शीत उत्पन्न करने वाला शीतल कहलाता है, लेकिन शीतल कहते ही सुखद अनुभूति होती है, जबकि शीत सुनकर झुरझुरी का एहसास होता है। ठंड से संबंधित मुहावरों में भी सकारात्मक और नकारात्मक भाव हैं। ठंडे दिमाग़ से काम करना अच्छी बात है, लेकिन ठंडा व्यवहार करना या ठंडी प्रतिक्रिया देना रिश्तों के लिहाज से ठीक नहीं है। इसी तरह ठंडा पड़ना जोश, आवेश या ग़ुस्से के शांत होने का सूचक है, तो व्यापार ठंडा पड़ना चिंता का सबब है।
व्यक्ति को जब संतोष होता है तो उसका कलेजा ठंडा पड़ता है, परंतु हाथ-पांव ठंडे पड़ते हैं तो वह भयभीत या हतोत्साहित होता है। ठंडी सांस लेना या ठंडी आहें भरना भी रंज, निराशा, हताशा का द्योतक है। कुल मिलाकर, ठंड के अच्छे और बुरे, दोनों असर हैं। चयन का विकल्प हो, तो अच्छे को चुनें। दिमाग़ ठंडा रखें और मन व चित्त में शीतलता लाएं।
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