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गाय गाेहरी की परंपरा:15 फीट चाैड़ी गली में 12 मन्नत धारियाें के ऊपर से तीन बार निकली 250 गायें


जिले के सुल्तानपुर में दिवाली के अगले दिन पड़वा पर गाय गाेहरी पर्व मनाया गया। मान्यता है कि लाेग अपनी मन्नत पूरी हाेने पर गायाें के सामने लेटकर इसे उतारते हैं। इसी परंपरा का निर्वाह करने के लिए रविवार काे सुल्तानपुर की 15 फीट चाैड़ी गली में पांच से छह गांवाें की करीब 250 से अधिक गायाें के सामने 12 मन्नतधारियाें ने जान जाेखिम में डालकर भी गाय गाेहरी पढ़ी। उनके ऊपर से गायाें काे तीन बार गुजारा गया।


हालांकि इस पूरे आयाेजन में किसी काे काेई चाेट नहीं पहुंची। हरिशंकर मुकाती 65 साल ने बताया कि बचपन से ही इस परंपरा काे देखते आ रहा हूं। हमारे घर के सामने ही भेरूजी का स्थान है, यहां पूजा के बाद यह कार्यक्रम हाेता है।


महिलाएं दिवाली पर नहीं बनाती भोजन पुरुष घर के बाहर बनाते हैं


सर्वप्रथम गोहरी पर्व के एक दिन पहले दिवाली की रात में आल के तुमड़े की सफाई कर तेल भरते हैं। गांव में जिनके घर पशु हाेते हैं वहां जाते हैं। जहां पशुओं का काेठा हाेता है वहां तेल की मशाल बनाकर पशुओं काे दिखाते हैं। इसके पीछ मान्यता है कि पशुओं काे काेई बीमारी न हाे। राखी का धागा दिवाली के दिन ताेड़ते हैं और उसकी बत्ती बनाते हैं।


उसके प्रकाश काे पशुओं के सामने ले जाते हैं। दिवाली पर महिलाएं अपने घर में भाेजन नहीं बनाती हैं, पुरुष अपने घरके बाहर भाेजन बनाते हैं। सुबह गाेया में भेरू का तेल सिंदूर करते हैं। जिनकी मन्नत हाेती है वे गायाें के सामने लेटते हैं। रमेश बाबूलाल ने बताया कि गत बेटा बीमार हाे गया था, मन्नत ली थी कि बेटा ठीक हाे गया ताे पांच साल तक गाय गाेहरी का करूंगा।


सतीश कलुवा ने कहा पहली बार गाेहरी पढ़ी। काेई मन्नत नहीं थी। सुख शांति, समृद्धि और काेराेना से मुक्ति के लिए गाेहरी पढ़ी। ऊंकार भूरिया व कनिराम भूरिया, रमेश बाबूलाल, रामू नंदराम बुदेसिंग, गलू कालु, नानूराम लक्षमण, सम्बू धर्मराज, दिनेश राकेश, जगदीश वजिराम, राजेश शिवनारायण, सतीस कलुवा ने गाय गाेहरी पढ़ी। मुख्यत: संतान, स्वास्थ्य और पशुओं की बीमारी ठीक करने के लिए मन्नत लेते हैं।


ऊंकार व कनिराम भूरिया सुल्तानपुर ने बताया कि गाय गोहरी की प्रथा बरसों पहले हमारे पूर्वजों द्वारा प्रारंभ की गई थी। इसका निर्वाह आज भी हम कर रहे हैं। इसलिए हम सभी भूरिया परिवार की ओर से दीपावली के गोवर्धन पूजा की जाती है। गांव के गोया में भेरूजी की पूजा करते हैं। इसके बाद ही गाय गाेहरी का पर्व मनाते हैं।


इन गांवाें से लाई थी गायें, दिनभर खुला छाेड़ते हैं


आसपास के गांवाें खाेकड़िया माल, सुल्तानपुर, सेमलीपुरा, बिजलपुर आदि अन्य गांवाें की करीब 250 से 300 गाय लाई गई थीं। सुल्तान में दिवाली के दिन इतने पटाखे नहीं फाेड़ते जितने गाय गाेहरी के दिन पड़वा पर छाेड़ते हैं। एक हजार लाेगाें की आबादी का गांव है। भीड़ के कारण रानीपुरा, कालापाठा में गाय गाेहरी पर्व नहीं मनाया। प्रशासन ने अनुमति नहीं दी थी।


भीड़ अधिक हाेती है, लेकिन यहां प्रशासन की काेई व्यवस्था नहीं थी। पुलिस भी नहीं थी। सुबह 11.30 बजे से पूजा पाठ किया। 12.30 बजे से गाय गाेहरी का पर्व शुरू हुआ। तीन बार गायाें काे निकाला। गायाें काे खुल्ला छाेड़ देते हैं। वाे कहीं भी जा सकती है। शाम काे पशु पालक अपनी गायाें काे अपने घर पर बांध देते हैं।


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