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आनंद-पंचांग:यदि आपके पास ये पांच हथियार हैं तो ज़िंदगी में आप कोई जंग न हारेंगे


  • इंसान की ज़िंदगी में पांच ऐसे हथियार हैं, जिनके लिए उसे न तो कोई लाइसेंस लेना है, न ही इसके लिए किसी नियम-क़ायदे से गुज़रना है, लेकिन ये हथियार जिसके पास हैं, वह ज़िंदगी की जंग हारेगा नहीं। ये पांच हथियार हैं- मित्र, रिश्तेदार, विचार, स्वास्थ्य और धन।

हथियारों से प्रेम करना इंसान की फ़ितरत है। मनुष्य दो कारणों से हथियार से जुड़ता है- आक्रमण यानी सीधे हिंसा के लिए और सुरक्षा के लिए। इसे अहिंसा के लिए भी कहा जा सकता है।

जब से मनुष्य ने होश सम्भाला, इन दोनों कामों के लिए अलग-अलग ढंग से हथियार बनाए। हथियार का नाम आते ही युद्ध याद आता है। मनुष्य का जीवन भी एक युद्ध है। ऐसा युद्ध जिसमें जीवित भी रहना है और सफलता भी हासिल करना है। ज़ाहिर है, फिर हर क़िस्म के हथियार अपनाना भी होंगे। हथियार पहले पत्थर के बनते थे, फिर लकड़ी, लोहा, उसके बाद बारूद से होते हुए बात परमाणु बम तक पहुंच गई। लेेेकिन, कुछ लोग अपने अंगों को भी हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

मनुष्य के हाथ-पैर तो हथियार हैं ही, कुछ लोगों का दिमाग़ भी हथियार का काम करता है और कुछ ज़ुबान को हथियार की तरह उपयोग करते हैं। अंगों को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का प्रयोग तो हनुमानजी ने बहुत सुंदर ढंग से किया था। उनकी तो पूंछ ही उनका हथियार थी। तो चलिए, मनुष्य के इन पांच हथियारों को समझते हैं। 1. मित्र

अच्छे मित्र सुरक्षा कवच की तरह होते हैं और बुरे मौत का सामान। ये हथियार जंग जिता भी सकते हैं, हरा भी सकते हैं। हमारे यहां दोनों प्रमुख अवतारों ने मित्रता के मामले में अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। राम के मित्रों की शृंखला में निषाद, सुग्रीव और विभीषण थे तो कृष्ण ने सुदामा, उद्धव और पत्नी रुक्मिणी से मित्रता निभाई थी।

किष्किंधा कांड में सुग्रीव से मित्रता करते हुए रामजी ने यह विचार व्यक्त किया था-

जे न मित्र दुख होहि दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।।

अर्थात अपने मित्र के दु:ख से दुखी होना चाहिए। यहां राम ने मित्र के छह और कुमित्र के तीन लक्षण बताए थे। 2. रिश्तेदार

यह ऐसा समूह है, जिसमें अपने साथ होते हैं। लेकिन सबका व्यवहार, स्वभाव और रुचि अलग-अलग होती हैैं। एक रिश्तेदारी पिता के पक्ष की होती है, दूसरी माता के पक्ष की। तीसरी विवाह के बाद ससुराल पक्ष की होती है और चौथी में आजकल मनुष्य जहां रहता है, उस कॉलोनी, उस क्षेत्र के लोगों से लगभग रिश्तेदार जैसा ही व्यवहार करने लगता है।

रिश्तेदारी का आधार अपनापन है। जब रिश्तेदारी निभाते हैं तो हमें बहुत बड़ा दिल भी रखना पड़ता है।

महाभारत का एक प्रसंग है, जिसमें वनवास काट रहे पांडवों से कौरवों की सेना आकर युधिष्ठिर से निवेदन करती है कि गंधर्वों के राजा ने हमे पराजित कर राजा दुर्योधन को बंदी बना लिया है। कृपया दुर्योधन की रक्षा कीजिए। यह सुनकर युधिष्ठिर उदास हो गए, परंतु भीम और अर्जुन ने कहा था- अच्छा हुआ। दुर्योधन के कारण ही हम वनवास भोग रहे हैं तो हम उसकी रक्षा क्यों करें? इस पर युधिष्ठिर ने कहा था- भवंति भेदो ज्ञातीनां कलाहश्च वृकोदर। प्रसक्तानि च वैराणि कुलधर्मो न नश्यति।।

अर्थात भाई-बंधुओं में लड़ाई-झगड़े होते ही रहते हैं, परंतु इससे कुल का धर्म यानी अपनापन नष्ट नहीं हो जाता।

