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बड़ा दिन:जीसस क्राइस्ट की महानता बनाती है क्रिसमस को बड़ा दिन

 

  • दिसम्बर माह के अंतिम सप्ताह में, जो कि वर्ष का भी अंतिम सप्ताह होता है, ईसाइयों का सबसे बड़ा पर्व क्रिसमस मनाया जाता है। क्रिसमस प्रभु यीशु का जन्मदिवस है।
  • प्रचलन में इसे बड़ा दिन कहकर पुकारे जाने की रीति है। किंतु यह दिन जिन कारणों, जिन मूल्यों और जिन गुणों के कारण बड़ा माना गया है, उनका अवलोकन भी आवश्यक है।
  • इस लेख में दैवी आभा से शोभायमान एक पुंज के रूप में जीसस की संस्तुति इसी आलोक में प्रस्तुत की गई है।
  • जीवन में कई बार कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं, जिनके अस्तित्व का अनुभव वर्षों बाद होता है। और जब ऐसे अस्तित्व का औचित्य रोमन साम्राज्य में प्रकट होता हो, जिसके प्रेम की प्रतिध्वनि और मानवता का माधुर्य पूरे संसार में तन्मयता व तपस्या की तरंगें घोल दे, तो उस प्राकट्य को बड़ा दिन कहा जाता है।

    ऐतिहासिकता के परिप्रेक्ष्य में जीसस क्राइस्ट एक ऐसी धार्मिक धुरी हैं, जिन पर अतीत की अलका और भविष्य की भव्यता ईश्वरत्व की अरुणाभा से वर्तमान के विषुवत वृत्त का निर्माण करती हो।

    क्षमाशीलता के क्षितिज, जिसने पीड़ित पृथ्वी को नीरव नभ से मिलाकर मनुष्यों को परमेश्वर के साम्राज्य में प्रवेश दिया हो- ऐसे हैं जीसस क्राइस्ट।

    संत ऑगस्टिन ने कहा था- ऐसी प्रार्थना कीजिए कि सब कुछ ईश्वर पर ही निर्भर करता हो। और ऐसी निर्भरता का निर्झर जब बेथलेहम से यरूशलेम तक प्रवाहित होता है, तब उसकी निर्मल निस्पृहता प्राणीमात्र को निर्भय बनाती है और निःश्रेयस की निश्चिंतता प्रदान करती है।

    सांसारिक सामंजस्यता के तल पर जीसस एक ऐसी संरचना हैं, जिसकी नींव में परोपकारिता की परमेष्ठी है, तो शीर्ष पर मुक्ति का मौन है। ईश्वर के पुत्र के रूप में जीसस का अवतरण जीवन की उस दृष्टि का बोध कराता है, जो मनुष्य की चेतना में जनकल्याण के बीजों को सींचकर, मानवजाति के रुक्षित मरुस्थल में संवेदनशीलता के सरस लहलहाते वृक्षों का विकास करती है।

    जॉन दि बैपटिस्ट द्वारा धर्म में दीक्षित होने के बाद जीसस ने उस युग की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों से बनने वाले सांस्कृतिक इतिहास की रचना विराट मानवीय सहानुभूतियों से करके उसकी यशगाथा को अनंत तक विस्तारित कर दिया था।

  • गॉस्पेल ऑफ़ मैथ्यू में जब जीसस ने समुद्र से मछली पड़कते एंड्रयू और पीटर को अपना शिष्य बनाया, तो लगा जैसे अनुग्रह के गिरिजाघरों में आशीष के गीत अनुकरण के गुणरत्नों को लेकर गुंजित होने लगे।

    सूत्रबद्धता की यह लय है, जो पवित्र बुधवार पर लेंट के रूप में आरम्भ होती है, जहां से हम अपने भीतर के अहंकार को पवित्र शनिवार की अनुभूति पर समाप्त करते हैं, और अगले दिन प्रभु के पुनर्जीवित होने का उत्सव मनाते हैं।

    एक ऐसी लय, जिसमें हम अपने किए हुए कर्मों के पश्चाताप के गम्भीर स्वर को प्रभु के दिखाए मार्ग के कोमल स्वरों द्वारा साधकर जीवन में तितिक्षा और तीर्थ की सार्वभौमिकता प्राप्त करते हैं।

    नैतिक गत्यात्मकता और आत्मविधान के नियमनिष्ठ चिंतन के तौर पर सर्मन ऑन दि माउंट जीसस द्वारा संसार को दी गई एक ऐसी अमूल्य निधि है, जिसका ईश्वरीय प्रकाश जीवन में मानवतावादी पुष्पों को खिलाकर उन पर सेवा के मिलिंदों को लाकर विश्व को परमेश्वर के परमधाम का मधुपान करवाता है।

    दानशीलता व सदाचार की ऐसी पुस्तक, जिसके पन्नों पर प्रेम के अक्षर करुणा की लिपि में लिखे गए हों, और जब उस पुस्तक के ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग होता है, तब व्यक्ति संकल्प-स्वातंत्र्य के क़दमों से विनम्रता की वीथियों पर चलकर परमेश्वर की पुण्यस्थली तक पहुंच जाता है।

    वैचारिक आधार पर हुई दिव्य गवेषणा से प्राप्त वो धार्मिक रहस्य, जिसके आचारशास्त्र का उद्‌घाटन मनुष्यमात्र के जीवन को ईश्वर की महान सत्ता के निकट लाने के लिए किया गया हो, जीसस की ऐसी अद्‌भुत वाणी सर्मन ऑन दि माउंट को नमन ही किया जाना चाहिए।

    जीसस क्राइस्ट की दी हुई शिक्षाएं और प्रशस्त किया गया मार्ग आज सर्वाधिक प्रासंगिक हो गया है।

    आज के इस उथलपुथल भरे समाज में, जहां चहुंओर वितंडावाद के विषाणु सच्चरित्रता की सरिता में कपट का कलुष घोल रहे हों, ऐसे वातावरण में ही पवित्र पिता, पवित्र पुत्र व पवित्र आत्मा के रूप में परमेश्वर की त्रिगुणात्मकता मानवीय समाज में सत्व-रजस-तमस के असंतुलित रूप में रच-बस गए त्रिगुणात्मक दोषों को दूर कर सकने में सक्षम है।

    जीसस ने अपने बलिदान से स्वर्ग के द्वार समूची मानवजाति के लिए खोलकर क्राइस्ट का दर्जा प्राप्त किया था। अतः मानवीय मूल्यों का जतन कर हम अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर होते रहें, इस विश्वास के साथ कि जीसस क्राइस्ट हमें कष्टों से मुक्ति दिलाकर अंत में सब ठीक कर देंगे।

    और जैसा कि बीसवीं शती के महान दार्शनिक विलियम फ्रेंकलिन ग्राहम कहते हैं- यदि उम्मीद की लौ जलती रही तो लोग परमेश्वर के ज़रिए मुक्ति पा लेंगे, क्योंकि मैंने बाइबिल का अंतिम पन्ना पढ़ा है, अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है।

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