शास्त्रों में एकादशी तिथि का बहुत महत्व बताया गया है और इसको समृद्धिदायक और सुख-संपत्ति की प्रदाता कहा गया है। एक साल में 24 एकादशी तिथि होती है। इन्ही में से एक एकादशी षटतिला एकादशी है। इस साल षटतिला एकादशी का व्रत 20 जनवरी सोमवार को है।
षटतिला एकादशी व्रत कथा
शास्त्रोकित कथा के अनुसार एक संमय नारद मुनि तीनों लोकों का भ्रमण करने के बाद भगवान विष्णु से मिलने के लिए गए। नारदजी ने विष्णुजी से आग्रह किया कि वो उनको षटतिला एकादशी के व्रत की कथा सुनाए। नारदजी की विनती पर श्रीहरी ने षटतिला एकादशी की कथा सुनाना शुरू किया। भगवान विष्णु ने कहा -
एक समय एक राज्य में भगवान की परम भक्त एक ब्राह्मणी रहती थी। वह पूरे विधि विधान के साथ व्रतों को करती थी और उनके नियमों का भी पालन करती थी। ब्राह्मणी ने एक बार एक महीने तक व्रत का संकल्प लिया। एक महीने तक व्रत करने से वह काफी कमजोर हो गई, लेकिन व्रत के विधान का विधिवत पालन करने से उसकी काया शुद्ध हो गई। उस समय भगवान विष्णु ने सोंचा कि ब्राह्मणी को विष्णुलोक तो मिल जाएगा लेकिन उसकी आत्मा भटकती रहेगी क्योंकि वो अतृप्त ही है,क्योंकि ब्राह्मणी ने कठोर व्रत के दौरान किसी को दान-पुण्य नहीं किया था इस कारण से उसको विष्णु लोक में जाकर मुक्ति मिलना असंभव था।
अपनी भक्त की मुक्ति के लिए भगवान विष्णु ने खुद एक भिखारी का रूप धारण किया और उनके घर पर भिक्षा लेने पहुंच गए। उन्होंने उसके घर पर जाकर भिक्षाटन के लिए आवाज लगाई तो ब्राह्मणी मिट्टी का पिंड लेकर दरवाजे पर आई और उस पिंड को भिक्षुक बनकर भिक्षाटन करने आए भगवान विष्णु को दे दिया।
विष्णुलोक में मिला ब्राहम्णी को दंड
अपने भक्त का कल्याण कर भगवान विष्णु वहां से अपने लोक वापस लौट आए। देह त्याग के बाद ब्राह्मणी विष्णुलोक पहुंची, जहां पर उसको एक आम का पेड़ और एक कुटिया मिली, जो धन-धान्य से रहित थी। भक्त ब्राह्मणी यह सब देखकर काफी चिंतित हो गई और उसने इसका कारण पूछा। तब भगवान विष्णु ने कहा कि तुमने कभी भी किसी को धन-धान्य का दान नहीं दिया है इसलिए तुमको ऐसे दंड मिला है।
ब्राह्मणी ने लक्ष्मीनारायण से क्षमायाचना करते हुए इसका उपाय पूछा। तब श्रीहरी ने कहा कि तुम अपनी कुटिया का द्वार बंद कर लेना। इसके बाद जब देव कन्याएं तुम से मिलने के लिए आएं तो तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत की विधि पूछना। जब देव कन्याएं षटतिला एकादशी व्रत की विधि बता दें, उसके बाद कुटिया के द्वार खोलना। ब्राह्मणी ने इसके बाद देव कन्याओं के द्वारा बताए विधान से षटतिला एकादशी का व्रत किया ते उसको सभी सुखों की प्राप्ति हो गई।
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