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विधायक और मंत्रियों पर नियम लागू नहीं:देश में केवल 'माननीय' एक साथ लेते हैं वेतन, पेंशन


प्रतिकात्मक फोटो

देश में चपरासी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज तक को केवल एक पेंशन मिलती है, लेकिन सांसद, विधायक और मंत्रियों पर यह नियम लागू नहीं है। यानी, विधायक से यदि कोई सांसद बन जाए तो उसे विधायक की पेंशन के साथ ही लोकसभा सांसद का वेतन और भत्ता भी मिलता है।


इसी तरह राज्यसभा सांसद चुने जाने और केंद्रीय मंत्री बन जाने पर मंत्री का वेतन-भत्ता और विधायक-सांसद की पेंशन भी मिलती है, जबकि सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों को एक ही पेंशन मिलती है।


वह भी 33 साल की नौकरी पूरी करने के बाद। वहीं, नेताओं को एक दिन का विधायक या सांसद बनने पर भी पेंशन की पात्रता होती है। यह जानकारी सूचना के अधिकार कानून के तहत मांगी गई सूचना से मिली है। यह जानकारी हासिल करने के बाद एडवोकेट पूर्वा जैन हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर करेंगी।


उनकी मांग है कि संविधान के मुताबिक समानता के अधिकार के कानून का पालन हो। जनप्रतिनिधियों की पेंशन के लिए भी शासकीय सेवकों की तरह गाइडलाइन बनाई जाए। कम से कम पांच साल का कार्यकाल अनिवार्य किया जाए। साथ ही वे अंत में जिस पद पर रहे, उसी की पेंशन उन्हें मिले।


मंत्री या निगम-मंडल में अन्य सरकारी पदों पर रहते हुए वेतन के साथ पुराने पदों की पेंशन नहीं दी जाए, क्योंकि सरकार ने जहां एक तरफ मार्च 2005 के बाद नियुक्त होने वाले सरकारी कर्मचारियों की पेंशन ही बंद कर दी है। वही, लोगों से गैस सब्सिडी तक छोड़ने की अपील की। ऐसे में देश के माननीयों के लिए भी नियम-कायदे बनाए जाना चाहिए।


काैन-कितनी पेंशन ले रहा है, इसका रिकॉर्ड ही नहीं


एडवोकेट जैन ने बताया कि उन्होंने लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा सचिवालय के साथ ही पेंशनर्स वेलफेयर डिपार्टमेंट से सूचना के अधिकार कानून के तहत सांसद और विधायकों के वेतन-भत्ते, पेंशन को लेकर जानकारी मांगी थी। उन्होंने सवाल किए थे कि एक सांसद या विधायक कितनी पेंशन ले सकता है? सांसद-विधायकों को वर्तमान में कितनी पेंशन राशि मिलती है? क्या ऐसा कोई कानून या प्रावधान है जिसके तहत नेता एक से अधिक पेंशन या पेंशन और वेतन दोनों ले सकते हैं? क्या पेंशन का हकदार होने के लिए कोई समय सीमा तय है? इन सवालों का उन्हें जो जवाब मिला, वह चौंकाने वाला है।


यानी, माननीयों के लिए शासकीय सेवकों की तर्ज पर एक वेतन-एक पेंशन का नियम लागू नहीं है। आश्चर्य की बात तो यह है कि कोई नेता कितनी बार कौन सा चुनाव जीता और कितनी पेंशन ले रहा है, इसका भी रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। यानी, कोई नेता पूर्व सांसद, विधायक की हैसियत से पेंशन लेने के दौरान मंत्री बन जाता है तो उसे मंत्री पद का वेतन-भत्ता भी दिया जाता है।


वेतन-पेंशन निर्धारण के लिए कमेटी या बोर्ड बनाया जाए


जैन ने बताया कि वे याचिका में मांग करेंगी कि सांसद-विधायकों के वेतन-पेंशन निर्धारण के लिए सरकार को निर्देशित करें। इसके लिए कमेटी या बोर्ड बनाया जाना चाहिए जिसके पास देश के हर विधायक और सांसद का पूरा रिकॉर्ड हो ताकि वह देश में कहीं पर भी वेतन या एक से अधिक पेंशन लाभ नहीं ले सके।


कम से कम पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले नेता को ही पेंशन की पात्रता होना चाहिए। राज्य और केंद्र के संसदीय सचिवालय लिंक करना चाहिए, ताकि कोई पूर्व विधायक या सांसद मंत्री बनने या निगम-मंडल में अध्यक्ष बनने पर एक से अधिक लाभ नहीं ले सके। कुछ नेता विधायक, सासंद और मंत्री रहने के बाद राज्यपाल, उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति बन जाते हैं।


इसी तरह कई नेता विभिन्न बोर्ड, निकाय, मंडल के साथ ही यूनिवर्सिटी में कुलपति से लेकर राष्ट्रीय संस्थानों के चेयरमैन तक हो जाते हैं। इन्हें पुराने पदों की पेंशन के साथ ही वर्तमान पदों का वेतन भी मिलता है, जो संविधान में निहित समानता के अधिकार का खुला उल्लंघन है। इन्हें भी शासकीय सेवकों या जजों की श्रेणी में लाया जाना चाहिए।


