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दुनिया-जहान:धरती का सुरक्षा कवच है ओज़ोन परत, इसमें सेंध लगना ख़तरे की घंटी है

 

  • ओज़ोन परत’ एक अदृश्य सुरक्षा-कवच जो हरदम हमारी रक्षा करता रहता है। किंतु समय के साथ हमारे इस सुरक्षा-घेरे में सेंध लगती जा रही है। आेज़ोन संरक्षण के लिए सशक्त क़दम उठाए जाने की आवश्यकता है और यह अपनी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन लाए बिना सम्भव नहीं साल 2018-19 में पर्यावरण के हितैषी अंतरराष्ट्रीय समुदायों के बीच ख़ासा उत्साह का माहौल था। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट से यह पता चला था कि साल 2000 से ओज़ोन परत में 2 फ़ीसदी की दर से सुधार हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ की इस रिपोर्ट से यहां तक क़यास लगाए जा रहे थे कि सदी के मध्य तक ओज़ोन परत पूरी तरह दुरुस्त हो जाएगी।

मगर हाल में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और अमेरिका के ही नेशनल ओशियानिक एंड एटमॉस्फ़ियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने अपने अवलोकनों का खुलासा करते हुए बताया है कि इस साल अंटार्टिका का ओज़ोन सुराख़ अपने वार्षिक आकार के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।

इसका आकार 20 सितम्बर को 2.48 करोड़ वर्ग किलोमीटर हो गया था, जो क़रीब-क़रीब अमेरिका महाद्वीप के क्षेत्रफल के बराबर है। इसने आशावादियों को थोड़ा चिंतित कर दिया है। थोड़ा इसलिए क्योंकि वैज्ञानिकों का कहना है कि लगातार ठंडे तापमान और तेज ध्रुवीय हवाओं से अंटार्टिका के ऊपर ओज़ोन की परत में गहरा सुराख़ होने में सहायता मिली है हालांकि यह सर्दियों तक बना रहेगा और उसके बाद गर्मियों में ओज़ोन परत में धीरे-धीरे सुधार आने लगेगा।

धरती पर जीवन के लिए ओज़ोन परत का बहुत महत्व है। पृथ्वी के धरातल से लगभग 25-30 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमंडल के समताप मंडल (स्ट्रेटोस्फ़ेयर) क्षेत्र में ओज़ोन गैस का पतला-सा आवरण है जो धरती के लिए सुरक्षा कवच की तरह काम करती है। यह सूर्य से आने वाले अल्ट्रा-वॉयलेट रेडिएशन (पराबैंगनी विकिरण) सोख लेती है। लेकिन अगर ये किरणें धरती तक पहुंचती हैं तो इसका मतलब होगा अनेक तरह की ख़तरनाक और जानलेवा बीमारियों का जन्म लेना।

घरेलू इस्तेमाल के लिए और थोड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थों को ठंडा रखने के लिए साल 1917 से ही रेफ्रिजरेटर या फ्रिज का व्यावसायिक रीति से निर्माण शुरू हो चुका था। हालांकि तब रेफ्रिजरेशन के लिए अमोनिया या सल्फ़र डाइऑक्साइड जैसी विषैले और हानिकारक गैसों का इस्तेमाल किया जाता था।

रेफ्रिजरेटर से इनका लीक होना जान-माल के लिए बेहद घातक था। इसलिए जब जर्मनी और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने रेफ्रिजरेशन के लिए कार्बन-क्लोरीन-फ्लोरीन के अणुओं से निर्मित एक ऐसे पदार्थ क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) की खोज की, जो प्रकृति में नहीं पाया जाता, तो रेफ्रिजरेटर सर्वसाधारण के इस्तेमाल के लिए सुरक्षित और सुलभ हो गए। इस खोज के बाद क्लोरोफ्लोरोकार्बन का इस्तेमाल व्यापक पैमाने पर एयर कंडीशनर, एरोसोल कैंस, स्प्रे पेंट, शैंपू आदि बनाने में किया जाने लगा। नतीजा हर साल अरबों टन सीएफसी वायुमंडल में घुलने लगा। ओज़ोन परत को नुकसान से बचाने के लिए 1987 में मॉन्ट्रियाल संधि की गई, जिसमें कई सीएफ़सी रसायनों और दूसरे औद्योगिक एयरोसॉल रसायनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अभी तक विश्व के तक़रीबन 197 देश इस संधि पर हस्ताक्षर कर ओज़ोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए हामी भर चुके हैं। इस संधि के लागू होने से सीएफ़सी और अन्य हानिकारक रसायनों के उत्सर्जन में धीरे-धीरे कमी आई।

