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स्टैंडअप कॉमेडी को अस्तित्व में आए करीब 130 साल हो गए पढ़िए क्या है और कैसा है स्टैंडअप का संसार

 

जाने-माने लेखक एडी टाफ़ोया ने अपनी चर्चित किताब ‘द लेगसी ऑफ़ द वाइज़क्रैक’ में लिखा है कि -1880 या 1890 में चार्ले केज नाम के हास्य कलाकार ने न्यूयॉर्क के वॉडेविले थिएटर में माइक सम्भाला और उस तरह की प्रस्तुति दी, जैसी पहले कभी किसी ने नहीं दी थी। उसने बिना किसी विशेष पोशाक और रंगमंच की सहायक सामग्री के एक हास्य एकालाप अर्थात मोनोलॉग पेश किया। अधिकांश विद्वान इस प्रस्तुति को पहला स्टैंडअप मानते हैं

अगर चार्ले केज को दुनिया का पहला स्टैंडअप कॉमेडियन माना जाए तो कहा जा सकता है कि स्टैंडअप कॉमेडी को अस्तित्व में आए करीब 130 साल हो गए हैं। इन वर्षों में स्टैंडअप कॉमेडी ‘ग्लोबल’ हो गई।

परिभाषा के स्तर पर बात करें तो ब्रिटिश कॉमेडियन जिम कार और लेखक लूसी ग्रीव्स ने अपनी किताब ‘ओनली जोकिंग : वॉट्स सो फ़नी अबॉउट मेकिंग पीपल लाफ़’ में स्टैंडअप की परिभाषा देते हुए लिखा है- ‘लोगों से भरे एक कमरे में कॉमेडियन ही इकलौता शख़्स होता है, जो ग़लत दिशा में मुंह करके खड़ा होता है। वो इकलौता ऐसा शख़्स होता है, जो हंसता नहीं है।’ सरल शब्दों में एक मंच पर खड़े होकर स्टैंडअप कॉमेडियन अपने चुटकुलों, वन लाइनर्स और कटाक्ष से लोगों को हंसाता है।

स्टैंडअप कॉमेडियन की ख़ूबी यह होती है कि वो जितनी तैयारी से मंच पर अपने आइटम पेश करता है, उससे कहीं तेज़ी से वो सामने बैठे दर्शकों और आसपास के माहौल के बीच से चुटकुले गढ़ने का कौशल रखता है।

स्टैंडअप कॉमेडी के कई रंग होते हैं। मसलन- क्लासिक स्टैंडअप, जिसमें स्टैंडअप कलाकार अपने पसंद के विषय पर चुटकियां लेता है। एक स्टैंडअप ‘स्केचेज़’ कहलाता है, जिसमें दैनंदिन की घटनाओं को केंद्र में रखकर हास्य गढ़ा जाता है, जैसे कि किसी रेस्तरां के दृश्य या मेट्रो ट्रेन के अंदर के हालात पर।

स्टैंडअप का एक प्रकार ‘रोस्टिंग’ कहलाता है, जिसमें सीधे किसी व्यक्ति को केंद्रित कर चुटकुले गढ़े जाते हैं। एक अन्य तरीका है- इम्प्रूव। इम्प्रोवाइज़ेशन का संक्षिप्त रूप। इसमें सामने बैठे दर्शक स्टैंडअप कलाकार को कोई विषय देते हैं, जिस पर वो कॉमेडी करता है। यह स्टैंडअप का सबसे मुश्किल प्रकार माना जाता है। क्योंकि इसमें कलाकार की प्रत्युत्पन्नमति या हाज़िरजवाबी काम आती है, उसे इसके लिए पूर्व में तैयारी करने का अवसर नहीं मिलता।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि स्टैंडअप कॉमेडी ने धीरे-धीरे दुनियाभर में कॉमेडी का स्वरूप बदल दिया। एक ऐसी कॉमेडी, जिसमें क़िस्सा कहने का कोई तय ढांचा नहीं होता, कोई कथानक, कोई पूर्वपीठिका नहीं होती। अमेरिका में स्टैंडअप का जन्म हुआ और वहां आज स्टैंडअप पूर्णत: विकसित और लोकप्रिय कॉमेडी शैली है।

