- इशाक अली सौंफ की एक नई क़िस्म आबू सौंफ-440 विकसित करने और निरंतर नवाचारों के लिए देश-दुनिया में पहचान रखते हैं।
- यह क़िस्म 55 प्रतिशत पानी का कम उपयोग करने के बावजूद अधिक उत्पादन देती है। आइए सुनते हैं उनकी कहानी, उन्हीं की ज़ुबानी।
मेरा जन्म मेहसाणा के बादरपुर गांव में हुआ। एक वर्ष का था, तब पिताजी राजस्थान के सिरोही ज़िले के चंद्रवती गांव में आ गए। कुछ वर्षों बाद सिरोही ज़िले के गांव काछौली में खेती के लिए ज़मीन बटाई पर लेने लगे।
आर्थिक तंगी के कारण हायर सेकंडरी कर मैं भी खेती के काम में जुट गया। आमदनी बढ़ी तो काछौली में चालीस बीघा भूमि खेती के लिए ले ली।
हमें आबू पर्वत की गोद में अच्छी उपजाऊ ज़मीन नसीब हुई। वहां पानी, मिट्टी और जलवायु का अच्छा तालमेल है।
नवाचार
हमने सौंफ की खेती शुरू की। नर्सरी में पौधा तैयार कर रोपाई की। इससे बीमारी घटी, उत्पादन बढ़ा। क़तारबद्ध प्रणाली अपनाई। जुताई आसान हो गई।ढाई दशक पहले की बात है, जब फव्वारा और बूंद-बूंद सिंचाई सुविधा नहीं थी। 120 गुणा 210 सेंटीमीटर खेत में 120 सेंटीमीटर पानी, 210 सेंटीमीटर सूखा छोड़ दिया। पानी सिर्फ़ 120 सेंटीमीटर की चैनल में दिया।
210 सेंटीमीटर की चैनल में पूरे वर्ष यानी फ़सल समाप्ति तक पानी नहीं दिया। पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखी गई। यह नवाचार किसानों की माली हालत सुधारने में वरदान साबित हुआ।
पानी की 55 प्रतिशत बचत के सात खड़ी फ़सल पर ट्रैक्टर चलाना आसान हो गया। खरपतवार की सफाई, पौधों पर मेढ़ लगाने में सुगमता हो गई। सौंफ में लगने वाले झुलसा, ब्लाइट, कालिया जैसी फफूंदनाशक का प्रकोप कम हुआ।
आबू सौंफ-440
बीसवीं सदी अंतिम दस्तक देने वाली थी, तब 1992 से खेत में सौंफ की उपज में प्रयोगों से 2005 में आबू सौंफ-440 नामक एक नई क़िस्म विकसित की। इसे विकसित करने में 13 साल लगे।तजुर्बे के आधार पर अम्बेल चुनकर ग्रेडिंग, छंटाई कर नर्सरी में पौधे तैयार किए। सामान्य के मुक़ाबले 55 प्रतिशत कम पानी के उपयोग के बावजूद अधिक उत्पादन देती है यह क़िस्म।
सिरोही ज़िले के चार हज़ार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में इसे अपनाया गया।
मूल्य संवर्धन
पहले किसान अपनी सौंफ को धूप में सुखाता था। इससे फ़सल की गुणवत्ता नष्ट हो जाती थी। हमने खेत में फ़सल सुखाने के लिए घास-फूस की झोपड़ी का छायादार स्थान बनाया।श्रेणीकरण के अनुसार सौंफ को सुखाया जा सकता है। इनमें सौंफ को सुखाने से उसके रंग और क्वालिटी में सुधार हुआ।
थ्रेशर-कम-ग्रेडिंग मशीन
सौंफ की फ़सल में कटिंग, सफाई और ग्रेडिंग के काम में काफ़ी मज़दूर लगते हैं। इस पर पके बीज निकाल देने का डर लगा रहता है।सौंफ की फ़सल की ग्रेडिंग करने और पैदावार को अलग करने के लिए लुहार से सम्पर्क कर थ्रेशर-कम-ग्रेडिंग मशीन बनवाई। इसकी मदद से यह कार्य सुगमता से होती है।
ग्रेडिंग और प्राॅसेसिंग प्लांट
सिरोही सौंफ की विदेशों में भारी मांग रही है। वहां उच्च गुणवत्ता की वर्गीकृत और प्रसंस्कृत सौंफ चाहिए। यदि यहां ग्रेडिंग और प्राॅसेसिंग प्लांट लग जाए तो विदेशी मुद्रा तो मिलेगी ही, लोगों की तक़दीर बदल जाएगी।स्मृतियां देती हैं ऊर्जा
राष्ट्रपति भवन में किसान-वैज्ञानिकों की शोध उपलब्धियों की प्रदर्शनी में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सौंफ की विकसित क़िस्म की जानकारी ली।पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल क़लाम ने दिल्ली में अपने निवास पर शोध उपलब्धियों के साथ 7-8 किसान-वैज्ञानिकों को बुलाकर उनकी उपलब्धियों को सराहा था। इनमें मैं भी था। उन्होंने मेरी सौंफ की नई क़िस्म को पसंद किया था।
सम्मान
मैं किसी विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ा, फिर भी सिटा ने 2011 में जयपुर में खेतों के वैज्ञानिक सम्मान प्रदान किया। इस सम्मान के आसपास आईसीएआर द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर जगजीवनराम अभिनव किसान पुरस्कार नई दिल्ली में प्रदान किया गया।2017 में राजुवास, बीकानेर और 2018 में पेसिफ़िक विश्वविद्यालय, उदयपुर व राकिसं ने खेतों के वैज्ञानिक के रूप में सम्मानित किया।
इसी वर्ष महिंद्रा समृद्धि इंडिया एग्री अवॉर्ड्स 2018 के अंतर्गत 20 एकड़ से अधिक भूमि में सौंफ उत्पादन में नवाचारों के लिए राष्ट्रीय कृषक सम्राट सम्मान प्रदान किया गया।
सम्पर्क कर सकते हैं-
गांव काछौली, तहसील पिंडवाड़ा
ज़िला सिरोही - 307023, राजस्थान
ईमेल : ishaqali440@gmail.com
मोबाइल : 9413818031(लेखक परिचय
डॉ. महेंद्र मधुप
वरिष्ठ कृषि पत्रकार। किसान वैज्ञानिकों के जीवन, संघर्ष और शोध पर चार पुस्तकें ‘खेतों के वैज्ञानिक’, ‘वैज्ञानिक किसान’, ‘प्रयोगधर्मी किसान’ और ‘अन्वेषक किसान’ प्रकाशित। मिशन फ़ार्मर साइंटिस्ट परिवार के प्रणेता।)
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