मध्य प्रदेश के एक करोड़ से ज्यादा परिवारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मिलने वाली चना दाल अब नहीं मिलेगी। केंद्र सरकार ने गरीबों को मिलने वाली दाल देने से इनकार कर दिया है। सितंबर से मध्य प्रदेश को यह कोटा (लगभग 23 हजार मीट्रिक टन) मिलना बंद हो गया है। जबकि, सितंबर का कोटा आवंटित कर दिया गया था, लेकिन मामला उठाव के लिए चयनित तीन जगहों पर अटका हुआ था। नागरिक आपूर्ति निगम मांग कर रहा था कि कम से कम संभागीय मुख्यालयों पर दाल उपलब्ध करा दी जाए, ताकि 52 जिलों में आसानी से पहुंचाई जा सके। जब इस पर बात नहीं बनी तो सरकार चार करोड़ रुपए परिवहन में अतिरिक्त खर्च कर उठाव करने के लिए भी राजी हो गई पर केंद्र सरकार ने विलंब होने का हवाला देकर पिछले सप्ताह दाल देने से ही इनकार कर दिया।
केंद्र सरकार ने पिछले साल दाल के बफर स्टॉक को देखते हुए प्रति किलोग्राम 15 रुपए की सबसिडी देते हुए राज्य को सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मिड डे मील सहित अन्य सरकारी योजनाओं में दाल वितरण का ऑफर दिया था। राज्य सरकार ने योजना को मंजूरी दे दी और प्रति परिवार प्रतिमाह एक किलोग्राम दाल देने का निर्णय लिया। इसके लिए 27 रुपए प्रति किलोग्राम की दर तय की गई। अगस्त तक यह योजना चलती रही, लेकिन सितंबर की दाल देने में केंद्र आनाकानी करने लगा। सूत्रों के मुताबिक सरकार और प्रमुख सचिव नागरिक आपूर्ति नीलम शमी राव के स्तर से काफी पत्राचार हुआ तो केंद्र सरकार सितंबर का कोटा देने के लिए राजी हो गई।
दाल के उठाव के लिए उज्जैन, होशंगाबाद के अलावा एक अन्य जगह चिन्हित की गई। नागरिक आपूर्ति निगम को यह दाल पूरे प्रदेश में पहुंचानी थी, इसलिए नाफेड से आग्रह किया गया कि कम से कम संभागीय मुख्यालय से तो उठाव की व्यवस्था दी जाए। ऐसा नहीं होने पर परिवहन में लगभग चार करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च आ रहा था। इससे यदि दाल के दाम बढ़ते तो सीधा असर उपभोक्ता पर पड़ता और यदि वृद्धि नहीं की जाती तो खजाने पर भार आएगा।
काफी दिन तक पत्राचार के बाद भी जब बात नहीं बनी तो निगम तय तीन स्थानों से ही दाल उठाने के लिए राजी हो गया, लेकिन नाफेड ने यह कहते हुए उठाव की अनुमति देने से इनकार कर दिया कि अब देर हो चुकी है। यह स्थिति तब है, जब छत्तीसगढ़ को चार माह की दाल उठाने की अनुमति दी गई है। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकार तो केंद्र को मार्च तक का कोटा देने के लिए अग्रिम राशि देने की बात कह चुकी थी। ऐसे में यह रवैया समझ से परे है।
प्रदेश को लेने हैं दाल के सात सौ करोड़ रुपए
सूत्रों का कहना है कि प्रदेश को केंद्र सरकार से दाल के सात सौ करोड़ रुपए लेने हैं। पिछले साल लगभग 17 लाख मीट्रिक टन चना न्यूनतम समर्थन मूल्य में खरीदकर केंद्र को सेंट्रल पूल में दिया गया था। अधिकांश दाल अभी भी प्रदेश के गोदामों में रखी हुई है। उधर, प्रदेश का लगभग आठ लाख मीट्रिक टन गेहूं भी अटका हुआ है। इसे सेंट्रल पूल में लेने को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। केंद्र सरकार का कहना है कि प्रदेश सरकार ने 160 रुपए प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि देने का एलान करके अनुबंध तोड़ा है। जबकि शिवराज सरकार में भी ऐसा पहले किया जा चुका है और केंद्र ने पूरा गेहूं ले लिया था।
भेदभाव कर रही है सरकार
जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा का कहना है कि केंद्र सरकार लगातार भेदभाव कर रही है। केंद्र के लिए सभी राज्य एक समान है। केंद्र की योजना का प्रदेश में पूरी तरह पालन किया जा रहा है, लेकिन एकाएक दाल का कोटा रोकना ठीक नहीं है। हम उचित मंच पर अपनी बात रखेंगे।
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