इंदौर नगर निगम (फाइल फोटो)
सालाना तीन करोड़ रुपए का खर्च सिर्फ वकीलों के वेतन पर, फिर भी 3100 से ज्यादा प्रकरण लंबित हैं
इंदौर नगर निगम के पास एक ओर पैसे की तंगी है तो दूसरी ओर कोर्ट में चल रहे विवादों के लिए वकीलों की लंबी पैनल है। इंदौर की जनसंख्या और निकायों के आकार में ही नहीं, कोर्ट केस में भी चार गुना बड़े जयपुर और अहमदाबाद में यहां से आधे वकील हैं। इंदौर नगर निगम 80 वकीलों को मासिक वेतन देता है। इसमें 20 हजार से डेढ़ लाख रुपए प्रतिमाह तक के वकील हैं।
इन पर सालाना वेतन का खर्च 3 करोड़ रुपए से ज्यादा है। बावजूद कोर्ट केस 3100 से ज्यादा लंबित हैं। 2019 में वकीलों की संख्या 55 थी, जबकि केस 2800 से ज्यादा थे। 2018 में भी 40 वकील थे। विधि विभाग से जुड़े कुछ अफसर मानते भी हैं कि नियुक्तियां हो रही हैं, पर देने के लिए केस नहीं है।
प्रमुख शहरों में निगम से जुड़े केस और वकीलों की संख्या
बड़े वकीलों की फीस डेढ़ लाख तक
इंदौर निगम के 3100 केस हैं। 1600 जिला कोर्ट, 1500 हाई कोर्ट और 5 केस सुप्रीम कोर्ट में हैं। इन केस के लिए 37 वकील हाई कोर्ट में, 40 जिला कोर्ट में हैं। 5 बड़े वकीलों की फीस डेढ़ लाख रुपए महीना है तो अधिकांश की 50 से 75 हजार रुपए। सिर्फ जिला कोर्ट के कुछ वकीलों की फीस 15 से 20 हजार रुपए है। ग्वालियर निगम के कुल 1715 केस हैं और वकील मात्र 34 हैं।
इसी तरह इंदौर से तीन गुना बड़े जयपुर में निगम ग्रेटर में कुल 13552 केस चल रहे हैं। बावजूद वहां लोअर कोर्ट में 150 वकील हैं, जिन्हें मात्र ₹5000 रुपए महीना ही मिलता है। वहां 15 वकील हाई कोर्ट में नियुक्त हैं, जिन्हें केस के हिसाब से पैसा दिया जाता है। छह वरिष्ठ अधिवक्ता स्थायी रूप से लगाए हैं, जिन्हें 20 हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय दिया जाता है। सूरत निगम में 1700 केस हैं और वकील सिर्फ 32 हैं।
भोपाल भी इंदौर की राह पर, 1550 केस पर 64 वकील नियुक्त
प्रदेश की राजधानी भोपाल भी इंदौर की राह पर है। यहां जिला, सेशन, हाई कोर्ट और एनजीटी को मिलाकर करीब 1550 केस सुनवाई में हैं। वकीलों की संख्या करीब 64 है। इसे लेकर सूत्रों का कहना है कि ज्यादातर नियुक्तियां राजनीतिक दबाव में होती हैं। इसी कारण बिना जरूरत के भी वकीलों की संख्या बढ़ती जा रही है।
कमेटी की एक भी बैठक नहीं पर नियुक्तियां होती चली गईं
जिस विधि कमेटी का हवाला देकर वकीलों की नियुक्ति की, उसकी एक भी बैठक नहीं हुई। वकीलों की नियुक्ति को लेकर पूर्व महापौर कृष्णमुरारी मोघे के समय एमआईसी के संकल्प क्र. 116, 20-2-2014 में नवीन लॉयर्स पैनल के संबंध में आयुक्त की टीप 17 फरवरी 2014 पर विचार किया गया। इसके बाद आयुक्त को अधिकृत किया गया। जब मालिनी गौड़ महापौर बनीं तो एमआईसी के संकल्प क्रमांक 108, 18-11-2016 में तय किया गया कि अधिवक्ताओं की नियुक्ति एवं फीस के निर्धारण के लिए कमेटी का गठन सर्वसम्मति से किया। इसमें एमआईसी से शंकर यादव, संतोष सिंह गौर और अश्विनी शुक्ला को लिया गया, लेकिन जो कमेटी बनी, उसकी एक भी बैठक नहीं हुई, न ही किसी ने इस तरह की सहमति दी।
सीधी बात - प्रतिभा पाल निगमायुक्त
पुरानी नियुक्तियां हैं, समीक्षा कर फैसला लेंगे
निगम में डेढ़ साल में वकीलों की इतनी नियुक्तियां कैसे हुईं?
निगम में वकीलों की इतनी ज्यादा नियुक्तियां कब-कब हुईं, जानकारी निकलवाने के बाद ही बता पाऊंगी।
बड़े शहरों में केस हमसे ज्यादा और वकील कम। आप क्या कहेंगे? केस हमारे यहां भी काफी हैं। यदि रिव्यू में ऐसा कुछ आता है तो व्यवस्था में बदलाव किया जाएगा।
वकीलों पर सालाना 3 करोड़ खर्च होता है। यह बड़ा अमाउंट नहीं है? इन केस का स्टेटस क्या है, कितने बड़े मामले हैं। समीक्षा के बाद निर्णय लेंगे। सालाना 3 करोड़ बड़ी राशि है।
कमेटी बनी, बैठक नहीं हुई
मैंने तो एक भी मंजूरी नहीं दी
उस समय निगम में सरकारी वकीलों की सीधे नियुक्ति कुछ अफसरों द्वारा की जा रही थी। उसी को रोकने के लिए एक विधि कमेटी का गठन किया गया था, लेकिन मुझे जानकारी नहीं है कि उसकी एक भी बैठक हुई थी, न ही किसी तरह की नियुक्ति को कमेटी सदस्य होने के नाम हमने मंजूरी दी थी।
- शंकर यादव, पूर्व सदस्य, विधि समिति, इंदौर
न बैठक हुई और न ही मंजूरी दी गई
कमेटी जरूर बनी थी, लेकिन उसकी कोई बैठक नहीं हुई थी, न ही कमेटी ने नियुक्तियों को मंजूरी दी थी। वकीलों की संख्या प्रकरणों के मुताबले ज्यादा है, इस संबंध में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं दे सकता। - संतोष सिंह गौर, पूर्व एमआईसी और विधि कमेटी सदस्य, इंदौर
कांग्रेस सरकार ने बढ़ाई संख्या
पहले हमारी सरकार के समय वकीलों की जो नियुक्तियां हुईं थी, उसमें नगर निगम ने शहर हित से जुड़े कई केस जीते थे और उसके बाद जनोपयोगी कई काम भी हमने करवाए थे। हालांकि तब वकीलों की संख्या 40 के करीब ही थी। प्रकरणों की संख्या की तुलना में यह बहुत ज्यादा नहीं थी। बाद में जब कांग्रेस सरकार प्रदेश में आई तो उन्होंने एकमुश्त नियुक्तियां राजनीतिक प्रभाव से करना शुरू कर दी थीं। जब इसकी जानकारी हमें मिली तो एक कमेटी का गठन भी किया गया था। हालांकि कमेटी की बैठक नहीं हो पाई। - मालिनी गाैड़, पूर्व महापौर, इंदौर
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