नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की उपासना कई तरीकों से की जाती है और भक्त मां को प्रसन्न करने के लिए कई कार्य करते हैं। मां को सोलह श्रंगार की सामग्री अर्पित की जाती है। मेवे-मिष्ठान्न फल और पंचामृत का भोग लगाया जाता है। सुगंधित लाल फूल अर्पित किए जाते हैं। कुमकुम, अबीर गुलाल आदि से पूजा की जाती है, अखंड जोत जलाई जाती है और मां की आराधना के क्रम में जवारे बोए जाते हैं। जवारे के रूप में अन्न बोने की परंपरा सनातन संस्कृति का हिस्सा है। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए नवराक्षि के अवसर पर मां की प्रतिमा के सामने मिट्टी के पात्र में जवारे बोए जाते हैं। एक मान्यता यह भी है कि सृष्टि के प्रारंभ में पहली फसल जौ की थी। जौ को पूर्ण फसल भी माना जाता है। अन्न को ब्रह्म माना जाता है इसलिए अन्न का सम्मान देने के लिए जौ बोने की परंपरा है।
जवारे देते हैं भविष्य का संकेत
जौ के जवारे आपके आने वाले साल यानी भविष्य का संकेत भी देते हैं। जवारे की सेहत, रंग से साधक के भविष्य का पता चलता है। यदि अंकुरित जौ का रंग नीचे से पीला और ऊपर से हरा है तो इसका अर्थ यह है कि भक्त का आने वाले साल का आधा समय ठीक नहीं रहेगा लेकिन बाद का समय बेहतर हो जाएगा। यदि इसके विपरीत यानी अंकुरित जौ का रंग नीचे से हरा और ऊपर से पीला है तो इसका मतलब यह है कि साल की शुरूआत तो अच्छी रहेगी, लेकिन बाद में परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
यदि जवारे का कलर प्रकृतिक आभा में है तो यह साधक के लिए बड़ा शुभ संकेत है और ऐसी मान्यता है कि देवी ने आपकी पूजा स्वीकार की है। आने वाला समय आपके लिए उत्तम रहेगा। इसके विपरीत यदि जवारे सूख जाए या पीले होकर झड़ने लगे तो यह साधक के लिए शुभ संकेत नहीं है ओर आने वाला समय भक्त के लिए अच्छा नहीं है। इस तरह की अशुभता के निवारण के लिए नवरात्रि की अंतिम तिथि नवमी को नवग्रह के नाम से 108 बार हवन में आहुति दें। इस उपाय से भविष्य की बाधाओं का नाश होगा।
यह भी मान्यता है कि यदि जवारे तेजी से बढ़ने लगे तो घर-परिवार में खुशियां और सुख-समृद्धि भी उसी तरह तेजी से आएगी। जवारे की धीमी वृद्धि खराब आर्थिक हालात और तकलीफों का संकेत देते हैं। जौ के सीधे उगने को शुभ संकेत माना जाता है जबकि काले रंग के टेढ़े–मेढ़े उगने को अशुभ संकेत माना जाता है। जौ का घना होना भी बोहतर भविष्य का सूचक है।
0 टिप्पणियाँ