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आदर्श गांव चयन में रुचि नहीं ले रहे सांसद, छह माह में महज एक ने चुना गांव


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी योजनाओं में शामिल 'सांसद आदर्श ग्राम" योजना में मध्य प्रदेश के सांसदों की रुचि नहीं दिखाई दे रही है। यही कारण है कि छह माह के कार्यकाल में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद राकेश सिंह को छोड़कर प्रदेश के शेष सांसद अपने ही संसदीय क्षेत्र में एक ऐसा गांव तलाश नहीं कर पाए हैं, जिसे तमाम सुविधाएं पहुंचाकर आदर्श बनाया जा सके।


प्रधानमंत्री मोदी ने प्रत्येक सांसद को पांच गांव की जिम्मेदारी लेने को कहा है, लेकिन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सिंह ने भी अब तक एक ही गांव चुना है। इसका प्रस्ताव पंचायत एवं ग्रामीण्ा विकास विभाग तक पहुंच गया है।


प्रधानमंत्री मोदी ने पहले कार्यकाल में देशभर के सांसदों से अपने संसदीय क्षेत्र में एक गांव चुनने और उन्हें तकनीकी, सांस्कृतिक रूप से आदर्श बनाने के निर्देश दिए थे। इस बार प्रधानमंत्री ने प्रत्येक सांसद को पांच गांव गोद लेकर अपने कार्यकाल में उन्हें आदर्श ग्राम में बदलने को कहा है। यह निर्देश मई 2019 में दिए गए थे, लेकिन प्रदेश में इन निर्देशों का असर देखने को नहीं मिल रहा है


पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग तक अभी एक सांसद का प्रस्ताव पहुंचा है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने जबलपुर के ग्राम घाना को आदर्श ग्राम बनाने के लिए चुना है। इसके अलावा किसी भी सांसद ने अभी तक विभाग को कोई प्रस्ताव नहीं भेजा है। जबकि मध्य प्रदेश की 29 संसदीय सीटों में से 28 सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी जीते हैं। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में 11 अक्टूबर 2014 को सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत की थी


योजना में तीन बातों पर जोर


योजना में गांव में बुनियादी सुविधाओं के साथ खेती, पशुपालन, कुटीर उद्योग, रोजगार आदि पर ध्यान दिया जाना है। इसमें तीन बातों पर जोर दिया गया है। गांव के लिए जो भी योजना बनाई जाए, वह मांग पर आधारित हो, समाज द्वारा प्रेरित हो और उसमें जनता की भागीदारी हो। योजना का मुख्य उद्देश्य सांसदों की देखरेख में चुनी गईं ग्राम पंचायतों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना है। इस योजना के तहत ग्रामों के विकास के लिए इंदिरा आवास, प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास योजना और मनरेगा से फंडिंग की जाती है


पिछले कार्यकाल में भी नहीं हुआ काम


योजना से सांसदों की बेरुखी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल जिन सांसदों ने गांव गोद लिए थे। वे भी पूरी तरह से विकास कार्य नहीं करा सके। जबकि उन्हें दो साल में गांव को पूरी तरह से तस्वीर बदलना थी।


इनका कहना है


सिर्फ नाम देने से कोई गांव आदर्श नहीं हो जाता है। योजना के लिए केंद्र सरकार ने न तो कोई वित्तीय प्रावधान किया है और न ही सांसद अपनी निधि से अलग से राशि इन गांवों के लिए दे रहे हैं। पिछले समय में भी जो गांव आदर्श गांव के तौर पर चुने गए थे, उनमें भी कोई विशेष काम नहीं हुए हैं। राज्य सरकार अपने स्तर से प्रदेश के सभी गांवों के विकास के लिए रोड मेप तैयार कर रही है। वित्तीय उपलब्धता के हिसाब से प्राथमिकता तय कर विकास कार्य कराए जाएंगे


 


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