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एमएसपी: कृषि मंत्री के बयान पर क्यों भरोसा नहीं कर पा रहे किसान?


भरोसा दिलाया है कि फसल का एक-एक दाना न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाएगा और मंडियां बंद नहीं होंगी. सवाल ये है कि क्या ऐसे बयान एग्रीकल्चर एक्ट में एमएसपी की गारंटी देने की बराबरी कर सकते हैं? क्या ऐसे वादों का कोई कानूनी मतलब है. क्या इन वादों के विपरीत हालात होने पर इन नेताओं के खिलाफ कोर्ट जाया जा सकता है? ये किसानों के सवाल हैं.
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट पद्मश्री ब्रह्मदत्त कहते हैं, “किसी भी मंत्री या मुख्यमंत्री के बयान का कोई कानूनी महत्व नहीं है. उस बयान के आधार पर कोई किसान कोर्ट में चैलेंज नहीं कर सकता कि उसे वादे के बावजूद एमएसपी नहीं मिल रहा. कोर्ट में उसी बात को चैलेंज किया जा सकता है जिसका प्रावधान कानून में हो और सरकार उसका पालन न करवा रही हो. व्यक्ति नहीं कानून गारंटी दे तब वो किसानों के काम की बात होगी. अगर कोर्ट में नेताओं के बयानों को चैलेंज किया जा सकता तो देश के तमाम वादा फरामोश नेता जेल में होते.”


दूसरी ओर, राष्ट्रीय किसान महासंघ के संस्थापक सदस्य बिनोद आनंद कहते हैं, “अगर कोई मंत्री या मुख्यमंत्री बयान दे रहा है कि एमएसपी पर खरीद जारी रहेगी और मंडियां बंद नहीं होंगी तो उसे एक्ट में एक लाइन लिखने में क्या दिक्कत है? आप एक्ट में नहीं लिख रहे हैं इसका मतलब है कि आप किसानों को उचित दाम नहीं देना चाहते. आपके बयानों को मानकर किसान धोखे का शिकार नहीं होना चाहता. जब आप पहले ही कह रहे हैं कि एमएसपी से अच्छा दाम मिलेगा तो एमएसपी की गारंटी देने में परेशानी क्यों हो रही?”
एमएसपी की गारंटी देने के दो फायदे
कृषि मामलों के जानकार आनंद कहते हैं, “सरकार निजी क्षेत्र के लिए एमएसपी से नीचे खरीद को गैर कानूनी करार देकर इसे एक बेंचमार्क बना दे. इससे दो फायदे होंगे, पहला-किसान खुश रहेगा और दूसरा सरकार के ऊपर एमएसपी पर खरीद करने का ज्यादा दबाव नहीं रहेगा. क्योंकि खुले बाजार में भी एमएसपी या उससे अधिक रेट मिल रहा होगा. इस तरह हम तो किसान और सरकार दोनों के भले की बात कर रहे हैं.”


कृषि मंत्री ने क्या कहा? 

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि विधेयक, किसानों को मार्केटिंग के विकल्प देकर उन्हें सशक्त बनाएगा. कांग्रेस ने भ्रम फैलाने की कोशिश की है कि एमएसपी पर खरीद खत्म हो जाएगी, जो कि पूरी तरह असत्य है. तोमर ने सवाल किया कि किसानों के पास मंडी में जाकर लाइसेंसी व्यापारियों को ही अपनी उपज बेचने की विवशता क्यों, अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा. खेती-किसानी में निजी निवेश से होने से तेज विकास होगा तथा रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि कृषि मंत्री के बयान पर किसी किसान को विश्वास क्यों नहीं है?


क्यों विश्वास नहीं कर पा रहा किसान?

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार वीएम सिंह कहते हैं कि हम सरकार की बात पर विश्वास कैसे कर लें. सरकार ने पहले यूपी वालों से कहा था कि 14 दिन में गन्ने का दाम देंगे वरना ब्याज देंगे, उसे पूरा नहीं किया. आपने कहा था कि किसानों की इनकम डबल होगी, वो बात भी जुबानी थी. आपने कह दिया कि कर्जमाफी करेंगे उसे भी पूरा नहीं किया. इस एक्ट में तो आपने हमसे कोर्ट जाने का भी अधिकार छीन लिया. बाद भी आप कह देंगे हमने तो ऐसे ही कहा था. फिर हम आपकी बात पर कैसे विश्वास करें कि हमें एमएसपी मिलती रहेगी और मंडियां बंद नहीं होगी.


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