बुजुर्गों के भरण-पोषण से संबंधित कानून को सरकार अब और सख्त बनाने जा रही है। इसके अंतर्गत बुजुर्ग मां-बाप का ख्याल न रखने पर छह महीने तक की जेल की सजा भी हो सकती है। फिलहाल मौजूदा कानून में इस मामले में सिर्फ तीन महीने की सजा का ही प्रावधान है। कानून में बुजुर्गों की सुरक्षा का भी पूरा ख्याल रखा गया है। प्रत्येक पुलिस थाने में एएसआई रैंक के एक पुलिस अधिकारी की तैनाती का भी प्रावधान किया गया है जो उम्रदराज लोगों की समस्याओं को लेकर नोडल अधिकारी के रूप में काम करेंगे। फिलहाल देश में करीब 11 करोड़ बुजुर्ग हैं और 2050 तक देश में इनकी आबादी करीब 33 करोड़ हो जाएगी। इसके साथ ही इनके साथ दुर्व्यवहार और उनको तन्हा छोड़ने के मामले तेजी से देखने को मिल रहे हैं। यही वजह है कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने लंबे विचार-विमर्श के बाद दस साल से ज्यादा पुराने इस कानून में बदलाव का खाका तैयार किया है।
संसद के 18 नवंबर से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र में सरकार की ओर से लाए जाने वाले प्रस्तावित बिलों में इसको शामिल किया गया है। माता-पिता और बुजुर्गों की देखरेख से जुड़ा मौजूदा कानून 2007 में तैयार किया गया था। प्रस्तावित बिल के मुताबिक माता-पिता अब सिर्फ अपने जैविक संतानों से ही गुजारा भत्ता लेने के हकदार नहीं होंगे, बल्कि अब वह नाती-पोते, दामाद या फिर जो संबंधी उनकी संपत्ति का हकदार होगा, उन सभी से वह गुजारा भत्ता के लिए दावा कर सकेंगे। नए कानून में दस हजार तक का ही गुजारा भत्ता हासिल करने की सीमा को हटा दिया गया है। अब बुजुर्ग हैसियत के हिसाब से गुजारा भत्ता लेने के अधिकारी होंगे यानी बेटे या परिजनों की आय करोड़ों की है, तो गुजारा भत्ता भी उसी आधार पर तय किया जाएगा। नए कानून में वृद्धाश्रमों को भी शामिल किया गया है जिसमें अब बुजुर्गों के हिसाब सारी सुविधाएं जुटानी जरूरी होंगी- खासकर स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं को रखना अनिवार्य होगा।
प्रस्तावित कानून की अहम बातें
-जैविक बच्चों से ही नहीं, नाती-पोते, दामाद से भी गुजारा भत्ता लेने के होंगे हकदार
दस हजार गुजारा भत्ता की सीमा हटाई, अब हैसियत के हिसाब से तय होगा गुजारा भत्ता
- वृद्धाश्रमों को भी अब बुजुर्गों के मुताबिक जुटानी होगी जरूरी सुविधाएं
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