कोंडागांव। बस्तर के वनों में बेशकीमती साल वृक्षों के साथ-साथ औषधीय पेड़-पौधे कंद मूल भी पाए जाते हैं, जो यहां निवासिरत लोगों की जीवकोपार्जन के साधन हैं। स्थानीय ग्रामीण वनो में उगने वाले औषधीय कंद-मूल, फलों को उनकी प्रकृति के अनुसार दैनिक जीवन के उपयोग में लाते हैं। जैसे अश्वगंधा, सर्पगंधा, भूमि निम भूमि आंवला आदी, कौंच के पौधे से असहनीय तीव्र खुजली होने के चलते ग्रामीण वनों में घुसने से डरते हैं।
स्थानीय ग्रामीणों ने नईदुनिया को बताया कि इस यहां कौंच के पौधे के नाम से जाना जाता है। इसे हल्बी बोली में बायढोक कहते हैं। क्षेत्र के जंगलों, बाड़ियों में बहुतायात में पाया जाने वाला यह एक औषधीय पौधा है। जिसके पौधे मानसून के दौरान जंगलों में स्वतः उग आते हैं। इसके फलों पर विशेष प्रकार के रोंए होते हैं।
जिसके शरीर छूते ही असहनीय, तीव्र खुजली होती है। खुजलाहट के डर से ग्रामीण पौधों को छूना तो दूर इसके आस-पास भी नही आते, क्योंकि हवा के द्वारा रोए शरीर चिपक सकते हैं। इन पौधों के चलते जंगल में घने पेड़ों का संरक्षण हो रहा है।
आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ चंद्रभान वर्मा ने इसके औषधीय गुणों की जानकारी देते हुए बताया कि समान्य बोल चाल में इस पौध के बीज को कौंच बीज के नाम से जानते हैं। वैज्ञानिक नाम मुकुना प्रिरीयंश है। बीज, पत्ते, जड़ का औषधीय उपयोग होता है, कौंच के बीज को सफेद मुसली के साथ मिलाकर देने से नींद न आने की बीमारी दूर होती है।
एंटीकारपियंस गुण मौजूद होने के चलते शरीर की कंपन,चलने फिरने में असमर्थता, तंत्रिका-तंत्र की कमजोरी दूर करने कवच पाक या बीज देते हैं। शारीरिक मानसिक हार्मोनल असंतुलन में इसका उपयोग होता है। वाजीकरण रसायन होने से बीज का चूर्ण बनाकर हार्मोन असंतुलन, नपुंसकता दूर करने की औषधी में उपयोग होता है। अधिक मात्रा में इसके सेवन से दस्त हो सकता है। गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और बधाों को इसे देना वर्जित है
0 टिप्पणियाँ