आम आदमी से लेकर सरकारी मुलाजिमाें तक ऐसी सख्ती


1. बुजुर्गों से रेल किराए में राहत वापस : रेल मंत्रालय ने वरिष्ठ नागरिक, मान्यता प्राप्त पत्रकार, युवा, किसान, दूधिये, सेंट जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड, भारत सेवा दल, रिसर्च स्कॉलर्स, पदक विजेता शिक्षक, सर्वोदय समाज, स्काउट गाइड, वॉर विडो, आर्टिस्ट व खिलाड़ियों सहित 30 से ज्यादा कैटेगरी के लोगों को टिकटों पर मिलने वाली 30 फीसदी की छूट बंद कर दी है, जबकि विधायक और सांसदों को एसी सेकंड में एक सहायक के साथ राज्य के अंदर असीमित यात्रा कूपन मिलते हैं। वहीं, राज्य के बाहर सीमित यात्रा सुविधा हासिल है।


2. कर्मचारियों के लिए एनपीएस व्यवस्था : सांसद, विधायक भले ही कितनी पेंशन और वेतन-भत्ते एक साथ लें, लेकिन सरकार ने 31 मार्च 2005 के बाद नियुक्त कर्मचारियों को पेंशन देना बंद कर दिया है। इसकी जगह एनपीएस (नेशनल पेंशन स्कीम) लागू की है। 2005 से पहले वाले कर्मचारियों को जहां वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में मिल रही है, लेकिन अब अधिकतम 10 फीसदी राशि ही मिल पाएगी। पुरानी पेंशन बंद होने से इंदौर सहित देशभर के कर्मचारी आंदोलन कर रहे हैं। उनका कहना है कि एनपीएस केवल झुनझुना है, जाे रिटायर होने के बाद उनके लिए अपर्याप्त रहेगी।


3. पहले पांच साल कार्यकाल पर ही पेंशन का नियम था : खातेगांव के पूर्व विधायक कैलाश कुण्डल ने बताया कि 90 के दशक से पहले नियम था कि जब तक पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं होगा, तब तक विधायकों को पेंशन नहीं मिलेगी। क्षेत्र के दिवंगत विधायक नर्मदा प्रसाद किंकर अलग-अलग अवधि में तीन बार विधायक बने थे। जब उनके कार्यकाल के कुल पांच साल पूरे हुए, तब उन्हें पेंशन की पात्रता मिली थी। हालांकि नियम में बदलाव के बाद अब एक दिन भी विधायक और सांसद रहने पर जनप्रतिनिधि पेंशन के हकदार हो जाते हैं।


4. 1.70 लाख वेतन, फिर भी मंत्रियाें का आयकर भरेगी शिवराज सरकार : कोरोना महामारी के कारण आर्थिक संकट का दौर चल रहा है। सरकार का खजाना खाली है। फिर भी सरकार ने मंत्रियों का आयकर सरकारी खजाने से भरने का निर्णय लिया है। 42 करोड़ रुपए सालाना खर्च हाेंगे। इसके लिए दाे करोड़ रुपए जारी भी कर दिए हैं। जहां एक तरफ कर्मचारियों का महंगाई भत्ता, वेतन में बढ़ाेतरी अाैर एरियर अटका हुआ है, वहीं दूसरी तरफ मंत्रियों का आयकर भरना चिंतनीय है। सवाल यह उठता है कि एक लाख 70 हजार से ज्यादा वेतन लेने वाले मंत्री क्या आयकर खुद नहीं भर सकते?


जनता से सीखे जनप्रतिनिधि: 1 करोड़ से ज्यादा लोगों ने छोड़ी थी गैस सब्सिडी


प्रधानमंत्री की अपील पर पिछले साल तक देशभर में एक करोड़ से अधिक घरेलू रसोई गैस उपभोक्ताओं सब्सिडी छोड़ दी थी। हालांकि गैस सिलेंडर के दाम बढ़ने के कारण सवा लाख लोग वापस सब्सिडी लेने लगे हैं। इसके विपरीत अधिकांश सांसद और विधायकाें ने गैस पर अपनी सब्सिडी नहीं छोड़ी है।


विधायक को 35 तो सांसद को मिलती है 25 हजार पेंशन


केंद्रीय मंत्री काे मिलते हैं हर महीने 2.32 लाख


1 लाख वेतन


70 हजार निर्वाचन क्षेत्र भत्ता


60 हजार कार्यालयीन भत्ता


2 हजार सत्कार भत्ता


सांसद को मिलते हैं हर महीने 2.05 लाख




  • 1 लाख रुपए वेतन

  • 45 हजार रुपए निर्वाचन क्षेत्र भत्ता

  • 2 हजार रुपए राेज कार्यालय भत्ता यानी महीने के 60 हजार



(इसके अलावा ट्रेन के सेकंड एसी कोच में एक सहायक के साथ राज्य में असीमित और राज्य के बाहर सीमित यात्रा कर सकते हैं।)


25 हजार महीना मिलती है पेंशन


विधायक को मिलते हैं हर महीने 1.10 लाख




  • 35 हजार निर्वाचन क्षेत्र भत्ता

  • 10 हजार टेलीफोन भत्ता

  • 10 हजार चिकित्सा भत्ता

  • 15 हजार अर्दली-ऑपरेटर के

  • 10 हजार लेखन-डाक भत्ता

  • 35 हजार महीना मिलती है पेंशनयक को मिलते हैं हर महीने 1.10 लाख

  • मध्यप्रदेश में 2 लाख रुपए है मुख्यमंत्री का वेतन

  • 1.50 लाख राज्य मंत्रियाें का वेतन

  • 1.70 लाख कैबिनेट मंत्रियाें का वेतन

  • 1.85 लाख विस अध्यक्ष का वेतन



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