अमेरिका में स्टैंडअप कॉमेडियन लोकप्रियता में हॉलीवुड सितारों से टक्कर लेते दिखते हैं। उनकी कमाई ऐसी कि बॉलीवुड के कई सितारे रश्क़ कर सकते हैं। फ़ोर्ब्स की 2019 की सूची के मुताबिक जाने-माने स्टैंडअप कॉमेडियन केविन हार्ट की कमाई 59 मिलियन डॉलर थी। जेरी सीनफ़ेल्ड 41 मिलियन डॉलर की कमाई के साथ दूसरे नम्बर पर थे। इस फ़ेहरिस्त में 10वें नम्बर पर शामिल अज़ीज़ अंसारी की कमाई भी 13 मिलियन डॉलर थी। अमेरिका-ब्रिटेन में स्टैंडअप कॉमेडी का बड़ा बाज़ार है। दूसरी तरफ़, सच ये भी है कि बीते 15-16 सालों में भारत में भी स्टैंडअप कॉमेडी का अपना अलग बाज़ार उठ खड़ा हुआ है, जो लगातार विस्तृत हो रहा है। ऐसा नहीं है कि उससे पहले कोई स्टैंडअप कॉमेडियन था ही नहीं। जॉनी लीवर और राजू श्रीवास्तव जैसे कुछ कलाकार अपने बूते शो किया करते थे। लेकिन, अंग्रेज़ी में स्टैंडअप बीते एक दशक में परवान चढ़े और अब हाल यह है कि स्टैंडअप की मूल भाषा हिंग्लिश हो चुकी है।

अमेरिका-ब्रिटेन में रह चुके कॉमेडी के कुछ भारतीय दीवानों ने स्टैंडअप की अनूठी दुनिया को यहां नए सिरे से रचा-गढ़ा। इनमें से एक थे अमर अग्रवाल, जिन्होंने अमेरिका से लौटकर मुम्बई में कैनवास लाफ़ क्लब की स्थापना की। ज़ाकिर ख़ान, बिस्वा कल्याण रथ और तन्मय भट्ट जैसे कई स्टैंडअप सितारों के लॉन्चिंग पैड का काम इस क्लब ने किया। 2007 में स्टैंडअप की दुनिया को टेलीविज़न के ज़रिए राष्ट्रीय फलक मिला, जब द ग्रेट इंडियन लाफ़्टर चैलेंज नामक कार्यक्रम शुरू हुआ। इस कार्यक्रम के ज़रिए ड्राइंगरूम में बैठे करोड़ों दर्शक पहली बार स्टैंडअप के फ़ॉर्मेट से रूबरू हुए। हालांकि, कवि सम्मेलनों में हास्य कवि कुछ इसी तरह परम्परागत रूप से हज़ारों दर्शकों के सामने अपना हुनर दिखाता था। लेकिन, स्टैंडअप और कवि सम्मेलनों में कुछ अंतर था। एक, कवि सम्मेलनों के ज़्यादातर हास्य कवियों के पास दो-तीन हिट रचनाएं थीं, जिन्हें वो हर कवि सम्मेलन में सुनाते थे। लेकिन, स्टैंडअप कॉमेडियन को हर 30 सेकंड में एक पंच देना है। वो दोहरा नहीं सकता।

कवि सम्मेलन में कविता की एक बाध्यता तो है ही, जबकि स्टैंडअप फ्री स्टाइल में की जाती है। जाने-माने कवि अशोक चक्रधर कहते हैं, ‘हास्य-कविता में कंठ का उतार-चढ़ाव होता है, जबकि स्टैंडअप में कॉमेडियन देह, नेत्र और भाषा से कमाल दिखाता है। युवाओं के बीच स्टैंडअप लोकप्रिय हैं। लेकिन सच यह है कि अब कवि सम्मेलनों में भी स्टैंडअप कॉमेडियन घुस चुके हैं। चिंताजनक ये है कि स्टैंडअप में अभद्र भाषा का जमकर इस्तेमाल होता है और ये भी उसकी यूएसपी है। आज की तारीख़ में स्टैंडअप कलाकारों की अलग-अलग तरह की मांग है। वो अवॉर्ड शो में रंग बिखेरते हैं, तो उनके अपने अलग शो होते हैं, जिन्हें लोग टिकट लेकर देखते हैं। कॉलेज-यूनिवर्सिटी के कार्यक्रमों से लेकर कॉर्पोरेट आयोजनों तक में स्टैंडअप कलाकार जलवा दिखाते हैं। कई बड़ी इवेंट मैनेजमेंट कम्पनियां बड़े स्टैंडअप कलाकारों का काम देख रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक, स्टैंडअप का ऑफ़लाइन बाज़ार ही कम से कम 50 करोड़ रुपए का है।

