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नवरात्रि के छठें दिन मां कात्यायनी देवी की पूजा होती है।


नवरात्रि के छठें दिन मां कात्यायनी देवी की पूजा होती है। इनकी कृपा से सारे कार्य पूरे हो जाते हैं। वे बैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट हुईं थीं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। अतः ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यान ने भगवती पराम्बा की कठिन उपासना की थी। ऋर्षि की इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए देवी कात्यायनी कहलाईं। मां के दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में हैं तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। मां के बाईं तरफ ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल है। मां का वाहन सिंह है।


Katyayani का पूजा मंत्र


Katyayani की उपासना से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। लोगों का रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाता है। इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है। चंद्राहासोज्ज्वलकरा शार्दुलवरवाहना। कात्यानी शुभं दद्घादेवी दानवघतिनी।।







इनकी चार भुजाएं हैं, बाएं दो हाथों में कमल और तलवार है, जबकि दाहिने दो हाथों से वरद एवं अभय मुद्रा धारण किए हुए हैं। देवी लाल वस्त्र में सुशोभित हो रही हैं।


Katyayani को यह लगाएं भोग


माता कात्यायनी की पूजा में लाल या पीले वस्त्र धारण करें। कुमकुम, अक्षत, मेंहदी, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेंहदी और वस्त्र समर्पित करें। देवी को 3 गांठ हल्दी की चढ़ाएं और इनको अपने पास रख लें। माता को शहद अर्पित करें। शहद को चांदी के या मिटटी के पात्र में समर्पित करना सर्वश्रेष्ठ रहेगा। माता को शहद चढ़ाने से साधक की आकर्षण क्षमता में वृद्धि होगी और प्रभाव भी बढ़ेगा।







Maa Katyayani Katha


पौराणिक मान्यता है कि कात्यायन नाम के एक साधु ने त्रिदेवों को अपनी तपस्या से खुश करके मां दुर्गा को अपनी बेटी के रुप में मांगा था। इसके बाद मां दुर्गा ने कात्यायन की बेटी के रुप में जन्म लिया और इसलिए इनका नाम देवी कात्यायनी पड़ा।


ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, गोपियों ने कृष्ण की प्राप्ति के लिए इनकी पूजा की थी। विवाह संबंधी मामलों के लिए इनकी पूजा अचूक होती है। ज्योतिष में बृहस्पति का संबंध मां कात्यायानी से बताया गया है।



देवगुरु बृहस्पति उच्च शिक्षा, धार्मिक कार्यों, संतान, विवाह और मांगलिक कार्यों के कारक माने गए हैं। देवी कात्यायिनी की पूजा से बृहस्पति के बुरे प्रभाव कम होते हैं। गोधूली वेला के समय पीले अथवा लाल वस्त्र धारण करके इनकी पूजा करनी चाहिए।


इनको पीले फूल और पीला नैवेद्य अर्पित करें, शहद अर्पित करना विशेष शुभ होता है। मां को सुगंधित पुष्प अर्पित करने से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं और प्रेम संबंधी बाधाएं भी दूर होती हैं।



Maa Katyayani मंत्र:


ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥


Maa Katyayani स्तुति:


या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।


नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


Maa Katyayani स्त्रोत:


कञ्चनाभां वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।


स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोऽस्तुते॥


पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।



सिंहस्थिताम् पद्महस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥


परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।


परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥


विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।


विश्वाचिन्ता, विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥


कां बीजा, कां जपानन्दकां बीज जप तोषिते।


कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥


कांकारहर्षिणीकां धनदाधनमासना।



कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥


कां कारिणी कां मन्त्रपूजिताकां बीज धारिणी।


कां कीं कूंकै क: ठ: छ: स्वाहारूपिणी॥


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