Header Ads Widget

Responsive Advertisement

भारत में गाय को इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है? क्यों दिया गया है इसे मां का दर्जा


हिंदू और जैन धर्म में इस्तेमाल किए जाने वाले सारे प्रतीकों में से गाय को सबसे पवित्र माना जाता है। प्राचीन भारत में आजीविका के लिए गाय का मालिक होना आवश्यक था। गाय का दूध पीने में, गोबर दीवारों को लीपने में और उसके उपलों का इस्तेमाल ईंधन में किया जाता था। इस तरह गाय किसी भी परिवार को आत्मनिर्भर बना देती थी।


सभी ऋषि चाहते थे कि उनके पास गाय हो। गाय उन्हें आर्थिक रूप से स्वायत्त बनाती थी और इस तरह वे अन्य बौद्धिक कामों पर ध्यान दे सकते थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, गाय आजीविका के लिए बस एक रूपक या प्रतीक बनकर रह गई। धरती को भी गाय कहा गया। आप धरती की देखभाल कर, उस पर हल चलाकर उसमें बीज बो सकते हैं। धरती आपको फ़सल देती है। जैसे गाय से दूध मिलता है, वैसे ही आपको धरती से फ़सलें मिल सकती हैं।


धरती और आजीविका को गाय के साथ जोड़ा गया। चूंकि गाय जीवनभर दूध देती है, इसलिए लोग चाहते थे कि उनके पास गाय हो। गायों के बूढ़ी हो जाने के बावजूद उन्हें मारना उचित नहीं माना जाता था। इसलिए भारत में गोहत्या को लेकर असुविधा पाई जाती है।


गोरक्षा हिंदू मिथकों का एक अभिन्न अंग है और गोहत्या को घोर पाप माना जाता है। कालिदास के ‘रघुवंश’ में राम के पूर्वज राजा दिलीप के बारे में बताया गया है कि वे एक गाय को शेर से बचाने के लिए ख़ुद बलि चढ़ने के लिए तैयार हो गए थे। गोदावरी महात्म्य में गौतम ऋषि ने भूल से गोहत्या की। इस पाप से उनकी आत्मा पर दाग लगा। इस पाप को धोने का एकमात्र तरीका था शिव का आवाहन करना और उनसे विनती करना कि वे गंगा को विंध्य पर्वत के दक्षिण में गोदावरी के रूप में प्रवाहित करें।


हिंदू धर्म में गायों की महत्वपूर्ण भूमिका है। आकृतियों में मिलने वाली उनकी तस्वीरें मातृ की भावना उत्पन्न करती हैं। गाय को हमेशा बछड़े के साथ जोड़ा जाता है, हमें यह याद दिलाने के लिए कि वह दुधारू गाय है। और दूध देने वाली गाय का मालिक होना शुभ माना जाता था। देवताओं की भी कामधेनु नामक दुधारू गाय थी। देवता, ऋषि और राजा तीनों के पास गायें होती थीं। राजाओं को गायों का रक्षक माना जाता था। जैसे पहले बताया गया है, यह स्वामित्व भी एक रूपक हो सकता है। इस प्रकार इसका शाब्दिक और रूपक जैसा, दोनों अर्थ हो सकते हैं। रूपक जैसे अर्थ का तात्पर्य यह है कि राजा धरती की आजीविका का रक्षक है। इसलिए राजा से आशा की जाती थी कि वे दूसरों को गायें देंगे। गाय को सर्वोच्च भेंट माना जाता था। हम इस इशारे को लोगों को आजीविका देने के रूप में देख सकते हैं।


धर्मग्रंथों में राजा वेन का उल्लेख मिलता है। उन्होंने धरती का इतना शोषण किया कि ऋषियों को उन्हें जादुई मंत्रों से शक्तिशाली बनाए गए घास के पत्ते से मारना पड़ा। उनके शव का मंथन कर सभी नकारात्मक पहलुओं को दूर किया गया और वेन से अधिक पवित्र व उदार राजा ‘पृथु’ का निर्माण किया गया। पृथु, विष्णु के रूप थे। वेन से भयभीत होकर धरती ने बीजों का अंकुरण होने से इनकार कर दिया था। गाय का रूप लेकर वह भाग गईं। पृथु ने उनका पीछा कर उन्हें वचन दिया कि जैसे कोई ग्वाला गाय की देखभाल करता है, उसी तरह वे भी उनकी देखभाल करेंगे। पृथु ने उनकी रक्षा और पालन-पोषण करने का वचन दिया। इसके बदले में धरती ने भोजन और ईंधन देने का वचन दिया। धरती गोमाता होंगी और पृथु गोपाल होंगे। इसलिए धरती को पृथ्वी कहा जाता है।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