शक्ति पर्व नवरात्र की शुरुआत शनिवार से हो रही है। श्रीमद् देवी भागवत के अनुसार नवरात्र में संकल्प के अनुसार घट स्थापना की जानी चाहिए। घट स्थापना में मुहूर्त, कलश व योग विशेष माने जाते हैं।
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला ने बताया कि घट स्थापना के लिए पूर्व दिशा में ईशान कोण, पश्चिम दिशा में वायव्य कोण तथा उत्तर दिशा का मध्या- विशेष माना गया है। नवरात्र की प्रतिपदा पर शुभ मुहूर्त में धातु या मिट्टी के लाल रंग का कलश स्थापित करना चाहिए।
सर्वप्रथम पूजन स्थल को पवित्र करें, पश्चात कलश में शुद्घ जल भरें। यदि संभव हो तो तीर्थों के जल से कलश को परिपूर्ण करना श्रेष्ठ माना गया है। जल पूरण करने के बाद कलश में पंच रत्न व हल्दी तथा लाल व पीले पुष्प डालें।
कलश के जल में हल्दी मिश्रित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। ऐसा करने से कार्य की सिद्धि, रोग दोष का निवारण तथा बहारी बाधा का प्रभाव समाप्त होता है। जल भरने के बाद कलश पर पान के पत्ते (डंठल वाला पान) तथा नारियल रखें। कलश कंठ पर मोली अर्पित करने के बाद पंचोपचार पूजन कर नैवेद्य लगाएं। आरती के बाद संकल्प को दोहराकर देवी से मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करें।
संकल्प के अनुसार करें कलश की स्थापना
- आर्थिक उन्नति के लिए स्वर्ण कलश स्थापित करने की भी मान्यता है।
- घर परिवार में सुख शांति के लिए चांदी कलश स्थापना की मान्यता है।
- तंत्र की सफलता के लिए तांबे के कलश की स्थापना का विधान है।
- नेतृत्व क्षमता को विकसित करने के लिए पंच धातु का कलश स्थापित करें।
- शत्रु नाश व सर्वत्रविजय के लिए अष्ट धातु का कलश स्थापित करना चाहिए।
परंपरा में जवारे का महत्व
स्थापना की परंपरा में जवारे का महत्व है। पूजन स्थल पर मिट्टी के कलश पर रखे सरावले में तीर्थ की मिट्टी भरकर उसमें जवारे की स्थापना करना चाहिए। नौ दिन तक यथा संकल्प अनुसार जवारे का पूजन करें। नवरात्र की पूर्णाहुति पर जवारे का तीर्थ पर पूजन करें। जवारे को तिजोरी, अन्न के भंडार तथा बच्चों के पढ़ाई वाले स्थान पर रखने से महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा महाकाली व अन्नपूर्णा का वास रहता है।
नवरात्र पर घट स्थापना के शुभ मुहूर्त (17 नवंबर ) - सुबह 8 से 9.30 बजे तक -दोपहर 12.30 से 2.00 बजे तक -दोपहर 2.00 से 3.30 बजे तक -दोपहर 3.30 से शाम 5.00 तक (मुहूर्त ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला के अनुसार)
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