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भगवान जगन्नाथ के रथ की वापसी का उत्सव कड़ी सुरक्षा एवं कर्फ्यू के बीच श्रद्धालुओं के बिना बुधवार को शांतिपूर्ण तरीके से शुरू हुआ


(फाइल फोटो)


पुरी (ओडिशा): भगवान जगन्नाथ के रथ की वापसी का उत्सव कड़ी सुरक्षा एवं कर्फ्यू के बीच श्रद्धालुओं के बिना बुधवार को शांतिपूर्ण तरीके से शुरू हुआ. कोविड-19 महामारी के मद्देनजर यह समुद्र तटीय तीर्थ नगरी बंद जैसी स्थिति में है. भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र और उनकी बहन देवी सुभद्रा के रथों के 12वीं सदी के मंदिर लौटने की करीब तीन किमी लंबी यात्रा शुरू होने के चलते प्रशासन ने लोगों से घरों पर ही रहने और टीवी पर इस धार्मिक रस्म को देखने की अपील की है.


सूर्यास्त से पहले देवी-देवताओं को लेकर तीनों भव्य रथों के मंदिर के सिंहद्वार तक पहुंचने के बाद बहुड़ा यात्रा शांतिपूर्ण और सुगम तरीके से संपन्न हुई. इसके साथ ही, उनके जन्म स्थान माने जाने वाले श्री गुंडीचा मंदिर की नौ दिनों की यात्रा पूरी हो गई.


गोवर्द्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती, श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन के प्रमुख गजपति महाराज दिव्यसिंह देब और पुलिस महानिदेशक अभय ने महामारी के बीच उत्सव को सफलतापूर्वक संपन्न कराने में सहयोग देने के लिये लोगों और सेवादारों का आभार प्रकट किया.


डीजीपी ने लोगों से अनुरोध किया कि वे बृहस्पतिवार को देवी-देवताओं को स्वर्ण आभूषण से सुसज्जित करने के दौरान सहयोग करें.


23 जून को शुरू हुई थी विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा
विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा 23 जून को शुरू हुई थी. इस बार यह श्रद्धालुओं की उपस्थिति के बिना ही आयोजित की गई क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 22 जून को सिर्फ पुरी में इसकी अनुमति तो दे दी थी लेकिन साथ में यह शर्त भी निर्धारित कर दी कि इसमें सीमित संख्या में सेवादार शामिल होंगे और कोई भीड़ नहीं लगनी चाहिए.


तीनों देवी-देवता अपनी वार्षिक नौ दिनों की यात्रा श्री गुंडीचा मंदिर में संपन्न करेंगे, जो उनका जन्म स्थान है. वे अब बहुड़ा यात्रा के दौरान लकड़ी से बने रथों पर अभी श्री मंदिर या श्री जगन्नाथ मंदिर लौट रहे हैं.


रथ वापसी यात्रा के लिये सभी इतंजाम पुख्ता, लोगों से घरों में रहने की अपील


श्री गुंडीचा मंदिर और मुख्य मंदिर के बीच स्थित मुख्य सड़क के दोनों ओर हर साल देश-विदेश से आये श्रद्धालाओं की भारी भीड़ रहती थी, लेकिन इस बार यह सूना है. पुरी के जिलाधिकारी बलवंत सिंह ने कहा कि रथ यात्रा के लिये शीर्ष न्यायालय के आदेश के अनुपालन में सभी इंतजाम किये गये हैं.


सिंह ने कहा, ‘‘ग्रांड रोड पर श्रद्धालुओं को आने की अनुमति नहीं है. पुरी शहर में आने के लिये सभी प्रवेश स्थान सील कर दिये गये हैं और श्रद्धालुओं से घर पर ही रहने व टीवी पर बहुड़ा यात्रा देखने का अनुरोध किया गया है.’’


रथ यात्रा में सेवा देने के लिए 5,500 से अधिक लोगों की कोविड-19 जांच कराई गई


उन्होंने कहा कि सेवादारों, पुलिसकर्मियों और मंदिर अधिकारियों सहित 5,500 से अधिक लोगों की कोविड-19 जांच कराई गई और सिर्फ उन्हीं को इस कार्यक्रम में सेवा देने और रथ खींचने में हिस्सा लेने की अनुमति दी गई है जिनमें कोरोना वायरस संक्रमण की पुष्टि नहीं हुई.


श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन के मुख्य प्रशासक कृष्ण कुमार ने बताया कि बहुड़ा यात्रा में शामिल सभी सेवादारों की कोविड-19 जांच रिपोर्ट नेगेटिव आई थी.


सुरक्षा बलों की 70 से अधिक पलटनें तैनात


रथ यात्रा से पहले मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने तैयारियों की समीक्षा की थी और पुरी प्रशासन से निर्बाध बहुड़ा यात्रा सुनिश्चित करने के लिये कहा था. सुरक्षा बलों की 70 से अधिक पलटनें तैनात की गई हैं और लोगों की भीड़ जमा होने से रोकने के लिये कई स्थानों पर अवरोधक लगाए गये हैं. उल्लेखनीय है कि एक पलटन में करीब 33 कर्मी होते हैं.


सीसीटीवी कैमरे से रखी जा रही है नजर
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सौमेंद्र प्रियदर्शी ने कहा कि मंगलवार को रात 10 बजे से शुरू हुआ कर्फ्र्यू बृहस्पतिवार रात 10 बजे तक जारी रहेगा. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि पुलिसकर्मी सख्त निगरानी कर रहे हैं और वहां काफी संख्या में सीसीटीवी कैमरे लगाए गये हैं.


श्री गुंडीचा मंदिर से देवी-देवताओं को बाहर लाने और वापसी यात्रा के लिये ‘जय जगन्नाथ’ और ‘हरि बोल’ के उद्घोष के बीच उन्हें तीन भव्य रथों पर विराजमान करने से पहले विशेष अनुष्ठान किये गये.


चार जुलाई तक सिंह द्वार में रखे जाएंगे रथ
भगवान जगन्नाथ तीनों रथों में सबसे बड़े रथ पर सवार थे जो 45 फुट ऊंचा था और जिसका नाम नंदीघोष है. वहीं, भगवान बलभद्र का रथ 44 फुट ऊंचा था जबकि सुभद्रा का रथ 43 फुट ऊंचा था. गजपति महाराज दिव्यसिंह देब ने छेरा पहानरा रस्म पूरी की. इसके बाद रथों पर पुष्प वर्षा की गई और सुंगधित जल छिड़का गया. इसके बाद रथों को सेवादार सिंह द्वार ले गये, जहां उन्हें चार जुलाई तक रखा जाएगा.


देवी-देवता अंतत: मुख्य मंदिर में प्रवेश करेंगे और फिर उन्हें एक समारोह के बाद रत्न सिंहासन पर विराजमान किया जाएगा. इससे पहले देवी-देवताओं को बृहस्पतिवार को उनके रथों पर स्वर्ण आभूषणों से सज्जित किया जाएगा. इस रस्म को देखने के लिये हर साल भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं.


 


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