अन्नकूट का अर्थ होता है प्रकृति मे मौजूद सभी खाने योग्य रसों का समावेश। अन्नकूट की परंपरा पौराणिक है और इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को छप्पनभोग लगाकर प्रसाद ग्रहण किया जाता है। आम लोग इस दिन से उन सब्जियों और अन्न को भी अपने भोजन में भगवान को भोग लगाकर शामिल करते हैं, जिनको खाना वर्षाकाल में निषेध बताया है।
ब्रजमंडल से प्रारंभ हुई अन्नकूट की परंपरा
शास्त्रों के अनुसार अन्नकूट की परंपरा देवराज इन्द्र के घमंड से जुड़ी हुई है। इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अगुली पर धारण किया तो इंद्र के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने ब्रहमाजी से इसकी वजह पूछी तब उन्होंने इन्द्र को श्रीकृष्ण के अवतार होने की बात बताई। यह सुनते ही इन्द्र स्वयं ब्रज गए और भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में गिरकर क्षमायाचना करने लगे। सातवें दिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे उतारकर रखा और ब्रजवासियों से कहा- 'अब तुम हर साल गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो।' तभी से यह उत्सव 'अन्नकूट' के नाम से विख्यात हुआ।
माता यशोदा ने बनाए थे श्रीकृष्ण के लिए 56 पकवान
मान्यता है कि माता यशोदा बालकृष्ण को एक दिन में आठ पहर बड़े मनुहार के साथ भोजन कराती थी अर्थात श्रीकृष्ण आठ प्रहर में 8 बार भोजन करते थे। एक बार जब इन्द्र के प्रकोप से ब्रजमंडल को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब वह लगातार 7 दिन तक अन्न-जल ग्रहण नहीं कर सके थे।
8वें दिन जब इंद्र ने क्षमायाचना करते हुए वर्षा को रोक दिया तो श्रीकृष्ण ने सभी ब्रजवासियों को गोवर्धन पर्वत से बाहर निकल जाने को कहा। उस समय श्रीकृष्ण का 7 दिनों तक भूखा रहना ब्रजवासियों और माता यशोदा को अच्छा नहीं लगा। तब श्रीकृष्ण के लिए माता यशोदा ने ब्रजवासियों के साथ मिलकर 7 दिन और 8 प्रहर के हिसाब से 56 तरह के व्यंजन बनाकर श्रीकृष्ण को महाभोग लगाया था।
56 पंखुड़ियों के कमल पर विराजते हैं भगवान कृष्ण
शास्त्रोक्त मान्यता के अनुसार गौलोक में भगवान श्रीकृष्ण राधा के साथ एक दिव्य कमल पर विराजते हैं। इस दिव्य कमल की 3 परतें होती हैं। इसकी पहली परत में 8, दूसरी में 16 और तीसरी में 32 पंखुड़ियां होती हैं। इस कमल की प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में भगवान स्वयं विराजते हैं, इस तरह दिव्य कमल की कुल पंखुड़ियों की संख्या 56 होती है। यहां 56 संख्या का यही मतलब है। इसलिए: 56 भोग से भगवान श्रीकृष्ण अपनी सखियों संग तृप्त होते हैं।
गोपियों ने चढ़ाए थे श्रीकृष्ण को 56 महाभोग
श्रीमदभागवत के अनुसार श्रीकृष्ण के प्रेम में मग्न गोपिकाओं ने एक महिने तक ब्रहम मुहूर्त में यमुना के स्वच्छ और शीतल जल में स्नान किया, क्योंकि सभी गोपियां श्री कृष्ण को अपने पति के रूप में देखना चाहती थी। गोपियां यमुना स्नान के बाद अपनी मनोकामना की सिद्धि के लिए माता कात्यायिनी की पूजा- अर्चना करती थी। तब श्रीकृष्ण और माता कात्यायिनी ने गोपियों को मनोकामना पूर्ति का आर्शीवाद दिया। उस समय व्रत का पारायण और मनोकामना की पूर्ति होने के उपलक्ष्य में उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने 56 महाभोग बनाकर श्रीकृष्ण और माता कात्यायिनी को समर्पित किए थे।
श्रीकृष्ण की बारात में परोसे गए थे 56 भोग
एक जनश्रुति यह भी है कि जब श्रीकृष्ण बारात लेकर श्रीराधारानी को ब्याहने बरसाना पहुंचे तो बारात के स्वागत-सत्कार के लिए श्रीवृषभानुजी ने 56 भोग बनाए थे। इस विवाह समारोह मॆ शामिल होने वाले नंदबाबा, यशोदामाता और बलराम, रेवती सहित विशिष्टजनों की संख्या भी 56 थी। श्रीकृष्ण को विवाह समारोह में 56 भोग समर्पित करने वाले 9 नंद, 9 उपनंद, 6 वृषभानु, 24 पटरानी और सखाओं का योग भी 56 था।
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