नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 4 नवंबर को कर्नाटक और तमिलनाडु सहित 18 राज्यों को पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के लिए नोटिस जारी किया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के रिकॉर्ड के अनुसार, एनजीटी बेंच ने कहा है कि इन राज्यों के 122 शहरों में हवा की गुणवत्ता अनुकूल सीमा से नीचे है। इसके अलावा देश में कोरोना महामारी से लगभग 84 लाख से अधिक लोग अभी तक संक्रमित हो चुके हैं। कई राज्यों ने संक्रमित हो चुके लोगों के स्वास्थ्य को देखते हुए भी पटाखों पर प्रतिबंधात्मक कदम उठाए हैं। एनजीटी के इस नोटिस के बाद दिल्ली सहित 6 राज्यों ने उनके यहां पर नवंबर माह में पटाखे जलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। आदेश का पालन नहीं करने पर कार्रवाई की बात भी सरकारों ने कही है।
राजस्थान सरकार ने पटाखे बेचते हुए पाए जाने पर 10 हजार रुपए आतिशबाजी करने पर 2000 रुपए जुर्माने का प्रावधान किया है। दीपावली के त्यौहार के ठीक पहले पटाखों की बिक्री और उनके जलाने पर राज्यों द्वारा लगाए जा रहे इस प्रतिबंध ने इसके व्यापार से जुड़े लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। सबसे ज्यादा तमिलनाडु के शिवाकाशी में इसे लेकर गंभीर चिंता है। दरअसल देश में बिकने वाले लगभग 80 प्रतिशत पटाखे शिवाकाशी में ही बनते हैं। पटाखा कारोबार से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 5 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। इसी को देखते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने अन्य राज्यों से पटाखे फोड़ने पर बैन लगाने पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि पटाखों का कोविड मरीजों पर निगेटिव असर होता है। फिलहाल विभिन्न राज्यों में पटाखों पर बढ़ रहे प्रतिबंधों का क्या असर होगा। आइये इस रिपोर्ट में जानते हैं।
पांच बिंदुओं के आधार पर जानिए पटाखों पर प्रतिबंध के बारे में
1. देश भर में पटाखों का बाजार कितना बड़ा है।
लगभग 9 हजार करोड़ का कारोबार
ऑल इंडिया फायरवर्क्स एसोसिएशन के अनुसार 1070 कंपनियां अकेले शिवाकाशी में रजिस्टर्ड हैं। यहां देश aमें बिकने वाले कुल पटाखों को 80 प्रतिशत पटाखा बनता है। अकेले शिवाकाशी में ही गतवर्ष में 6000 करोड़ का कारोबार हुआ था। देश में पटाखे का लगभग 9 करोड़ का कारोबार है। शिवाकाशी में पटाखा कारोबार से लगभग 3 लाख लोग प्रत्यक्ष रूप से जुड़े है। जब लगभग कुल 5 लाख लोगों को इससे रोजगार मिलता है।
2. चीन से हर साल
कितने पटाखे हम इम्पोर्ट करते हैं।
लगभग 30 प्रतिशत पटाखे चाइनीज, पर अभी प्रतिबंध
पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव्स सैफ्टी ऑर्गेनाइजेशन के द्वारा एक्सप्लोसिव्स रूल्स 2008 के तहत फायरवर्क्स के इम्पोर्ट के लिए कोई लाइसेंस नहीं दिया जाता है। बावजूद इसके देश में गैर कानूनी रूप से में लगभग 30 प्रतिशत पटाखा चीन से आता है। तमिलनाडु फायरवर्क्स एंड अमोर्सेज मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के मुताबिक, चीनी क्रैकर्स के पसंद किए जाने की बड़ी वजह यह है कि इंडियन क्रैकर्स की तुलना में वे आसानी से जलते और फटते हैं। इनकी कीमत भारतीय पटाखों की तुलना में 30-40फीसदी कम होती है, क्योंकि वे खराब क्वालिटी के ज्वलनशील पदार्थ प्रयोग करते हैं।
3. किन राज्यों ने पटाखों को लेकर बैन लगाया है या नियम जारी किए हैं?
6 राज्यों ने पटाखा जलाने और बेचने पर लगाया बैन, कई तैयारी में
दिल्ली सरकार ने सबसे पहले राज्य में 7 से 30 नवंबर तक पटाखों की बिक्री और उनके जलाने पर पूरी तरह बैन लगाया है। इनमें ग्रीन कैटेगिरी वाले पटाखे भी शामिल हैं। इसके अलावा कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, ओडिशा और राजस्थान ने अपने यहां पटाखों की बिक्री और उनके जलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार ने भी एसओपी जारी करते हुए पटाखे न जलाने की अपील की है। वहीं पटाखा बैन करने के मामले पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) भी सुनवाई कर रहा है। 18 राज्यों को एनजीटी की ओर से नोटिस भेजे गए हैं।
4. पटाखे इस बार कितने महंगे रहेंगे, क्योंकि चीनी पटाखों पर बैन है।
10 से 15 प्रतिशत महंगे हुए पटाखे, क्योंकि ग्रीन पटाखों पर जोर
देश भर में बिक रहे पटाखों की कीमत में इस बार 10 से 15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। इसका पहला बड़ा चाइनीज पटाखों के देश में आने पर कड़ी पाबंदी है। वहीं दाम बढ़ने का दूसरा बड़ा कारण पारंपरिक पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखों पर दिया जा रहा जोर है। ग्रीन पटाखों की लागत तुल्नात्मक रूप से अधिक होती है। दरअसल ‘ग्रीन पटाखे’ राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं जो पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते है पर इनके जलने से 40 से 50 प्रतिशत कम प्रदूषण होता है।
5. देश में निर्मित वर्सेज चीनी पटाखे
कीमत : काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च की शोध के अनुसार चीन से आए पटाखों में पोटैशियम क्लोरेट और पैराक्लोरेट का इस्तेमाल होता है, ये दोनों ही रसायन सस्ते हैं लेकिन पर्यावरण और सेहत के लिए काफी खतरनाक हैं। इन्हीं सस्ते केमिकल्स के कारण वहां से आए पटाखे सस्ते होते हैं। वहीं भारत में निर्मित पटाखों में पोटैशियम नाइट्रेट और एल्युमिनियम पाउडर रहता है, जो अपेक्षाकृत महंगा लेकिन सुरक्षित है। इसलिए भारतीय पटाखे तुल्नात्मक रूप से 30 प्रतिशत तक महंगे होते हैं।
खतरनाक : राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के मुताबिक चाइनीज पटाखों में प्रतिबंधित लाल सीसी, कॉपर ऑक्साइड और लीथियम सहित कई हानिकारक रसायसनों का स्तेमाल होता है। इन पटाखों से आंखों में जलन, सांस लेने में दिक्कत जैसी समस्याएं होती हैं। खासकर बच्चों के लिए ये पटाखे ज्यादा नुकसानदायक हैं।
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