इंदौर पटाखा बाजार भी खराब मौसम और मंदी के असर से जूझ रहा है लेकिन उसका असर उलटा नजर आ रहा है। पटाखा बाजार में दिवाली के प्रमुख दिन आने से पहले ही पटाखे और आतिशबाजी की कई सामग्रियां खत्म हो गई हैं या उनकी कमी हो गई है। ज्यादा बिकने वाले कुछ पटाखे धनतेरस आते-आते दुकानों के काउंटर से गायब ही हो जाएंगे। असल में बाजार के मूड को समझकर कारोबारियों ने माल ही कम बुक कराया था। पटाखा बाजार और आतिशबाजी की थोक दुकानें 15 दिन पहले सज चुकी हैं। रानीपुरा से विस्थापित पटाखा कारोबारियों का थोक बाजार पिपलियापाला रीजनल पार्क के सामने मैदान में लगाया गया है। ये तमाम थोक कारोबारी ही शहर के ज्यादातर क्षेत्रों में लगने वाली अस्थायी खेरची पटाखा दुकानों को माल सप्लाई करते हैं।
थोक बाजार के अनुसार इस बार अभी से बाजार में कुछ तरह के पटाखों की कमी हो गई है। टुकड़ा यानी पटाखों की लड़ का बंडल बाजार में नहीं मिल रहा है। चौरसा यानी बड़े बमों की लड़ पहले से बाजार में नहीं है। आने वाले समय में चकरी, अनार और रोल जैसे सामान्य पटाखों की वैरायटी कम हो चुकी है। जो बिक रहे हैं, उनके दामों में तेजी है। दुकानदारों का कहना है धनतेरस तक इसमें से कई पटाखे काउंटर से पूरी तरह गायब हो जाएंगे
ये है वजह
25 वर्षों पटाखे के थोक कारोबार से जुड़े देवानंद बालचंदानी कहते हैं कि ग्राहकी कम है, फिर पटाखों के प्रकार की कमी भी है। दरअसल ये अनुभव रहा है कि जिस वर्ष दिवाली और दशहरा एक ही माह में आते हैं और दिवाली महीने के आखिरी दिनों में हो, उस वर्ष की दिवाली फीकी रहती है। इस बार मौसम भी बिगड़ा हुआ था। हर कारोबारी आशंकित था। इसलिए पहले से माल की बुकिंग ही कम करवाई गई थी
थोक कारोबारी नरेश चावला और किशोर भीमनानी के अनुसार कारखानों से पटाखों के दाम में काफी तेजी आ चुकी है। 18 प्रतिशत जीएसटी के साथ परिवहन की लागत के कारण फैक्टरी सप्लाई से ही पटाखों के दाम बीते वर्ष के मुकाबले 40 प्रतिशत तक बढ़कर आए हैं। कीमत बढ़ने का असर भी ग्राहकी पर पड़ने के आसार थे। मंदी की आहट तो थी ही, लिहाजा हर व्यापारी ने एहतियातन कम माल बुलाया। गांव की बुकिंग कम रही लेकिन शहर में पटाखों का क्रेज बरकरार है। इसलिए अब दिवाली से पहले प्रमुख पटाखे काउंटरों से गायब होने लगे हैं।
ग्रीन पटाखे सिर्फ कल्पना
दिल्ली के प्रदूषण और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से उपजे ग्रीन पटाखे अभी सिर्फ परिकल्पना ही हैं। बड़े कारोबारियों के अनुसार चार-पांच साल पहले ही पर्यावरण को सुधार के लिए पटाखों के शोर को 35 से 40 डेसीबल तक सीमित किया जा चुका था। इसके बाद लेड, क्रोमियम, बेरियम, पारा, एल्युमिनियम जैसी धातुओं के अंश भी आतिशबाजी से कम किए गए जिससे धुआं कम हो। सब प्रकार की आतिशबाजी इन मानकों के अनुसार आ रही है लेकिन ग्रीन पटाखों जैसा न तो अभी बाजार में कोई सामग्री है, न ही कारखानों में बन रही है। शिवाकाशी के निर्माता भी साफ कह चुके हैं कि ऐसी कोई सामग्री वे नहीं बना रहे हैं।
गाइडलाइन नहींग्रीन पटाखों को लेकर कोई विशेष गाइडलाइन नहीं है। सामान्य पटाखों की तरह ही इनकी जांच की जाती है। हमने पटाखों की जांच शुरू कर दी है। -सुनील व्यास, वैज्ञानिक प्रदूषण नियत्रंण बोर्ड
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