शरद पूर्णिमा पर इस बार अमृतसिद्घि योग में चंद्र किरणों से अमृत बरसेगा। धर्म, अध्यात्म व आयुर्वेद की दृष्टि यह दिन विशेष माना जा रहा है। इस दिन मध्यरात्रि में चंद्रमा की रोशनी में केसरिया दूध व खीर प्रसादी रखने तथा मध्यरात्रि के उपरांत सेवन करने की परंपरा है। मान्यता है इससे रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है तथा मनुष्य वर्षभर निरोगी रहता है।
ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला के अनुसार 30 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा शुक्रवार के दिन आ रही है। संयोग से इस दिन मध्यरात्रि में अश्विनी नक्षत्र रहेगा। 27 योगों के अंतर्गत आने वाला वज्रयोग, वाणिज / विशिष्ट करण तथा मेष राशि का चंद्रमा रहेगा।
वर्षों बाद आ रहे ऐसे संयोग में आयु व आरोग्यता के लिए आयुर्वेद का लाभ लिया जा सकता है। पं.डब्बावाला ने बताया ज्योतिष शास्त्र में अलग-अलग योग संयोग का उल्लेख है। इनमें अमृतसिद्घि, सर्वार्थसिद्घि, त्रिपुष्कर, द्विपुष्कर या रवियोग विशिष्ट योग माने गए हैं। शरदपूर्णिमा पर मध्यरात्रि में शुक्रवार के साथ अश्विनी नक्षत्र होने से अमृतसिद्घि योग बन रहा है। इस योग में विशेष अनुष्ठान, जप, तप, व्रत किया जा सकता है।
मोह रात्रि की मान्यता
पौराणिक मान्यता में तीन रात्रि विशेष मानी गई हैं। इनमें मोहरात्रि, कालरात्रि तथा सिद्घरात्रि विशेष है। शरद पूर्णिमा को मोह रात्रि कहा गया है। इसका उल्लेख श्रीमद्देवीभागवत के शिव लीला कथा में मिलता है। कथानक के अनुसार शरद पूर्णिमा पर महारास के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने शिव पार्वती का निमंत्रण भेजा। माता पार्वती ने जब शिव से आज्ञा मांगी, तो शिव ने मोहित होकर स्वयं ही वहां जाने की इच्छा वयक्त की। इसलिए इस रात्रि को मोह रात्रि कहा जाता है।
पृथ्वी पर भ्रमण करने आती हैं माता लक्ष्मी
धर्मशास्त्रीय मान्यता में शरदपूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी का भ्रमण पृथ्वी लोक पर रहता है। माता लक्ष्मी इंद्रदेव के साथ यह देखने अती हैं कि कौन रात्रि जागरण कर मेरी उपासना कर रहा है। जो भक्त रात्रि जागरण कर देवी लक्ष्मी की उपासना करता दिखाई देता है, माता लक्ष्मी उस पर सदैव कृपा करती हैं। अर्थात शरद पूर्णिमा पर रात्रि पर्यंत जागरणकर माता लक्ष्मी और इंद्र के वैदिक मंत्रों से पूजन करना चाहिए।
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