इस परमाण परीक्षण के बाद पाकिस्तान और अमेरिका दोनों अवाक रह गए थे.
आज से 46 साल पहले भारत ने पहला परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को चौंका दिया था. इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने ये करिश्मा कर दिखाया था. भारत के इस परीक्षण को जहां इंदिरा गांधी ने शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण करार दिया तो वहीं दूसरी तरफ अमेरिका ने भारत को परमाणु सामग्री और ईधन की आपूर्ति रोक दी थी. दरअसल ये परमाणु परीक्षण अमेरिका और पाकिस्तान दोनों को ही भारत का जवाब था. भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति संग्राम में मदद की और बांग्लादेश का निर्माण हुआ. पाकिस्तान ने इस प्रक्रिया में अपना आधे से ज्यादा भू-भाग और आधी जनसंख्या खो दी. इसके बाद से भारत, पाकिस्तान का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ था. उधर अमेरिका भारत के गुटनिरपेक्ष सिद्धांत से चिढ़ा बैठा था. इस ऑपरेशन का नाम Smiling Buddha (बुद्ध मुस्कराए) रखा गया था. इस परमाणु परीक्षण के बाद पाकिस्तान और अमेरिका दोनों अवाक रह गए थे. इस ऐतिहासिक दिन पर पढ़िए इस परीक्षण से जुड़ी खास बातें...
जीप के कारण परीक्षण में हुई देरी
18 मई के दिन परमाणु टेस्ट के लिए सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. विस्फोट पर नज़र रखने के लिए मचान को 5 किमी दूर लगाया गया था. इसी मचान से सभी बड़े सैन्य अधिकारी और वैज्ञानिक नज़र रखे हुए थे. आखिरी जांच के लिए वैज्ञानिक वीरेंद्र सेठी को परीक्षण वाली जगह पर भेजना तय हुआ. जांच के बाद परीक्षण स्थल पर जीप स्टार्ट ही नहीं हो रही थी. विस्फोट का समय सुबह 8 बजे तय किया गया था.
वक्त निकल रहा था और जीप स्टार्ट न होने पर सेठी दो किमी दूर कंट्रोल रूम तक चलकर पहुंचे थे. इसके पूरे घटनाक्रम के चलते परीक्षण का समय 5 मिनट बढ़ा दिया गया.
7 साल की जमकर मेहनत
इस टॉप सीक्रेट प्रोजेक्ट पर लंबे समय से एक पूरी टीम काम कर रही थी. 75 वैज्ञानिक और इंजीनियरों की टीम ने 1967 से लेकर 1974 तक 7 साल जमकर मेहनत की. इस प्रोजेक्ट की कमान BARC के निदेशक डॉ. राजा रमन्ना के हाथ में थी. रमन्ना की टीम में तब एपीजे अब्दुल कलाम भी थे जिन्होंने 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण की टीम का नेतृत्व किया था.
जब इंदिरा से मिली हरी झंडी
साल 1972 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर का दौरा करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वहां के वैज्ञानिकों को परमाणु परीक्षण के लिए संयंत्र बनाने की इजाज़त दी थी. लेकिन गांधी की ये इजाज़त मौखिक थी. परीक्षण के दिन से पहले तक इस पूरे ऑपरेशन को गोपनीय रखा गया था. यहां तक कि अमेरिका को भी इसकी कोई जानकरी नहीं लग पाई. नाराज़ अमेरिका ने परमाणु सामग्री और इंधन के साथ कई तरह के और प्रतिबंध लगा दिए थे. संकट की इस घड़ी में सोवियत रूस ने भारत का साथ दिया.
देश के रक्षा मंत्री को तब पता चला जब ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा
विस्फोट के कर्ता-धर्ता रहे राजा रमन्ना ने अपनी आत्मकथा 'इयर्स ऑफ पिलग्रिमिज' में इस बात का जिक्र किया है कि इस ऑपरेशन के बारे में इससे जुड़ी एजेंसियों के कुछ लोग ही जानते थे. इंदिरा गांधी के अलावा मुख्य सचिव पीएन हक्सर और एक और साथी मुख्य सचिव पीएन धर, भारतीय रक्षामंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. नाग चौधरी और एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन एच. एन. सेठना और खुद रमन्ना जैसे कुछ ही लोग इससे जुड़े प्रोग्राम और बैठकों में शामिल थे. इंदिरा गांधी सरकार ने इस ऑपरेशन में बस 75 वैज्ञानिकों को लगा रखा था. भारतीय सेना के प्रमुख जनरल जी.जी. बेवूर और इंडियन वेस्टर्न कमांड के कमांडर ही सेना के वो लोग थे, जिन्हें होने वाले इस ऑपरेशन की जानकारी थी.
इसे भारत के इतिहास के सबसे सीक्रेट ऑपरेशन्स में से एक माना जाता है. एक किताब में दावा किया गया है कि तत्कालीन रक्षामंत्री जगजीवन राम को भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी. उन्हें इस बारे में तभी पता चला जब ये ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूरा हो गया.
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