उज्जैन कार्तिक-अगहन मास में सोमवार को भगवान महाकाल की शाही सवारी निकली। पहली बार कार्तिक-अगहन की शाही सवारी का कारवां करीब एक किलोमीटर लंबा नजर आया। सवारी में शामिल विभिन्न् दल केसरिया ध्वज लेकर निकले। भगवान शिव का स्वरूप धारण कर सवारी में शामिल हुए भक्त भोले की भक्ति में झूमते नजर आए। राजा की शाही शान देख भक्त भी अभिभूत हो गए।
सभा मंडप में पूजन पश्चात शाम 4 बजे राजा की पालकी नगर भ्रमण के लिए रवाना हुई। सबसे आगे ज्योतिर्लिंग का प्रतीक रजत ध्वज दंड था। पीछे पुलिस का अश्वरोही दल राजा की शाही शान का बखान करते निकला। पुलिस बैंड की समधुर स्वर लहरी ने भक्तों का मन मोह लिया।
पीछे अनुशासित सशस्त्र बल की टुकड़ी को बाहर से आए श्रद्धालु निहारते रहे। इसके बाद भक्तों को जैसे ही फूलों से सजी राजाधिराज की पालकी नजर आई वे नतमस्तक हो गए। मुखमंडल पर कोटी सूर्य की आभा लिए भगवान चंद्रमौलेश्वर के दर्शन होते ही भक्त आल्हादित होकर जय महाकाल का घोष करने लगे। सवारी में संत महात्मा, स्वयं सेवक, भजन मंडल, झांझ डमरू दल शामिल थे
परंपरागत मार्गों से होकर पालकी शाम करीब 4.55 पर मोक्षदायिनी शिप्रा के रामघाट पहुंची। यहां पुजारियों ने भगवान का शिप्रा जल से अभिषेक कर पूजा अर्चना की। पूजन पश्चात सवारी विभिन्न् मार्गों से होते हुए शाम करीब 7.20 बजे मंदिर पहुंची।
नजर आई खामी...धीरे चली पालकी
कार्तिक-अगहन मास की सवारी में श्रावण-भादौ की अपेक्षा भीड़ कम रहती है। सवारी में शामिल होने के लिए दल भी कम आते हैं। इसी को दृष्टिगत रखते हुए प्रशासन ने व्यवस्था जुटाने में उतनी गंभीरता नहीं दिखाई। लेकिन इस बार बड़ी संख्या में दल व श्रद्धालु सवारी में शामिल हुए। भजन मंडलियां डीजे वाहन लेकर भी पहुंची। कुल मिलाकर कारवां राजाधिराज की शाही शान के मुताबिक था। व्यवस्था नहीं होने से पालकी के आगे ही भजन मंडलियां लग गई। इससे पालकी धीरे चली
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