हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में बढ़ते कोरोना संक्रमण को देखते हुए शहरवासी खौफ़ के साए में जी रहे हैं. एक ओर जहां कोरोना के मामलों में लगातार बढ़ौतरी हो रही है. वहीं मरने वालों का आंकड़ा भी कम नहीं है. आए दिनों रोजाना करीब 4 से 6 मरीजों की प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी (IGMC) में इलाज के दौरान मौत हो रही है. मरीजों का शव जलाने के लिए प्रशासन शहर के एकमात्र श्मशानघाट पर ले जाते हैं, जिससे अन्य मरने वालों के शव जलाने के लिए उसी शमशान घाट का प्रयोग किया जाता है, लेकिन एक ही शमशान घाट होने से शहर के लोगों ने वायरस फैलने का अंदेशा जताया है.
क्या बोले शहरवाली
शहरवासियों का कहना है कि प्रशासन भले ही कोरोना संक्रिमत शव को जलाने के बाद शमशान घाट को सेनेटाइज किया जाता हो, लेकिन कई अस्पताल से शमशान घाट कनलोग तक जाने वाले रास्ते को शुरुआती मौतों के बाद सेनेटाइज नहीं किया गया है. उन्होंने प्रशासन पर सवाल उठाया है कि क्या पता कोरोना संक्रमित शव को जलाने के बाद एकमात्र शमशान घाट को सेनेटाइज किया जाता है या नहीं. लोगों का कहना है कि कोरोना काल में कई दानी संस्थाओं और सज्जनों ने सरकार को कोरोड़ों रुपए दान किए हैं लेकिन सरकार ने न तो किसी को किसी तरह की सहायता राशि दी है और न ही कोरोना से निपटने के लिए कोई खास प्रबन्ध किये हैं.
कोरोना से ग्रस्त शव को जलाने के लिए अलग हो प्रबंध
यहां तक कि कोरोना से मरने वालों के शव जलाने के लिए कोई अलग से शमशान घाट नहीं बनाया है जिससे अन्य रुप से मरने वाले लोगों के साथ शमशान घाट तक आने वाले को वायरस के फैलने की आशंका रहती है.उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि एक तरफ शहर में कोरोना के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है वहीं दूसरी तरफ इसको रोकने के लिए प्रशासन की ओर से कोई उचित कदम नहीं उठाया है. हालांकि, नगर निगम शिमला भी इस मामले पर गम्भीर नहीं दिखाई देता है. लोगों का कहना है कि वे इस मामले पर डीसी शिमला को ज्ञापन सौंपेंगे, ताकि कोरोना के बढ़ते संक्रमण को अस्पताल से लेकर शमशान घाट तक रोका जा सके.
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