कोरोना वायरस से फैली महामारी पर दुनिया भर में शोध जारी है. मगर क्या बच्चों को भी इसके संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है?
क्या बच्चे कोरोना वायरस फैला सकते हैं? आखिर खुद उन्हें कितना इसका खतरा है? ये सवाल इसलिए अहम हो जाते हैं कि लॉकडाउन के बाद स्कूल खुलने जा रहे हैं. इसलिए बेहतर है पहले से इस बारे में जानकर तैयारी कर लें. जिससे आपके बच्चे को खतरे का सामना नहीं करना पड़े.
अबतक सामने आए शोध के मुताबिक बच्चों की तुलना में ज्यादा उम्र के लोगों को कोरोना वायरस अपनी चपेट में लेता है. इंग्लैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड में 24 अप्रैल तक ICU में दाखिल होनेवाले कोरोना प्रभावितों की औसत आयु 60 साल थी. वेल्स यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर ऑडिल्या वारेस कहती हैं, “कोरोना संक्रमित मरीजों में बच्चों का फीसद 1-5 के बीच पाया गया है. वयस्कों के मुकाबले बच्चों में वायरस के लक्षण हल्के होते हैं जबकि मौत का प्रतिशत बहुत कम.” ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मैथ्यू सनिप बच्चों और कम उम्र के लोगों पर कोरोना वायरस के प्रभाव का मुआयना कर रहे हैं. उनका कहना है कि बच्चे वायरस के फैलाव में मददगार में होते हैं या नहीं अभी इस सिलसिले में जानकारी नहीं के बराबर है. साउथ हैम्पटन यूनिवर्सिटी में महामारी रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर सिविल फास्ट कहते हैं, “सामने आए आंकड़े बताते हैं कि बच्चों में बीमारी के लक्षण कम होते हैं.”
उनके मुताबिक वयस्क लोगों में वायरस फैलने के अलग कारण होते हैं. ऐसी रिपोर्ट भी सामने आई है जिससे पता चलता है कि कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो कोरोना वायरस से ज्यादा प्रभावित हुए हैं मगर बाद में उनके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो गई. ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोप में बहुत सारे बच्चों को कोरोना वायरस से मिलते जुलते रोग कावासाकी से पीड़ित होते हुए देखा गया है. कावासाकी और कोरोना के लक्षण एक जैसे होते हैं. बीमारी की जद में आनेवालों को तेज बुखार, लो ब्लड प्रेशर और सांस लेने में दुश्वारी होती है. बच्चों को कोरोना वायरस से बीमारी हो सकती है मगर ये बहुत कम गंभीर स्थिति में पहुंचाता है. अगर आपका बच्चा बीमार है तो हो सकता है कोरोना के बजाए कोई और रोग या संक्रमण हो.
रॉयल कॉलेज के मुताबिक बच्चों में चंद लक्षण के जाहिर होने पर फौरन डॉक्टरों से संपर्क साधना चाहिए. जैसे बच्चों का रंग पीला पड़ जाए, हाथ लगाने पर उनका शरीर बहुत ठंडा महसूस हो, सांस लेने में दिक्कत हो रही हो, होंठ नीले पड़ जाएं, झटका आने लगे या फिर बच्चों में बेचैनी पाए जाने पर मेडिकल मदद की जरूरत होती है.
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