युधिष्ठिर ने भीम और अर्जुन को समझाया कि हम पांच भाई हैं और कौरव सौ। हम आपस में कई बार लड़ेंगे, लेकिन जब लड़ाई दूसरों से हो तो हम एक सौ पांच हैं। युधिष्ठिर की इस बात में बड़ी गहराई थी। जिसके पास अच्छे रिश्तेदार हैं, अपनेपन की पूंजी है, वह ज़िंदगी में कभी अकेला नहीं होगा। 3. विचार आप ख़ूब शिक्षित हों, कम पढ़े-लिखे हों या निरक्षर हों, विचारों का क्रम अवश्य चलेगा। बहुत पढ़े-लिखे व्यक्ति के विचार व्यवस्थित होते हैं, कम पढ़ा-लिखा जानता है कि व्यवस्थित विचार कैसे होते हैं। निरक्षर के पास भी विचार तो होंगे, पर अव्यवस्थित होंगे और जो पागल होगा उसके विचार पूरी तरह बिखरे हुए होंगे। पर यह तय है कि विचार तो पागल व्यक्ति के पास भी होते हैं। अब यदि विचारों की धारा मन की ओर है मतलब थॉट यदि माइंड से जुड़े हैं तो ये ही विचार कुविचार में बदलकर नुक़सान पहुंचाएंगे। गंदे ख़यालों का उद्‌गम स्थल मनुष्य का मन ही होता है। वहीं विचारों की धारा यदि बुद्धि से जुड़ जाए तो मनुष्य उस विचार से क्या नहीं कर सकता। महापुरुष अपने विचारों को बुद्धि से जोड़कर ही महान बने हैं। इसलिए विचार वह हथियार है, जिसका आपको किसी से कोई लाइसेंस नहीं लेना है। बस, अपने विचारों को परिपक्व करना है, पर शर्त है कि उन्हें बुद्धि से जोड़िएगा। विचार को परिपक्व करने के लिए मंत्रोच्चार की क्रिया बड़े काम की है।

जीवन में कुछ मंत्र छांट लीजिए। आप किसी भी धर्म से हों, हर धर्म के अपने कुछ मंत्र हैं। जब हम मंत्रोच्चार करते हैं और मंत्र की ऊर्जा विचार से मिलकर उसका जुड़ाव बुद्धि से हो जाता है, फिर विचार आपको जो देंगे, संसार उसे देखेगा।

4. स्वास्थ्य सबसे बड़ी नियामत है तंदुरुस्त रहना। स्वास्थ्य बचाना हमारी सबसे पहली प्राथमिकता होना चाहिए। दुनिया जब से बनी है, बीमारियां तब से ही हैं। बीमारी नई नहीं होती। वे तो पहले से ही हैं। सामने आती हैं प्रकृति के विपरीत चलने से।

इसीलिए हिंदू संस्कृति ने एक व्यवस्था दी है धन्वंतरि के रूप में। समुद्र मंथन हुआ तो धन्वंतरि भी प्रकट हुए। हमारे ऋषि-मुनियों ने कहा है कि स्वस्थ रहना मनुष्य का मूल स्वभाव है, क्योंकि स्वास्थ्य भीतर से आता है, बीमारियां बाहर से उतरती हैं। धन्वंतरि अपने साथ अमृत कलश लेकर आए थे। आज स्वस्थ रहना ही सबसे बड़ा अमृत है।

स्वास्थ्य को दो भागों में बांटिए- शारीरिक और मानसिक। जिनकी इंद्रियां वश में हैं, वे शारीरिक रूप से स्वस्थ रहेंगे और जिनका मन नियंत्रण में है, उनका मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा। ‘निज मन ही निज तन को खाए।’ यदि आप मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं तो इसका सीधा असर तन पर पड़ने वाला है। यह दुनिया तो कई मौक़े देगी भोग-विलास के, मौज-मस्ती के, उन मौक़ों को बीमारी आप ख़ुद ही बनाएंगे। 5. धन

इस हथियार के तो क्या कहने। कई लोगों के लिए तो धन सचमुच हथियार ही है। लेकिन, यह भी सही है कि बिना धन के जीवन में बहुत-से काम रुक भी जाएंगे। लक्ष्मी समुद्र मंथन से ही प्रकट हुई थीं। जीवन का पुरुषार्थ, परिश्रम से मंथन करना पड़ता है, तब धन आता है। शॉर्टकट और ग़लत रास्ते से धन कमाने का प्रयास करेंगे तो वह धन आपसे क़ीमत वसूलेगा।

ख़ूब धन कमाइए, पर याद रखिए कि आपकी दौलत और शोहरत में दूसरों की भी हिस्सेदारी है। वे सहयोगी हो सकते हैं, कर्मचारी हो सकते हैं, कोई संस्थान हो सकता है और आपका अपना परिवार भी हो सकता है। इसलिए जब भी धन कमाएं, जिसका हिस्सा हो उसको अवश्य लौटाएं।

यदि सोच लें कि मैंने धन केवल अपनी ही योग्यता और परिश्रम से कमाया है तो आप बहुत बड़ी ग़लती कर रहे हैं। यह वह हथियार है, जिससे फिर आप स्वयं को ही क्षति पहुंचाएंगे।

इन पांच हथियारों को लेकर जीवन-युद्ध में उतर जाइए। जन्म और मृत्यु तो सबकी होना है, लेकिन इसके बीच जो जीवन घटता है उसमें अपना लक्ष्य पाने के युद्ध की तैयारी इन हथियारों के साथ करके देखिए।

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