अब देश की सर्वोच्च अदालत का 'सुप्रीम' दफ्तर (सीजेआई कार्यालय) भी कुछ शर्तों के साथ पारदर्शी होगा। शीर्ष अदालत ने इसे पब्लिक अथॉरिटी माना है। इसे सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के दायरे में रखने के दिल्ली हाई कोर्ट के 2010 व देश के मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) के 2009 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है। हालांकि यह भी स्पष्ट किया कि पारदर्शिता रखने के साथ ही 'न्यायिक आजादी' का भी खयाल रखा जाए।
फैसले की अहम बातें/शर्तें
-कोर्ट ने कहा, 'निजता का अधिकार महत्वपूर्ण पहलु है। सीजेआई के दफ्तर से सूचनाएं देते वक्त पारदर्शिता के साथ निजता का भी संतुलन रखा जाना चाहिए।'
-पीठ ने स्पष्ट किया कि कोलेजियम द्वारा की जाने वाली जजों के नियुक्ति की सिफारिश के साथ सिर्फ नाम ही उजागर किए जाएंगे, कारण नहीं।
-जजों की संपत्ति आदि की भी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी।
तीनों जजों ने एक और दो ने अलग-अलग दिए फैसले
-सीजेआई गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता व जस्टिस संजीव खन्नाा की ओर से एक फैसला लिखा गया।
-जबकि जस्टिस रमना व जस्टिस चंद्रचूड ने अपने फैसले अलग-अलग लिखे।
...जजों ने फैसले में यह कहा
-जस्टिस डीवाई चंद्रचूड : चूंकि जजों के पद संवैधानिक हैं और वे पब्लिक ड्यूटी देते हैं, इसलिए न्यायपालिका को पूरी तरह से पृथक नहीं रखा जा सकता।
जस्टिस संजीव खन्नाा : न्यायपालिका की आजादी व पारदर्शिता साथ-साथ चलनाचाहिए। पारदर्शिता से न्यायिक आजादी पुख्ता होगी।
-जस्टिस रमना : निजता और पारदर्शिता के अधिकार का संतुलित फॉर्मूला होना चाहिए तथा न्यायपालिका की आजादी को सुरक्षित रखा जाना चाहिए।
तीनों अपीलें खारिज कीं
17 नवंबर को रिटायर होने जा रहे सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बुधवार को यह अहम फैसला सुनाया। दिल्ली हाई कोर्ट का 2010 का आदेश कायम रखते हुए पीठ ने सुप्रीम कोर्टके सेक्रेटरी जनरल और केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा दायर तीन अपीलें खारिज कर दीं। पीठ में सीजेआई गोगोई के अलावा जस्टिस एनवी रमना, डीवाई चंद्रचूड, दीपक गुप्ता व संजीव खन्नाा शामिल थे।
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