इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल' के दूसरे दिन चर्चा में रहे कनाडा के लेखक तारेक फतह तीसरे दिन भी मौजूद थे, लेकिन आकर्षण का केंद्र बनी किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर लेखिका लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी। अपनी तार्किक बातों से उन्होंने सिद्ध किया कि ज्ञान को लैंगिक सीमाओं में कैद नहीं किया जा सकता है। देश-दुनिया में किन्नरों की स्थिति सुधारने और उन्हें अधिकार दिलाने के लिए प्रयत्नशील त्रिपाठी ने सहज भाव से स्वीकार किया कि उन्हें किन्नर होने में न तो किसी तरह की शर्मिंदगी है और न ही कोई परेशानी। इसलिए अगले जन्म में भी वो किन्नर बनना ही पसंद करेंगी। सकारात्मकता का मंत्र देते हुए उन्होंने कहा कि खुद को आईने में निहारते हुए फील कीजिए कि ईश्वर ने आपको कितना सुंदर बनाया है। मतलब ये कि आप जैसे हैं, उस स्थिति में खुद को कंफर्टेबल फील करें।
कोई अगर आप पर कोई भद्दा कमेंट करता है तो समझिए कि वो आपसे ईर्ष्या रखता है। ऐसे लोगों के सामने झुकने के बजाय पूरी हिम्मत और ताकत से उन्हें मुंहतोड़ जवाब दें। उन्होंने कहा कि पैरेंट्स को भी चाहिए कि वो बच्चों को ऐसा कंफर्ट फील कराएं, जिससे वो अपनी हर बात उनसे सहजता से साझा कर सकें। इससे उनके साथ होने वाली मिस-हैपनिंग्स की आशंका कम हो जाएगी।
प्रेम से ही दूर होगी समाज में बढ़ रही खाई
समाज के विभिन्न् वर्गों में बढ़ रही खाई को दूर करने के लिए 'प्रेम' का मंत्र देते हुए लक्ष्मी ने कहा कि जब हमारी पहली गुरु की मृत्यु हुई तो पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी शोक मनाया गया। हममें से कई लोग पढ़े-लिखे नहीं है, फिर भी वॉयस मैसेज के जरिए अपने पड़ोसी देशों तक के किन्न्रों से जुड़े हैं। जब हम लोग आपस में मुहब्बत से रह सकते हैं तो आप लोग क्यों नहीं रह सकते।
झुर्रियों भरे चेहरे पर खुशियां क्यों नहीं लहराती
बुढ़ापे का समय शांति से जीने का होता है, मगर समाज में बुजुर्ग मां-बाप को वृद्धाश्रम भेजने का चलन बढ़ रहा है। जो बुजुर्ग घरों में रहते हैं, उनकी झुर्रियों में भी खुशियां क्यों नहीं लहराती हैं? इससे बेहतर तो किन्नर समाज है जहां वृद्धाश्रम का चलन ही नहीं है। हम अंतिम वक्त तक उनकी पूरी देखभाल और संभाल करते हैं। जिस दिन हमारे जन्मदाता लैंगिकता के आधार पर हमें अपने घरों से बेदखल करना बंद कर देंगे उस दिन से किन्नर भी आम लोगों की तरह समाज में जिंदगी बिता सकेंगे।
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