जल न हो तो धरती पर अनाज का उत्पादन सम्भव नहीं है। लक्ष्मी के आठ पारम्परिक रूपों में एक धान्य लक्ष्मी है जो प्रतीक रूप में समझाती है कि अन्न ही धन है।
अन्न ब्रह्म भी है, धन भी है और
जीवन का पोषक-रक्षक होकर भगवती-सम लक्ष्मी भी है। जब शस्य श्यामला धरती पर हरियाली फैलती है और वृक्षों में नानाविध पौष्टिक फल लगते हैं तो प्रकारांतर से लक्ष्मी ही प्रकट होती है।
फूलों से लदे वृक्षों वाले वनों में जिनमें असंख्य पक्षी गीत गाते और मधुर मधु के संरक्षक भ्रमर घूमते हैं, शास्त्रों में ऐसे ही वनों में लक्ष्मी का निवास बताया है। जगत पालक अपने पति विष्णु की शक्ति बन लक्ष्मी ही खेतों, वनों, उपवनों में सुगन्ध, संगीत व पुष्टिदात्री बन व्यक्त होती है। अन्न का सम्मान और वृक्षों की रक्षा ही लक्ष्मी की सच्ची पूजा है।
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