रहे हैं।
राजनीतिक रसूख रखने वाले लोगों की काले पत्थर की खदानें और ईंट भट्टे संचालित होने की वजह से रातापानी अभयारण्य को टाइगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव 10 साल से अटका हुआ है। वनमंत्री उमंग सिंघार भी तीन कोशिशें कर चुके हैं, लेकिन वन अफसरों से टाइगर रिजर्व का प्रस्ताव तैयार नहीं करा पाए हैं।
अब चौथी बार प्रस्ताव तैयार करने को कहा जा रहा है। इसके लिए मंत्री को बाकायदा कमेटी बनाकर टाइगर रिजर्व की रिपोर्ट तैयार करवाना पड़ी। कमलनाथ सरकार में वन विभाग की जिम्मेदारी मिलते ही उमंग सिंघार ने रातापानी को टाइगर रिजर्व बनाने की घोषणा करते हुए वन अफसरों से प्रस्ताव मांगा था। सूत्र बताते हैं कि अफसरों ने टाइगर रिजर्व का प्रस्ताव न देते हुए औबेदुल्लागंज को वाइल्ड लाइफ डिवीजन बनाने का प्रस्ताव रख दिया।
इंटरनेशनल टाइगर-डे पर वनमंत्री सिंघार ने यही घोषणा दोबारा की और अफसरों से प्रस्ताव मांगा। फिर भी अफसरों ने वाइल्ड लाइफ डिवीजन का ही प्रस्ताव भेजा। इससे सिंघार नाराज हो गए और प्रस्ताव लौटाते हुए फिर से टाइगर रिजर्व का प्रस्ताव लाने को कहा, लेकिन तीसरी बार भी अफसरों ने वाइल्ड लाइफ डिवीजन का ही प्रस्ताव दिया।
आखिर कमेटी बनाना पड़ी
विभागीय स्तर पर रातापानी को लेकर इस तरह की खींचतान से परेशान वनमंत्री को आखिर भोपाल सीसीएफ की अध्यक्षता में कमेटी बनाना पड़ी। कमेटी ने महज सात दिन में रिपोर्ट भी सौंप दी। कमेटी की रिपोर्ट में रातापानी में कोर और बफर एरिया का विभाजन किया गया है।
पार्क की प्रस्तावित सीमा में आ रहे 29 गांवों को लेकर भी रिपोर्ट में सलाह दी गई है। इनमें से कुछ गांवों को हटाना प्रस्तावित है तो कुछ को सीमा परिवर्तन कर बाहर करना प्रस्तावित किया गया है। इस रिपोर्ट के बाद वनमंत्री ने चौथी बार अफसरों से टाइगर रिजर्व का प्रस्ताव लाने को कहा है।
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