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मायथोलॉजी:चक्र अस्त्र की तरह नाश करता है तो विनम्रता भी सिखाता है, आखिर क्या है इसकी अहमियत?

 

कोणार्क के सूर्य मंदिर में बना चक्र। ऐसे पहिये रूपी चक्र इस मंदिर में कई जगह बने हुए हैं।

तत्वज्ञान में चक्र समय और अंतराल दोनों का प्रतीक है। चक्र की तरह समय भी लगातार घूमते रहता है। हिंदू, बौद्ध और जैन विचारधाराओं के अनुसार समय चक्रीय होता है। पौराणिक कथाओं की मानें तो सृष्टि एक चक्र के आकार में होती है। यह चक्र एक कछुए की पीठ पर बैठा हुआ और क्षीरसागर से घिरा हुआ होता है।

दुनियाभर में तीलियों वाला चक्र बौद्ध धर्म का प्रतीक माना जाता है। आपको यह चक्र मंगोलिया, श्रीलंका और पूर्व बौद्धधर्मीय सिक्किम राज्य के चिह्नों में मिलेगा। चक्र का केंद्र स्थिरता का प्रतीक है जो चिंतन करने से मिलती है। चक्र की परिधि चेतना और तीलियां बौद्ध धर्म के विभिन्न सिद्धांतों का प्रतीक हैं। लंबे समय तक चक्र स्वयं बुद्ध का प्रतीक माना जाता था। लगभग पहली सदी ईसा पूर्व से बुद्ध की छवि प्रसिद्ध होने लगी। तबसे चक्र ही प्रभामंडल में बदल गया, बुद्ध के सिर के पीछे स्थित सौर चक्र।

भारतीय विचारधारा के अनुसार केंद्र में स्थित एक विचार तीलियों के रूप में अलग-अलग तरीक़ों से व्यक्त किया जा सकता है। चक्र इस बात का प्रतीक भी है। और परिधि पर स्थित अलग-अलग लोग केंद्र में स्थित एक ही रूप का तीलियों के रूप में अलग-अलग तरीक़ों से अर्थ लगा सकते हैं। चक्र का केंद्र उस मौलिक बिंदु का प्रतीक है, जिससे सब कुछ उभरता है : यह बीज है। फिर परिधि अभिव्यक्त रूप है : इस बीज का फल।

यदि केंद्र ब्रह्मा अर्थात सृजनकर्ता है तो परिधि ब्रह्मांड है अर्थात ब्रह्मा का सृजन। यदि केंद्र शून्य का प्रतीक है तो परिधि अनंत का प्रतीक है। इस तरह चक्र, मंडल का प्रतीक है। चक्र अनंत की सरहद का संकेत करता है। इन विचारों से पता चलता है कि शून्य को आकार कैसे मिला होगा।

चक्र सबसे पुराने राजस्व का प्रतीक होने वाले भारतीय सिक्कों पर दिखाई दिया। कुछ समय बाद किसी पुरुष को चक्र पकड़े दिखाया जाने लगा। यह पुरुष जैन पौराणिक कथा का वासुदेव है। कुछ समय बाद यह विष्णु अर्थात हिंदू धर्म में भगवान के राजसी रूप का चक्र बन जाता है। वे चक्रपाणि हैं। यह चक्र विष्णु की तर्जनी पर घूमता है और अस्त्र का काम करता है। फेंके जाने पर वह दुश्मन का वध करता है और फिर अपने आप लौट आता है।

इस तरह चक्र से मोक्ष मिल सकता है। चक्र की मदद से कृष्ण शिशुपाल का शिरश्छेदन करते हैं जो उनका लगातार अपमान कर रहा था। वे चक्र से उनका विरोध करने वाले काशी नगर को नष्ट करते हैं और दुर्वासा ऋषि को भी विनम्रता सिखाते हैं। शिव पुराण के अनुसार शिव ने विष्णु को चक्र दिया। विष्णु ने उसे सुदर्शन चक्र नाम दिया यानी एक सुंदर वस्तु।

महाभारत के युद्ध में भी चक्र का अस्त्र के रूप में इस्तेमाल हुआ है। अभिमन्यु चक्र की मदद से दुश्मनों से अपनी सुरक्षा करते हैं। अपने रथ का अटका हुआ पहिया छुड़ाते वक़्त कर्ण मारे जाते हैं। जैन आगमों में घूमता हुआ चक्र विश्व के सम्राट ऋषभ के सामने और फिर उनके उत्तराधिकारी भरत के सामने प्रस्तुत होता है।

भारत में कई मंदिरों में चक्र पाया जाता है। ओडिशा स्थित कोणार्क के सूर्य मंदिर में इसका सबसे भव्य प्रदर्शन मिलता है। यहां मंदिर को देवताओं के विशाल रथ के रूप में कल्पित किया गया है। जगन्नाथ पुरी के पवित्र रथ के पहियों को पूजा जाता है, क्योंकि यह पहिये ही राम को अयोध्या के बाहर और श्रीकृष्ण को वृंदावन के बाहर ले जाते हैं। श्रद्धालु आशा करते हैं कि पहिये ही राम और श्रीकृष्ण को फिर से उनके जीवन में ले आएंगे।

( लेखक प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्रों के आख्यानकर्ता हैं।)

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