मॉनसून को फ्लू और इंफेक्शन का मौसम कहा जाता है. मॉनसून के बाद सितंबर से नंवबर के बीच शरद ऋतु शुरू होती है, जिसे पतझड़ भी कहा जाता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस दौरान पैदा होने वाले बच्चों में फूड एलेर्जी बुखार और अस्थमा जैसी बीमारियों की संभावनाएं काफी ज्यादा होती हैं. पूरी दुनिया में ब्रिटिश लोगों में एलेर्जी रेट सबसे ज्यादा है. यहां तकरीबन 20 प्रतिशत लोग किसी ना किसी एलेर्जी डिसॉर्डर का शिकार हैं.
कोलोराडो (अमेरिका) की एक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. जेसिका हुई अपने क्लीनिक में ऐसे बच्चों का इलाज करती हैं. उन्होंने बताया कि सिंतबर से नवंबर के बीच पैदा हुए बच्चों में एलेर्जी का खतरा सबसे ज्यादा होता है. सूखी और चटकी हुई स्किन के जरिए शरीर में दाखिल होने वाले एलेर्जेन्स एलेर्जी का कारण बनते हैं, जिसे 'एटॉपि मार्च' कहा जाता है.
कैसे नवजात को घेरती है एलेर्जी?
डॉक्टर हुई ने बताया कि जब फूड पार्टिकल्स डायजेस्ट (पाचन) होने की बजाय स्किन में प्रवेश करने लगते हैं तो शरीर इन्हें बाहरी कण मानकर एंटीबॉडी जेनरेट करने लगता है. बच्चों में एलेर्जी होने का यही सबसे बड़ा कारण है. ये पता लगाने के लिए भी एक ट्रायल कंडक्ट किया गया है कि आखिर शरद ऋतु में पैदा हुए बच्चों के स्किन बैरियर इतने कमजोर क्यों होते हैं, जहां एलेर्जेंस आसानी से प्रवेश कर लेते हैं.
हालांकि डॉक्टर्स ऐसा मानते हैं कि बच्चों को बेहद कम उम्र में भी ऐसी एलेर्जी से बचाया जा सकता है. बच्चों के गर्भ से बाहर आते ही इसका इलाज संभव है. यानी इस दौरान भी नवजात शिशुओं को 'एटॉपिक मार्च' से बचाया जा सकता है.
0 टिप्पणियाँ