कपिल शर्मा से लेकर राजू श्रीवास्तव जैसे स्टैंडअप कलाकारों का काम देख चुके ‘लाफ़िंग कलर्स’ जैसी साइट के संस्थापक राजेश शर्मा कहते हैं, ‘जिस स्टैंडअप की जितनी मांग है, जितनी लोकप्रियता है, उस हिसाब से क़ीमत है। ये 10 हज़ार रुपए से 25 लाख रुपए प्रति शो तक भी हो सकती है। कपिल शर्मा इनमें सबसे अलग हैं, जिनके एक शो के लिए कम से कम दो करोड़ रुपए की ज़रूरत है। मैं सच कहूं तो मैंने स्टैंडअप कॉमेडियन को फ़िलर से पिलर बनते देखा है।’ इंटरनेट और यूट्यूब ने स्टैंडअप को नई लोकप्रियता दी है। कई स्टैंडअप कलाकारों के यूट्यूब चैनल के सब्स्क्राइबर्स करोड़ों में हैं। यूट्यूब पर एक फ़ॉर्मूला चलता है। जिसका वीडियो जितना वायरल, उतनी उतनी ज़्यादा कमाई। इस लोकप्रियता के ज़रिए वीर दास से लेकर कपिल शर्मा और सुदेश लहरी से लेकर एहसान क़ुरैशी तक फ़िल्मों में दिखाई दे चुके हैं।

स्टैंडअप कलाकार ज़ाकिर ख़ान ने हाल में अमेज़न पर एक वेबसीरिज़ की- ‘चाचा विधायक हैं हमारे।’ अमेज़न, नेटफ़्लिक्स जैसे ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर कई स्टैंडअप कलाकारों के अपने एक्सक्लूसिव शो हैं। बीते एक दशक में जिस तरह कुणाल कामरा, कनन गिल, सुनील ग्रोवर, वरुण ग्रोवर, अभिषेक उपमन्यु, अदिति मित्तल, सुमिखि सुरेश, डेनियल फ़र्नांडीस, अबीश मैथ्यू, भारती सिंह, अपूर्व गुप्ता, अतुल खत्री, भुवन बाम, अजय नागर, केनी सबास्टियन, अमित टंडन, करुणेश तलवार, रजनीश कपूर, गौरव गुप्ता जैसे नामों ने स्टैंडअप की दुनिया में नाम और दाम कमाया है, उसके बाद स्टैंडअप बतौर कॅरियर विकल्प भी देखा जाने लगा है। इस चिंगारी को अंशु मोर, पापा सीजे और नीति पाल्टा जैसे स्टैंडअप कलाकारों ने ख़ासी हवा दी, जो अपनी जमी-जमाई नौकरी छोड़ स्टैंडअप की दुनिया में उतर पड़े। निश्चित रूप से स्टैंडअप एक कला है, जिसे करत-करत अभ्यास साधा जाता है। स्टैंडअप कलाकार बनने की कोशिश में जुटे कई युवा इन दिनों ओपन माइक पर हुनर आज़माते दिखते हैं। ओपन माइक यानी वो मंच, जहां कोई भी शख़्स थोड़ा-सा शुल्क देकर चंद दर्शकों के सामने अपनी कला का प्रदर्शन करता है। ओपन माइक का कॉन्सेप्ट अब छोटे शहरों तक पहुंच गया है।

गाज़ियाबाद में ओपन माइक संचालित करने वाले बुक्स इन रैक संस्था के निदेशक नवनीत पांडे कहते हैं, ‘अब छोटे शहर के युवा भी ओपन माइक जैसे मंच चाहते हैं, और वो अपनी भाषा, अपने अंदाज़ के तड़के के साथ प्रस्तुति दे रहे हैं। महानगरों में तो तमाम क्लब हर हफ्ते ओपन माइक कार्यक्रम आयोजित करते हैं।’ स्टैंडअप कॉमेडी का चलन ज़ोरों पर है, और इसकी लोकप्रियता के चलते कई स्टैंडअप कॉमेडियन राजनीतिक विषयों पर सीधे टिप्पणियां करने लगे हैं। उनकी टिप्पणियों को गम्भीरता से सुना भी जाता है। इस परिदृश्य का एक कोण यह है कि शशि थरूर जैसे विद्वान अमेज़न प्राइम के ‘वन माइक स्टैंड’ में स्टैंडअप करके लोगों को चौंकाते हैं। इस शो में उन्होंने न केवल ख़ुद पर चुटकुले कहे, बल्कि लोगों को अपनी कॉमेडी से दंग कर दिया। उन्होंने एक चुटकुला सुनाया कि कई बार उनके माता-पिता अतिथियों के सामने उनसे कहते हैं, ‘शशि बेटा, इनको भी अंग्रेज़ी सुनाओ न।’ तालियां!


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