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इस गांव में 27 साल से नहीं हुआ मतदान, फिर भी चुना जाता है सरपंच


 हरदा। आज के दौर में लोग एकल परिवार में रहना पसंद करने लगे हैं। किसी विषय को लेकर एक परिवार में ही सदस्यों की धारणा भिन्न-भिन्न होती है। वहीं राजनीति में तो ऐसे बिरले उदाहरण ही मिलते हैं, जब राजनीतिक दल और इनके नेता किसी मामले को लेकर एकमत हो जाएं। इसके अलावा जब साम-दाम-दंड-भेद से चुनाव जीते जाते हों। गांव के छोटे से छोटे चुनाव में लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हों तब किसी गांव में लगभग तीन दशक से सर्वसम्मति से कोई चुनाव होता आ रहा हो, ऐसे उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं, लेकिन हरदा जिले में एक ऐसी ग्राम पंचायत है, जहां बीते 27 साल से आपसी सहमति से सरपंच और पंच चुने जा रहे हैं।


जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी दूर ग्राम बूंदडा पंचायत का गठन 1993 में हुआ था, तब से आज तक इस गांव में कभी सरपंच, पंच को लेकर मतदान की नौबत नहीं आई। ग्रामीण अपना सरपंच-पंच चुनने के लिए गांव के बजरंग बाबा मंदिर के ओटले पर पहुंच जाते हैं। यहां पर सर्वसम्मति से अपना पंच और सरपंच चुन लिया जाता है। चुने गए व्यक्ति का निर्वाचन फार्म भरवाते हैं और निर्विरोध चुनाव के माध्यम से वह व्यक्ति सरपंच- पंच निर्वाचित हो जाता है।







निर्वाचन आयोग ने पांच लाख से किया सम्मानित


ग्राम पंचायत बूंदडा के सरपंच नारायण प्रसाद उईके ने बताया कि चुनाव नहीं होने के कारण निर्वाचन आयोग ने पिछली बार पांच लाख रुपये की राशि से पंचायत को सम्मानित किया था। पंचायत में 1013 मतदाता हैं, जिसमें 498 महिला और 515 पुरुष शामिल हैं। उईके ने बताया कि इस पंचायत में पहले सरपंच गोकुल बंड थे। इसके बाद नरेंद्र पालीवाल, निर्मला पालीवाल, सालराम ओमकर सरपंच रहे, लेकिन सभी सरपंच सर्व सम्मति से चुने गए।







इसी गांव के संतोष शर्मा बताते हैं कि बूंदड़ा को साल 1993 में पंचायत का दर्जा मिला। इस दौरान पहली बार सरपंच पद के लिए मतदान होना था, लेकिन सभी ग्रामीण बजरंग बाबा मंदिर के ओटले पर एकत्रित हुए। सबने तय किया कि गांव में मतदान की जगह सर्वसम्मति से सरपंच चुना जाना चाहिए, जिसके बाद गोकुल बंड गांव के पहले सरपंच चुने गए। तीन दशक से परंपरा चल रही है। दिनेश बिजगावने का कहना है कि मतदान नहीं होने से शासन की राशि और समय दोनों बचते है। एक अन्य ग्रामीण गौरी शर्मा बताते हैं कि चुनाव में मनभेद होने का खतरा रहता है। गांव में सब लोग परिवार की तरह हैं, इसलिए कभी कोई दिक्कत नहीं होती।



ग्राम पंचायत का गठन 1993 में हुआ था। इसके बाद से इस पंचायत में कभी भी सरपंच, पंच के लिए चुनाव नहीं हुए हैं। ग्रामीण आपसी सहमति से सरपंच का चुनाव करते हैं। इसके लिए निर्वाचन आयोग द्वारा भी गांव को सम्मानित किया जाता है। गांव के लोग एक परिवार की तरह रहते 


 


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