इंडोनेशिया के बाली द्वीप में हर एक गली, घर और दुकान में मंदिर होते हैं। वहां के रास्तों पर हज़ारों की तादाद में ताड़ पत्र से बनी छोटी टोकरियां बिखरी हुई दिखाई देंगी। हर टोकरी में फूल, थोड़ा खाना और अगरबत्ती होती हैं और कभी-कभार बिस्कुट व मेंथोल भी होते हैं। वहां के लोग ये टोकरियां अदृश्य देवताओं को अर्पित करते हैं। भारतीय हिंदू धर्म और बाली के हिंदू धर्म में यही सबसे मूल फ़र्क है - बाली के देवता अदृश्य होते हैं। बाली में हर मंदिर के भीतर कई छोटे मंदिर होते हैं। उनके भीतर ऊंचे स्तंभों पर आसन होते हैं। रोचक बात यह है कि इन आसनों पर कोई देवी या देवता विराजमान नहीं होते, ऐसा इसलिए कि वे आकाश, पर्वत या समुंदर में रहते हैं। वे लोगों के समक्ष तब प्रकट होते हैं, जब उन्हें कुछ अर्पित कर उनका आवाहन किया जाता है। उसके बदले में देवता सौभाग्य, शांति और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
बाली का हिंदू धर्म एक हज़ार साल से भी ज़्यादा पुराना है। समुद्री यात्रा करने वाले व्यापारी, बौद्ध धर्मावलंबी और कई तांत्रिक व वैदिक हिंदू परंपराओं के अनुयायी हिंदू धर्म को भारत से बाली ले गए। वे भारत के पूर्वी तट से वहां गए थे। वैसे देखा जाए तो 1500 साल पूर्व के गुप्त काल में भारत का दक्षिण पूर्वी एशिया के साथ संपन्न समुद्री व्यापार था। अगस्त्य और कौण्डिन्य जैसे ऋषि मलेशिया और कंबोडिया जैसे दूर-दराज़ के राज्यों की यात्रा कर चुके थे। चोल राजाओं ने भी अपने साम्राज्य का विस्तार करने और व्यापार के ज़रिए राज्य की संपत्ति बढ़ाने के लिए श्रीलंका और मलेशिया तक समुद्री यात्राएं की थी।
बाली में दीवारों पर आपको ‘ॐ शांति शांति शांति ॐ’ और ‘ॐ-सु-अस्ति-असतो’ जैसे शब्द लिखे हुए दिखाई देंगे। वहां के पुजारी अग्निहोत्र जैसे रिवाज़ों का ज़िक्र करते हैं और गायत्री मंत्र भी बोलते हैं। वहां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र भी मिलते हैं। लेकिन वहां के समाज में भारत की जाति व्यवस्था के बुरे पहलू नहीं दिखाई देते। और पुरुष भी बड़े प्यारे अंदाज़ में अपने कान में चंपा और हिबिस्कस के फूल पहनते हैं।
एक हज़ार साल पहले बाली में विभिन्न स्थानीय और बाहर से आए विश्वास व रीति-रिवाज़ हुआ करते थे। इसलिए साल 1011 में उबुद शहर के नज़दीक उदयन राजा के निरीक्षण में एक विशाल सभा बुलाई गई। इस सभा में विद्वानों ने मिलकर इन विभिन्नों विश्वासों और रिवाज़ों को एकजुट किया। सभा में तय किया गया कि हर घर, गांव और प्रांत में ब्रह्माण्डीय, पहाड़ी, समुद्री, वन संबंधी और स्थानीय देवताओं को समर्पित मंदिर होंगे। पहले हिंदू धर्म की त्रिमूर्ति का आवाहन करने का निर्णय लिया गया - सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, संरक्षक विष्णु और विनाशक शिव। लेकिन बाली और भारत की त्रिमूर्ति की धारणा में काफ़ी अंतर है। चूंकि ब्रह्मा सृष्टि से जुड़े हैं, इसलिए बाली में वे अग्नि और रसोईघर से जुड़े हैं। विष्णु जल और खेतों से जुड़े हैं और रामायण व महाभारत जैसे लोकप्रिय महाकाव्यों के साथ भी। शिव श्वास अर्थात प्राण, वायु, मृत्यु और विनाश से जुड़े हैं।
देवताओं के प्रति भक्ति भारतीय हिंदू धर्म की विशेषता है। उधर बाली का हिंदू धर्म भी कर्मकांड को महत्व देता है। वह रिवाज़ों के ज़रिए देश, काल और पात्र को जोड़ने को भी अहमियत देता है। इस तरह भारत के साथ पुराने संबंधों को याद किया जाता है। जब पुजारी कुशा से पानी छिड़कते हुए एक मंदिर से दूसरे मंदिर जाते हैं, तब वे धरती और आकाश की ऊर्जा को लोगों के भले के लिए एकत्रित करते हैं।
तो हिंदू धर्म असल में क्या है? क्या रिवाज़ करना हिंदू धर्म है? क्या हिंदू धर्म कथाओं में पाया जाता है? क्या हिंदू धर्म में भक्ति अहम है या क्या पुराणों के देवता अहम हैं या फिर क्या वेद और तंत्र के विचारों का पालन करना हिंदू धर्म है? इन सवालों का जवाब ढूंढना मुश्किल है। शायद सिद्धांतों को लेकर पूर्वाग्रह और रूढ़िवाद के न होने की वजह से ही बाली अपनी सहिष्णुता, आतिथ्य और कोमलता के लिए दुनियाभर में मशहूर है।
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