मगर साल 2019 में प्रकाशित प्रतिष्ठित साइंस जर्नल नेचर की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब भी चीन जैसे देश पर्यावरण से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन करते हुए अपने उद्योग-धंधों में ओज़ोन परत के लिए घातक गैसों का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल कर रहे हैं। चीन का फ़ोम उद्योग अवैध रूप से सीएफ़सी-11 का उपयोग ब्लोइंग एजेंट के रूप में करता रहा है। चूंकि अन्य विकल्पों की तुलना में सीएफ़सी-11 सस्ता है, इसलिए उद्योग पॉलीयूरेथेन फ़ोम या पीयू फ़ोम बनाने के लिए इसका उपयोग करते हैं। चीन में सीएफ़सी की तस्करी की भी समस्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का सबब बनी हुई है।

देखने वाली बात यह है कि क्या चीनी सरकार पर्यावरण विरोधी ऐसी गतिविधियों पर लगाम लगा पाएगी या फिर उसकी बदौलत पिछले 30 सालों की वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा? बहरहाल, नासा और एनओएए के हालिया अध्ययनों में दक्षिणी ध्रुव के ऊपर समताप मंडल में चार मील ऊंचे स्तम्भ में ओज़ोन की पूर्ण रूप से गैरमौजूदगी दर्ज की गई है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले 40 साल के रिकार्डों के अनुसार साल 2020 में ओज़ोन सुराख़ का यह 12वां सबसे बड़ा क्षेत्रफल है। वहीं गु़ब्बारों के यंत्रों से लिए गए मापन के अनुसार यह पिछले 33 सालों में 14वीं सबसे कम ओज़ोन की मात्रा है।

नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में अर्थ साइंसेज़ के प्रमुख वैज्ञानिक पॉल न्यूमैन के मुताबिक साल 2000 के उच्चतम स्तर से समताप मंडल में क्लोरीन और ब्रोमीन का स्तर सामान्य स्तर से 16 प्रतिशत गिरा है। यह क्लोरीन और ब्रोमीन के अणु ही होते हैं, जो ओज़ोन अणुओं को ऑक्सीजन के अणुओं में बदलते हैं। हालांकि न्यूमैन का कहना है, ‘हमें अब भी बहुत दूर जाना है। लेकिन सुधार ने इस साल बड़ा बदलाव दिखाया है। यह सुराख़ लाखों वर्ग मील बड़ा होता अगर समताप मंडल में उतनी ही क्लोरीन की मौजूदगी दर्ज होती।’ सर्दियों के मौसम में समताप मंडल के बादलों में ठंडी परतें बन जाती हैं। ये परतें ओज़ोन अणुओं का क्षय करती हैं। गर्मी के मौसम में समताप मंडल में बादल कम बनते हैं और अगर बनते भी हैं तो लम्बे वक़्त तक नहीं टिकते, जिससे ओज़ोन के ख़त्म होने की प्रक्रिया में कमी हो जाती है।

सर्दियों में तेज़ हवाओं और बेहद ठंडे वातावरण की वजह से क्लोरीन के तत्व ओज़ोन परत के पास इकट्ठे हो जाते हैं। बाक़ी रासायनिक तत्वों के साथ मिले क्लोरीन के अणु सूर्य की पराबैंगनी किरणों के सम्पर्क में आने पर टूट जाते हैं। टूटे हुए क्लोरीन अणु ओज़ोन गैस से टकरा कर उसे ऑक्सीजन में तोड़ देते हैं। विघटित रासायनिक तत्व बादलों के संपर्क में आने पर अम्ल बनाते हैं और ओज़ोन परत में सुराख़ करते हैं।

हम दैनिक जीवन में बहुत-सी ऐसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों का इस्तेमाल करते हैं, जिनमें ज़्यादातर से किसी न किसी गैस का रिसाव ज़रूर होता है। इनमें मुख्य रूप से एसी है, जिसमें ओज़ोन परत के लिए घातक फ्रियान-11, फ्रियान-12 गैसों का प्रयोग होता है। हममें से कितने लोग जानते हैं कि इन गैसों का एक अणु ओज़ोन के लाखों अणुओं को नष्ट करने में समर्थ होता है! आप ख़ुद देख लीजिए, संकट कितना बड़ा है।

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