इंदौर। Support of CAA सीएए पर जनता का समर्थन जुटाने के लिए की गई तिरंगा यात्रा आरएसएस की सटीक रणनीति के कारण हो पाई। भोपाल का आयोजन तो भाजपा की अगुआई में हुआ, लेकिन इंदौर में संघ और भाजपा ने अपनी रणनीति बदल ली। तिरंगा यात्रा की तैयारियों में दोनों संगठनों ने पर्दे के पीछे से ताकत लगाई, लेकिन आगे भारत सुरक्षा मंच को किया। संघ ने तो अपने स्तर पर जनजागरण किया ही, भाजपा ने भी सीएए के समर्थन में शहर की 400 बैठकों के अलावा मतदान व बूथ केंद्रों पर जिलेभर में 4 हजार से ज्यादा बैठकों के माध्यम से जनजागरण अभियान चलाया।
दिसंबर अंत में भाजपा के राष्ट्रीय और प्रादेशिक संगठन की ओर से पत्र आया कि सीएए के समर्थन में जनजागरण के लिए बैठकें करनी है तो इंदौर का भाजपा संगठन उसी समय से जुट गया था। आयोजन स्वामी विवेकानंद की जयंती को चुनना भी राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए ही किया गया था। तारीख तय करने के साथ ही भाजपा कार्यालय के साथ शहर के सभी 85 वार्डों में बैठकों का दौर शुरू हो गया। विभिन्न् चौराहों व प्रमुख स्थलों पर करीब 5 लाख लोगों के हस्ताक्षर कराए गए। जिले में भी ग्रामीण भाजपा व संघ के अनुषंगिक संगठनों ने बूथ व मतदान केंद्र तक पदाधिकारी भेजे।
शर्त नहीं तोड़ी फिर भी निकलती गईं रैलियां
आयोजन की दिलचस्प बात यह भी रही कि प्रशासन ने रैली की अनुमति नहीं दी थी। आयोजनकर्ताओं ने रैली निकाली भी नहीं, लेकिन शहर के अलग-अलग हिस्सों से जो लोग दशहरा मैदान पर समूहों के रूप में आ रहे थे, उनके कारण रास्तेभर छोटी-छोटी तिरंगा यात्राओं का आभास हो रहा था। यानी प्रशासन की अनुमति की शर्त का पालन भी हो रहा था और तिरंगा यात्रा का उद्देश्य भी पूरा हो रहा था।
संविधान की शपथ और पूरे सम्मान से राष्ट्रगान
आयोजन के अंतिम दौर में लोगों को भारतीय संविधान का पालन करने, देश की एकता और अखंडता की शपथ भी दिलाई गई। अंत में पूरे सम्मान के साथ राष्ट्रगान हुआ। उधर, आयोजन शुरू होने से पहले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, विधायक रमेश मेंदोला नजर आए। कुछ देर रहे, फिर चले गए। इसके बाद सांसद शंकर लालवानी मुस्लिम समाज के एक समूह के साथ दिखे। भाजपा विधायक उषा ठाकुर समर्थकों के साथ तिरंगा लेकर दिखीं। भाजपा नेता कृष्णमुरारी मोघे सहित कई भीड़ का हिस्सा बने हुए थे।
पारंपरिक परिधानों में पहुंचे कई समाजों के लोग
सीएए के समर्थन में कई समाजों के लोग अपने पारंपरिक परिधानों में पहुंचे। ये अनेकता में एकता का पर्याय बन गए थे। इनमें सिख, सिंधी, महाराष्ट्रीयन व माहेश्वरी समाज के लोग बड़ी संख्या में थे। कुशवाह, पारसी, मुस्लिम, बोहरा समाज ने भी भागीदारी की। सिख समाज के लोग केसरी पगड़ी पहने हुए थे तो महाराष्ट्रीयन महिलाएं पारंपरिक साड़ी और सिर पर साफा बांधे हुए थीं। सिंधी समाज के लोग सिंधी टोपी पहने हुए थे। बोहरा समाज भी अपनी पारंपरिक वेशभूषा में था। ईसाई और पारसी समाजनन भी इसमें शामिल हुए। विभिन्न समाजों के धर्मगुरु व पदाधिकारी भी थे।
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