निर्भया गैंगरेप के चारों दोषियों की फांसी की नई तारीख तय करने को लेकर दिल्ली हाइकोर्ट में आज सुनवाई होगी. इस मामले में हाइकोर्ट ने दिल्ली सरकार, तिहाड़ जेल प्रशासन और चारों दोषियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
कल हाईकोर्ट में विशेष सुनवाई के बाद ये सवाल उठ रहे हैं. इन सवालों का जवाब आज मिल सकता है जब दिल्ली हाइकोर्ट में विशेष सुनवाई होगी. केंद्र सरकार ने मुकेश, अक्षय, विनय और पवन की फांसी पर लगाई अनिश्चितकालीन रोक को लेकर निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए नई तारीख तय करने को लेकर याचिका दी है.
कल की सुनवाई के बाद हाइकोर्ट ने दिल्ली सरकार, तिहाड़ जेल प्रशासन और चारों दोषियों को नोटिस जारी कर आज 3 बजे तक जवाब मांगा है. वैसे तो शनिवार और रविवार को हाईकोर्ट में छुट्टी होती है लेकिन इस मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने आज और कल इस मामले पर विशेष सुनवाई करने का फैसला किया है.
अभी दोषियों के पास क्या-क्या विकल्प हैं मौजूद
* मुकेश के सभी कानूनी विकल्प खत्म हो चुके हैं क्योंकि अदालत उसकी सभी याचिकाएं खारिज कर चुकी है. राष्ट्रपति भी दया याचिका खारिज कर चुके हैं. इतना ही नहीं राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ दायर याचिका भी सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुकी है.
* विनय की क्यूरेटिव याचिका भी सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुकी है और राष्ट्ररपति ने दया याचिका भी खारिज कर दी है.
* वहीं अक्षय की भी क्यूरेटिव याचिका सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुकी है और उसकी दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है.
* निर्भया के हत्यारे पवन ने तो अभी तक क्यूरेटिव याचिका दायर नहीं की है. लिहाज़ा उसके पास क्यूरेटिव याचिका और दया याचिका का विकल्प मौजूद है.
केस को लंबा खींचने के लिए कर रहे हैं कोशिश
इतना ही नहीं यह दोषी तो राष्ट्रपति के फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर उस पर जुडिशल रिव्यू की मांग करते रहे हैं जैसे कि मुकेश ने की थी. ऐसे में अभी विनय और अक्षय भी केस को लंबा खींचने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जुडिशल रिव्यू की मांग कर सकते हैं. हालांकि मौजूदा नियमों के हिसाब से राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज होने के बाद दोषी के पास 14 दिन का वक्त होता है और इस 14 दिनों में वह जुडिशल रिव्यु से लेकर अपने परिवार से मिलने तक की मांग कर सकता है.
क्या हाई कोर्ट देगा दोषियों को एक-एक कर फांसी पर लटकाने का आदेश
ऐसे में अब केंद्र सरकार की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट यह तय करेगा कि क्या निचली अदालत ने जो अनिश्चितकालीन फांसी की तारीख टालने का आदेश दिया है वह सही है या नहीं. अगर हाई कोर्ट को लगता है कि वह आदेश सही नहीं है तो निचली अदालत को निर्देश दिया जाएगा कि वह एक नया डेथ वारंट जारी करे जिसमें दोषियों के फांसी का दिन और वक्त मुकर्रर किया जाए.
इतना ही नहीं हाई कोर्ट में बहस के दौरान दलीलें इस बात पर भी दी गई कि हाई कोर्ट यह भी तय करें क्या दिल्ली सरकार ने 2018 में दिल्ली जेल प्रिजन मैनुअल में जो बदलाव किया था वह सही था या नहीं. अगर हाई कोर्ट को लगता है कि वह ठीक नहीं था तो हाई कोर्ट दिल्ली सरकार द्वारा किए गए उस संशोधन को संविधान के खिलाफ मानकर खारिज भी कर सकती है. अगर ऐसा होता है तो फिर अलग-अलग दोषियों को अलग-अलग फांसी भी दी जा सकेगी.
निचली अदालत ही जारी कर सकता है डेथ वारंट
लेकिन यहां यह साफ कर देना जरूरी है कि नया डेथ वारंट हाई कोर्ट जारी नहीं कर सकता उसके लिए निचली अदालत में ही मामला जाएगा और वहीं से नया डेथ वारंट जारी हो सकेगा.
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