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दिल्ली में किसान आंदोलन को 27 दिन हो चुके हैं, लेकिन मप्र के किसान इसमें शामिल नहीं

 

दिल्ली में किसान आंदोलन को 27 दिन हो चुके हैं, लेकिन मप्र के किसान इसमें शामिल नहीं हैं। जिले के एक लाख किसानों को आलू-प्याज और सब्जियों पर एमएसपी का इंतजार है, फिर भी किसान आंदोलन में शामिल नहीं, क्योंकि अनाज-दलहन-तिलहन पर एमएसपी और मंडियों की व्यवस्था से 80 प्रतिशत तक किसान संतुष्ट हैं। हालांकि कुछ मांगें ऐसी हैं, जो पूरी हो जाए तो जिले के एक लाख किसानों को सीधा फायदा मिलेगा। इस तरह की मांग करने वालों में किसानों के लिए आंदोलनरत मप्र किसान सेना है तो भाजपा का ही अनुषांगिक संगठन कहा जाने वाला भारतीय किसान संघ भी शामिल है।

आलू की फसल में घाटे से हैं परेशान
जिले के किसान आलू की कम कीमतों से परेशान हैं। किसानों का कहना है हमने 40 रुपए किलो का बीज खरीदा था, लेकिन चिप्स का आलू 15 रुपए किलो में भी नहीं बिक रहा है। राशन के आलू का बीज 25 से 30 रुपए किलो में खरीदा था, उसकी कीमत 8 से 12 रुपए किलो ही है। भारतीय किसान सेना के प्रदेशाध्यक्ष केदार पटेल और सचिव जगदीश रावलिया का कहना है एमएसपी हमारी भी समस्या है, लेकिन अनाज-दलहन-तिलहन पर नहीं, आलू-प्याज और सब्जियों पर।

प्रदेश में एमएसपी किस पर लागू, किस पर नहीं

  • गेहूं, धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, दलहन-तिलहन में पूरी तरह एमएसपी लागू है।
  • आलू, प्याज, लहसुन, सब्जियों में अभी एमएसपी नहीं है।

डीजल के बढ़ते दाम भी समस्या, दूध के आधे दाम भी उत्पादक को नहीं मिलते
भारतीय किसान संघ और इंदौर दुग्ध उत्पादक संघ के देवराज पाटीदार कहते हैं दूध के मामले में उत्पादक और उपभोक्ता दोनों ठगे जा रहे हैं। कृषि क्षेत्र में 25 प्रतिशत व्यवसाय दूध का है। उपभोक्ता तक यह दूध भले ही 47 से 50 रुपए किलो जा रहा है, लेकिन किसान को अभी भी 20 से 25 रुपए ही फैट के हिसाब से मिल रहा है। किसान से लेते समय दूध के मूल्य भी तय होना चाहिए। संघ के ही पदाधिकारी आनंद सिंह ठाकुर का कहना है कि किसान को एमएसपी की गारंटी मिले।

उद्योगपतियों को जो भंडारण की छूट दे रखी है वह नहीं दी जाए। हमारी दूसरी समस्या डीजल के बढ़े दाम हैं। बुआई से लेकर निकलवाई तक ट्रैक्टर और मशीनों से होती है। डीजल के दाम के कारण बड़ी परेशानी होती है। किसान मांगीलाल सोलंकी का कहना है किसानों को सीधे रकबे के हिसाब से सब्सिडी देना चाहिए। अभा किसान मजदूर बेरोजगार संघ के राष्ट्रीय महासचिव रवि दांगी के मुताबिक छोटे किसानों के सामने आज भी कई तरह के संकट हैं, जिस पर सरकारों को अलग से आयोग बनाकर काम करना चाहिए।

पंजाब-हरियाणा के किसानों की परेशानी अलग, हमारी अलग

  • रावलिया के मुताबिक हमारे यहां गेहूं 80 प्रतिशत तक तुल जाता है। आढ़त नहीं लगती। पंजाब में अधिकांश काम आढ़तियों से होता है। नए एक्ट से उन्हें डर है कि उनका नुकसान होगा। किसान सीधे कंपनियों को माल बेच देंगे।
  • हमारे यहां किसानों को बड़ी फसलों का पूरा पैसा मिल जाता है। बिजली, सड़क की सुविधा बढ़ी है।
  • हमारी समस्या बीज की है। वह नहीं मिलता। आलू में हम पंजाब पर निर्भर हैं। उसका भी सर्टिफिकेशन नहीं रहता।
  • कुछ कंपनियां कॉन्टैक्ट फॉर्मिंग करवाती हैं, लेकिन महंगे दाम में देती हैं। सोयाबीन को ही लें तो बड़ी कंपनियां बिना अनुबंध के बुकिंग करती हैं। उसकी भी गारंटी नहीं होती। हमारे यहां बड़ी कंपनियों में आईटीसी, पेप्सिको, महिंद्रा- बीज बेचते हैं, जो काफी महंगा होता है।
  • किसी किसान को 100 क्विंटल बीज चाहिए तो एक लाख एडवांस जमा कराओ। उसके बाद भी कंपनी अभी भाव नहीं बताएगी। अक्टूबर-नवंबर में जब बुआई होगी, तभी वे भाव बताते हैं।

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