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इंदौर :दीपोत्सव पर चांदी के सिक्कों का शगुन ऐसा है कि 4 हजार किलो चांदी के सिक्के अकेले इंदौर में ही बिक जाते


सराफा स्थित टकसाल में सिक्के ढालते कारोबारी



  • विक्टोरिया के सिक्कों की मांग ज्यादा, दोगुनी कीमत पर भी खरीदने को लोग तैयार

    दीपोत्सव पर चांदी के सिक्कों का शगुन ऐसा है कि 4 हजार किलो चांदी के सिक्के अकेले इंदौर में ही बिक जाते हैं। प्रदेश में करीब 10 हजार किलो सिक्कों की खपत है। आम सोच यही है कि बड़ा कुछ न खरीद पाएं तो भी मां लक्ष्मी के प्रतीक के रूप में चांदी का सिक्का तो घर आए ही। इनमें भी 75 साल पुराने विक्टोरिया के सिक्कों की डिमांड अब भी बनी हुई है। लोग दोगुना से ज्यादा कीमत पर भी खरीदने को तैयार रहते हैं। हालांकि ये अब बहुत कम मिल पाते हैं।


    शहर में चांदी के सिक्के, बर्तन और भगवान की मूर्तियां बनाने वाले कुल 6 से 7 लोग ही हैं। लगभग पूरे साल यह काम चलता है इसके बाद भी दिवाली पर मांग पूरी नहीं कर पाते हैं। इंदौर सराफा एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बसंत सोनी कहते हैं 5 ग्राम, 10 ग्राम के सिक्कों की मांग सबसे ज्यादा है।


    कुछ 50 से 100 ग्राम के भी ले जाते हैं। नितिन सोनी 1956 से सिक्के ढालते हैं। वे कहते हैं कि अब सिक्कों के अलावा चांदी के भगवान और बर्तन की भी डिमांड बढ़ गई है। सामान्य चांदी का सिक्का 10 ग्राम का तो विक्टोरिया वाला सिक्का 11 ग्राम, 640 मिलीग्राम का होता है।


    1300 तक में खरीदा 350 कीमत का सिक्का


    विक्टोरिया व जार्ज पंचम की मूर्ति वाले और गंजा श्रेणी के सिक्कों की काफी डिमांड है। अब ये तभी मिलते हैं, जब कोई अपने पुराने सिक्के बेचता है। विक्टोरिया के एक तोले का सिक्का 1300 रुपए में भी बिका था, जब चांदी 35 हजार रुपए किलो थी।


    इंदौर की खासियत कोई मिलावट नहीं होती


    सराफा व्यापारी एसो. के सचिव अविनाश शास्त्री के मुताबिक धनतेरस पर चांदी के सिक्कों की खरीदी ज्यादा होती है। विक्टोरिया का सिक्का, सामान्य सिक्के से वजन में ज्यादा होता है। इंदौर की खासियत है कि यहां खोटा सिक्का नहीं बनता।


    1945 के सिक्कों में होती थी सबसे ज्यादा शुद्धता, इसलिए आज भी है प्रचलन में


    50 साल से ज्यादा के पुराने सिक्कों के कलेक्शन रखने वाले प्रो. दाऊलाल नीमा बताते हैं त्योहार पर धातुओं का संकलन लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। 1945 तक जो चांदी के सिक्के निकले (उसे पंचम जार्ज के समय के) वे सबसे ज्यादा प्योर माने जाते हैं। मुगल काल के सिक्कों में 96 प्रतिशत तक शुद्धता होती थी।





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