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लघुकथा 'ख़्याल':सबके हित की सोच देखने में किसी उलझी कड़ी की तरह लगती है, लेकिन सबकी भलाई इसमेंं बेहद मज़बूती से जुड़ी होती है

 

टूटे जूते-चप्पलों की मरम्मत कराने की बात सुनकर वे सज्जन ज़ोर से हंसने लगे, लेकिन पीछे छिपी गहरी बात पता चलते ही उनकी आंखें झुक गईं।

सड़क के किनारे बिजली के खंभे के सहारे एक जूते-चप्पल ठीक करने वाला कारीगर बैठा था। अचानक एक चमचमाती कार उसके सामने आकर रुकी। कारीगर थोड़ा सकपकाया। कार से एक बाबू उतरे और उसे एक थैली देते हुए बोले, ‘इसमें दो-चार जोड़ी चप्पलें हैं, ज़रा इनकी मरम्मत कर देना।’ ‘जी बाबूजी...’ कारीगर ने थैली पकड़ते हुए कहा। कार वाले बाबूजी आगे निकल गए।

थोड़ी देर बाद जब लौटकर आए तो उनकी कार में एक और सज्जन बैठे थे। कारीगर ने तुरंत उठकर थैली पकड़ाई। उस थैली को देख उस सज्जन ने पूछा, ‘नीटू भैया इसमें क्या है?’ ‘दो-चार जोड़ी चप्पलें हैं, बस उनको ही ठीक करवाने लाया था। सोचा कि ठीक करवाकर किसी ग़रीब परिवार को पहनने के लिए दे दूंगा।’ नीटू बाबूजी ने जवाब दिया। इस पर‌ वे सज्जन ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे और बोले,‘जब ग़रीबों को ही चप्पल बांटनी हैं, तो नई बांटो। पुरानी चप्पलों की मरम्मत करवाकर क्यों बांटते हो?’ नीटू बाबूजी ने सौ का नोट कारीगर को पकड़ाते हुए कहा,‘दोस्त इन मेहनती और हुनरमंद कारीगरों का भी तो ख़्याल रखना पड़ता है, जो खुले आसमान के नीचे सर्दी, गर्मी और बरसात में अपने बच्चों का पेट पालने के लिए टूटे जूते और चप्पलों के इंतजार में बैठे रहते हैं।’ ये सुन उस कारीगर की उदास आंखों में चमक आ गई जबकि उन सज्जन की आंखें नीचे हो गईं।`

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