आज Google Doodle में एक महिला नजर आ रही हैं जो हाथ में एक किताब लिए दूसरी तरफ देख रही हैं। गूगल डूडल पर आप जैसे ही अपना कर्सर ले जाते हैं यहां आपको एक नाम नजर आता है कामिनी रॉय, यह कोई साधारण नाम नहीं है, यह एक ऐसी महिला का नाम है जिसने गुलामी के दिनों में भी महिलाओं के अधिकारों की आवाज उठाई। आज कामिनी रॉय का 155वां जन्मदिन है और गूगल ने इसी मौके पर एक विशेष डूडल बनाया है। वो भारतीय इतिहास की पहली ऐसी महिला थीं जिन्होंने ऑनर्स में ग्रेजुएशन किया था। उन्होंने 1924 में सवाल उठाया था कि एक महिला क्यों अपने घर के भीतर ही रहे और उसे समाज में उसके अधिकार की जगह नहीं मिलनी चाहिए।
12 अक्टूबर 1864 में बंगाल के बसंदा गांव में कामिनी रॉय का जन्म हुआ था। हालांकि, अब यह जगह बांग्लादेश के बारीसाला जिले में है। कामिनी ने 1883 में अपनी शिक्षा बेथ्यून स्कूल से शुरू की और अंग्रेजों की गुलामी के दौर में वो उन कुछ युवतियों में शामिल हुईं जिन्होंने उस समय में ग्रेजुएशन पूरा किया। कामिनी एक संभ्रांत परिवार से थीं और उनके पिता एक न्यायाधीश होने के साथ ही लेखक और ब्रह्म समाज के सदस्य भी थेकामिनी का लेखन काफी अच्छा था लेकिन 1894 में उन्होंने केदारनाथ रॉय से शादी की जिसके बाद काफी समय तक वो इससे दूर रहीं। इस बीच उनकी मुलाकात अबला बोस से हुई जो स्वयं एक समाज सेविका थीं जो महिलाओं की शिक्षा और विधावाओं की स्थिति बेहतर करने में लगी थीं। दोनों की दोस्ती ने कामिनी को भी इसके लिए प्रेरित किया और उन्होंने भी महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। शादी से पहले उन्होंने अपने कविता संग्रह की पहली किताब आलो ओ छाया लिखी।1929 में उनके साहित्य के प्रति योगदान के लिए जगतरणी मेडल से सम्मानित किया गया
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