- गौतम बुद्ध के सम्बंध में कई तरह की कथाएं लोकप्रचलित हैं, लेकिन उनके यशोधरा के साथ विवाह सम्बंधी कथा कम ही सुनने को मिलती है।
बौद्ध ग्रंथों में गौतम बुद्ध का जीवन नानारूप में वर्णित हुआ है। इसी कड़ी में एक प्रसिद्ध ग्रंथ है ललितविस्तर।
इन सभी ग्रंथों में सभी इस बात पर एकमत हैं कि तथागत के जीवन में बारह प्रधान घटनाएं घटी हैं, जिनमें बोधिसत्व का जन्म, विवाह, अभिनिष्क्रमण, तपश्चर्या, धर्मचक्रप्रवर्तन, महापरिनिर्वाण आदि शामिल हैं।
ललितविस्तर में महापरिनिर्वाण को छोड़कर अन्य सभी घटनाओं का वर्णन ललित रूप में मिलता है। इसी ग्रंथ में राजकुमार सिद्धार्थ के साथ यशोधरा के विवाह से सम्बंधित एक बड़ा रोचक प्रसंग वर्णित है।
गाथा के अनुसार जब राजकुमार सिद्धार्थ विवाह योग्य हो गए तो महाराज शुद्धोदन ने सभा में उपस्थित पांच सौ शाक्यों से कहा कि वे देखें कौन-सी कन्या कुमार के योग्य है। सभी शाक्यों ने कहा कि उनकी कन्या सबसे श्रेष्ठ और सुपात्र है। तब महाराज शुद्धाेदन ने कहा कि कुमार से ही पूछा जाए उन्हें कैसी कन्या पसंद है।
सिद्धार्थ ने कई तरह के गुण गिनाए यथा रूप से मदमाती न हो, जिसके चित्त में माता व बहन के समान मैत्री हो, जो त्याग में रत हो, जिसमें श्रमणों तथा ब्राह्मणों को दान देने का शील स्वभाव हो आदि।
महाराज शुद्धोदन ने पुरोहित को आदेश दिया कि वे कपिलवस्तु के प्रत्येक घर में जाकर कुमार द्वारा बताए गुणों वाली कन्या देखें। पुरोहित प्रत्येक घर देखता हुआ दण्डपाणि शाक्य के घर पहुंचा। दण्डपाणि की पुत्री गोपा यानी यशोधरा को जब पता चला कि वे कुमार के लिए कन्या की खोज में आए हैं तो गोपा ने बताया कि ये सब उत्तम गुण उसमें हैं।
जब यह बात महाराज शुद्धोदन को पता चली तो उन्होंने सोचा कि प्राय: स्त्रियां ऐसे गुणों के अपने में होने का दावा करती हैं। इसलिए उन्होंने अशोकभाण्डों (पुरस्कार में दी जाने वाली वस्तुएं) की व्यवस्था की, जिन्हें कुमार सब कन्याओं को बांटें। वहां जिस कन्या से कुमार की आंख लग जाएगी, उसे कुमार के लिए वर लिया जाएगा।
वहां भी दण्डपाणि शाक्य की पुत्री गोपा के साथ तथागत के नयन मिले और उनके बीच क्षणभर वार्तालाप हुआ। यह जानकर महाराज शुद्धोदन ने पुरोहित को दूत रूप में दण्डपाणि के घर यह विवाह सम्बंध तय करने के लिए भेजा। दण्डपाणि एक शिल्पकार थे।
इस प्रस्ताव पर दण्डपाणि ने कहा, ‘कुमार तो सुख से पले-बढ़े हैं। हमारा यह कुलधर्म है कि कन्या शिल्पज्ञ को देनी चाहिए, अशिल्पज्ञ को नहीं। कुमार शिल्पज्ञ नहीं हैं, वे खांडा चलाना, धनुष खींचना, युद्ध एवं कुश्ती के दांव-पेेंच नहीं जानते। एक अशिल्पज्ञ राजकुमार के साथ मैं कन्या का विवाह करने में असमर्थ हूं।’
जब महाराज को यह बात पता चली कि शिल्पी दण्डपाणि ने विवाह से इनकार कर दिया है तो महाराज चिंतामग्न रहने लगे। जब कुमार सिद्धार्थ को इस विषय में पता चला तो उन्होंने अपने पिताजी से कहा, ‘क्या इस नगर में कोई ऐसा व्यक्ति है, जो शिल्प-प्रतियोगिता में मेरी प्रतिस्पर्धा रख सके? आप सब शिल्पज्ञों को इकट्ठा करिए, जिनके सामने मुझे अपना शिल्प दिखाना है।’
इसके बाद राजा की ओर से नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया गया कि सातवें दिन कुमार अपना शिल्प दिखाएंगे। जो भी खांडा चलाने, युद्ध, कुश्ती आदि में जीतेगा उसका विवाह यशोधरा से किया जाएगा।
इसमें पूरे पांच सौ शाक्य कुमार सम्मिलित हुए। इस प्रतियोगिता में अक्षरविद्या, हस्तरेखाविद्या, गणितशास्त्र, अंकशास्त्र, मल्लविद्या, तरण अर्थात तैराकी, प्लवित यानी ऊंची कूद, लंघित अर्थात लम्बी कूद, धनुषकला, हस्तिग्रीवा यानी हाथी की सवारी, क्रियाकल्प यानी शृंगार करने की विद्या जैसी 96 कलाओं का प्रदर्शन किया गया और सभी में राजकुमार सिद्धार्थ विजेता रहे थे।
किसी में उनकी बराबरी का सामर्थ्य न था। इसके बाद राजकुमार सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा के साथ सम्पन्न हुआ।
0 टिप्पणियाँ